मप्र कांग्रेस में जान फूंकने की जिम्मेदारी आलाकमान ने मुकुल वासनिक को दी है। वासनिक की बतौर प्रदेश प्रभारी यह दूसरी पारी होगी, क्योंकि वे पूर्व में भी राज्य के प्रभारी रह चुके हैं हालांकि इस समय और उस समय के हालातों में जमीन आसमान का अंतर है। उनकी पहली और दूसरी पारी के बीच राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका है। इस दौरान 15 साल का राजनीतिक वनवास भोगने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार 15 महीने में ही दलबदल के कारण सत्ता से बाहर हो गई। वासनिक के सामने अब यही चुनौती होगी कि उपचुनाव के माध्यम से क्या फिर से कांग्रेस अपनी उस सत्ता को पा सकती है जो उसे मतदाताओं के जनादेश से मिली थी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी होगी कि पहले वे नेताओं के बीच तालमेल बिठाएं और कार्यकर्ताओं में सरकार जाने से जो निराशा आ गई है उसे उत्साह में बदलें। इसके साथ ही उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और सेवादल के राष्ट्रीय मुख्य संगठक रहे महेंद्र जोशी को भी आगे लाकर पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए सक्रिय करना चाहिए। देखने की बात यही होगी कि क्या कांग्रेस की अनायास ही जो राहें पथरीली हो गई हैं और उसकी राह में जो कांटे बिछ गए हैं उसे हटाने व सुगम बनाने में वासनिक सफल हो पाएंगे।
वासनिक एक अनुभवी कांंग्रेस नेता और मध्यप्रदेश की अंदरूनी गुटबंदी की जडं़े कितनी गहरी हैं उसे भलीभांति जानते हैं। 1980 के दशक में सबसे युवा लोकसभा सदस्य बनने के साथ ही तीन साल तक वे एनएसयूआई और दो साल तक युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के बाद कांग्रेस पार्टी में वे हमेशा एक अहम नेता रहे हैं, सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में उनकी गिनती होती है। वे अपनी दूसरी पारी की शुरुआत जब करने जा रहे हैं तो दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी जैसे नेताओं से उनका दोस्ताना संबंध काफी काम आएगा और वैसे भी प्रदेश में पहले से ही उनकी अपनी टीम है। प्रदेश में कांग्रेस संगठन यदि देखा जाए तो विजिटिंग कार्डधारी पदाधिकारियों से अटा पड़ा है, संगठन के नाम पर आज प्रदेशभर में प्रदेश व जिला स्तर के डेढ़ हजार से ज्यादा महासचिव और सचिव हैं।
प्रदेश कांग्रेस से लेकर जिला कांग्रेस तक कार्यकारी अध्यक्षों की भरमार है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जो प्रत्याशी नहीं बन पाए उन्हें संतुष्ट करने का ही यह नतीजा है कि दिन दूनी रात चौगुनी इनकी संख्या बढ़ती गई, यहां तक कि यदि प्रदेश कांग्रेस से रिकार्ड तलब किया जाए तो उनके पास भी इसकी पूरी जानकारी मिलेगी, क्योंकि कई लोगों को दिल्ली से तत्कालीन महासचिव बाबरिया ने सीधे पत्र लिख दिए। कई प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में प्रदेश कांग्रेस में महत्वपूर्ण पदों पर रहे मानक अग्रवाल को भरोसा है कि वासनिक सारी चुनौतियां का सामना करने में सफल रहेंगे क्योंकि वे प्रदेश कांग्रेस के सभी छोटे-बड़े नेताओं को जानते-पहचानते हैं और सबकी बात सुनते व सबको साथ लेकर चलते हैं। मध्यप्रदेश की कांग्रेस की राजनीति से वे अनजान नहीं हैं और जितना वे जानते हैं उतना मौजूदा महासचिवों में से कोई नहीं जानता।
जैसी कि कांगे्रस की परम्परा रही है दीपक बाबरिया का त्यागपत्र स्वास्थगत कारणों से मंजूर किया गया है लेकिन सब भलीभांति जानते हैं कि उनकी विदाई के दो मुख्य कारण हैं उसमें पहला यह है कि वे प्रदेश कांग्रेस संगठन व सरकार के बीच समन्वय नहीं बना पाए जबकि दोनों के ही मुखिया कमलनाथ थे। प्रदेश कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता से न तो वे अपना तालमेल बिठा पाए और न ही उन नेताओं में सामंजस्य करा पाए। उनकी पटरी अनेक नेताओं से नहीं बैठ पाई और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनकी नजदीकी अंतत: उनकी विदाई का कारण बनी। 15 साल बाद कांगे्रस सत्ता में लौटी थी लेकिन 15 माह के भीतर वे कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं को न तो सरकारी पद दिला पाए और ना ही उनकी कोई पूछपरख सत्ता के गलियारों में बढ़वा पाए। बाबरिया की दूसरी बड़ी चूक यह थी कि वे कांग्रेस जैसे संगठन को एनजीओ स्टाइल में चलाना चाहते थे जबकि इस प्रकार के लोग जमीनी वास्तविकताओं से कम सरोकार रखते हैं और अपने स्वयं की कल्पनाओं के अनुसार वे व्यवहारिक हैं या नहीं के स्थान पर कांग्रेस को अपनी स्वयं की कल्पनानुसार ढालने में लग जाते हैं।
चुनौतियों का पहाड़ वासनिक के सामने
बतौर महामंत्री चुनौतियों का एक बड़ा पहाड़ वासनिक को उत्तराधिकार में मिला है, इन हालातों को चुस्त-दुरुस्त करने की जिम्मेदारी अब उन पर है। लॉकडाउन की परिस्थितियों के बीच मुकुल वासनिक को नई पारी की शुरुआत करना है और उपचुनाव की चुनौतियों के बीच तैयारियां करवाना एवं संगठन की गतिविधियों में जो शिथिलता आई उसे भी उन्हें प्राथमिकता से दूर करना होगा। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री कमलनाथ के त्यागपत्र के बाद दीपक बाबरिया ने हाईकमान को फीडबैक देते हुए यह सुझाव दिया कि कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष रखा जाए और प्रदेश अध्यक्ष नए व्यक्ति को बनाया जाए। जबकि अधिकांश लोगों की राय यह है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहें और यदि वे तैयार हों तो नेता प्रतिपक्ष भी उन्हें ही रखा जाए अन्यथा नया नेता चुन लिया जाए। कमलनाथ स्वयं चाहते हैं कि विधायक दल का नेता अलग हो, इसीलिए डॉ. गोविंद सिंह का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ा है। सिंधिया के साथ जो भी विधायक और मंत्री पार्टी छोड़कर गए हैं उनमें सबसे अधिक ग्वालियर-चंबल संभाग के हैं और नेता प्रतिपक्ष के रूप में डॉ. सिंह के अलावा कोई दूसरा चेहरा कांग्रेस के पास नहीं है जो उस अंचल से प्रभावी भूमिका सदन के अंदर निभा सके।
- अरविंद नारद