कुलीनों के कुल में कलह
19-May-2020 12:00 AM 313

15 माह पुरानी कांग्रेस की सरकार को गिराकर भाजपा ने सत्ता तो हासिल कर ली है, लेकिन कुलीनों के कुल में कलह के कैक्टस उगने लगे हैं। दरअसल, पार्टी का लगभग हर विधायक मंत्री बनना चाह रहा है। वहीं समझौते के अनुसार सिंधिया समर्थक 22 विधायकों में से कम से कम 8 को मंत्री तो बनाना ही है। ऐसे में भाजपाई विधायक पार्टी हाईकमान को यह दिखाने में जुटे हुए हैं कि अगर क्षेत्र, जाति के अनुसार मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किया गया तो इसके परिणाम सुखद नहीं होंगे। कई क्षेत्रों में विधायकों ने बैठकें करके मंत्री बनने की मांग उठाई है।

राजनीतिक दलों में भाजपा को कुलीनों की पार्टी कहा जाता है। अब प्रदेश में एक बार फिर भाजपा की सरकार है। शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल के विस्तार की खबरों के बीच इस पार्टी के दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं को लेकर उनके कुल में जमकर कलह होने लगी है। हालात यह है कि पार्टी के ही वरिष्ठ से लेकर अपने-अपने वर्ग में मजबूत पकड़ रखने और लगातार जीत दर्ज करने वाले विधायक अब पार्टी के उन नेताओं के विरोध में आ गए हैं, जिन्हें लगातार पहुंच और पार्टी में रसूख के चलते मंत्री बनाया जाता रहा है। इन्हीं पूर्व मंत्रियों के नाम एक बार फिर से संभावित मंत्रियों की सूची में सामने आ रहे हैं। अब कैबिनेट के दूसरे विस्तार को लेकर हलचल तेज होने के साथ ही प्रदेश में इन कद्दावर नेताओं का भारी विरोध शुरू हो गया है। विरोध करने वाले कार्यकर्ता, पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता ऐसे विधायकों के विरोध में लामबंद हो रहे हैं। यह लोग कैबिनेट में नए और अब तक मंत्री न बन पाने वाले वरिष्ठ विधायकों को शामिल करने की मांग कर रहे हैं। जिन दिग्गज नेताओं को मंत्री बनाए जाने का विरोध हो रहा है उनमें महाकौशल से अजय विश्नोई, गौरीशंकर बिसेन, विंध्य क्षेत्र से राजेंद्र शुक्ल, मालवा अंचल में विजय शाह का नाम शामिल है।

गौरतलब है कि फिलहाल शिवराज सरकार सिर्फ पांच मंत्रियों से ही काम चला रही है। इनमें भी दो सिंधिया समर्थक और तीन भाजपा के कोटे से हैं। भाजपा सूत्रों की माने तो शिवराज कैबिनेट के दूसरे विस्तार की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इसके तहत अलग-अलग स्तर पर मंथन का दौर चल रहा है। संभावना है कि इसी माह नए मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। फिलहाल माना जा रहा है कि लगभग 23 मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। जिसमें सिंधिया समर्थक और कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले 8 से 10 पूर्व विधायक हो सकते हैं। इसी तरह से भारतीय जनता पार्टी के दस विधायकों को भी शपथ दिलाई जा सकती है। उधर, पार्टी सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट विस्तार राज्यसभा चुनाव होने तक टाला भी जा सकता है। इस पर विचार चल रहा है।

मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनने के 15 महीने बाद ही कुर्सी छोड़ने को मजबूर हो गई। जिसके लिए अब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी ही पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इसका जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की 1 मई को राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात के बाद से राज्य में एक बार फिर से मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। राज्यपाल से इस दौरान मुख्यमंत्री ने करीब 50 मिनट चर्चा की। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दौरान राज्यपाल को प्रदेश में कोरोना की स्थिति के बारे में भी जानकारी दी। साथ ही राजनीतिक हालात और विश्वविद्यालयों के सत्र को लेकर भी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच चर्चा हुई। लेकिन मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच हुई इस मुलाकात ने राज्य में सियासी हलचल बढ़ा दी है।

पिछले माह 21 अप्रैल को भाजपा सरकार बनने के 29 दिन बाद शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया। इस दौरान शिवराज मंत्रिमंडल में शामिल पांच मंत्रियों को राज्यपाल ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। मंत्री पद की शपथ लेने वालों में भाजपा के वरिष्ठ नेता नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल और महिला आदिवासी नेता मीना सिंह सहित हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत शामिल है। इन पांचों मंत्रियों को पहले दिन कोरोना की रोकथाम के लिए संभाग बांटे गए और दूसरे दिन विभाग। मंत्री नरोत्तम मिश्रा के हिस्से गृह, लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जैसे अहम विभाग आए तो कमल पटेल को किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग मिला। वहीं मीना सिंह को आदिम जाति कल्याण विभाग तो सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट को जल संसाधन और गोविंद सिंह राजपूत को खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण के साथ सहकारिता विभाग सौंपा गया। जबकि मंत्रिमंडल गठन के बाद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को मंत्रिमंडल में शामिल न करने को लेकर भाजपा पर तंज कसा और सिंधिया समर्थकों को लेकर निशाना साधा।

मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनने के 15 महीने बाद ही कुर्सी छोड़ने को मजबूर हो गई। जिसके लिए अब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी ही पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इसका जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हालांकि यह रायता फैलाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी आइसोलेशन में क्वारंटाइन हैं। वह भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद लगातार अपने समर्थकों जिन्होंने 15 महीने पुरानी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराकर सत्ता की चाबी भाजपा के हाथों सौंप दी उनके लिए राजनीतिक भूमि तैयार करने में लगे हैं। ताकि आगामी उपचुनाव में उनके राजनीतिक समर्थकों को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। जिसके लिए वह कोई भी जतन करने को तैयार हैं। इसकी बानगी शिवराज मंत्रिमंडल के गठन में दिख गई। जिसमें तीन-दो के फॉर्मूले पर भाजपा ने काम करते हुए पांच में से दो मंत्री सिंधिया समर्थक बनाए। लेकिन अपने ही नेताओं की अनदेखी कर रही भाजपा में अंदर ही अंदर असंतोष पनपने लगा है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव निराश बताए जा रहे हैं। पिछले दिनों उन्होनें अपनी ही सरकार को घेरते हुए टॉस्क फोर्स की मीटिंग के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से दो टूक यह कह दिया कि मजदूरों के खाते में एक हजार रुपए देना अच्छा है, लेकिन मैंने जो अपने क्षेत्र के मजदूरों की सूची सौंपी थी, उनके खातों में अभी तक यह पैसा नहीं पहुंचा है। जिसके बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा का विषय बन गया और तभी से लगातार गोपाल भार्गव अपने गृह क्षेत्र में हैं और उन्होंने भोपाल से दूरियां बना ली हैं। जिसके बाद गत दिनों मंत्री गोविंद सिंह राजपूत गोपाल भार्गव से मिलने उनके घर गढ़ाकोटा पहुंचे। मुलाकात के बाद जब गोविंद सिंह राजपूत से यह सवाल किया गया कि क्या वह गोपाल भार्गव को मनाने आए हैं तो गोविंद राजपूत ने कहा कि मेरी इतनी हैसियत नहीं कि मैं गोपाल भार्गव को मना सकूं। वहीं पीछे से एक आवाज आई जिसमें गोपाल भार्गव ने कहा कि यदि हम नाराज हो गए यो क्या बचेगा।

तो दूसरी ओर भाजपा के कई वरिष्ठ नेता मंत्रिमंडल में शामिल होने की बाट जोह रहे हैं। इसी को लेकर शिवराज सिंह चौहान खासे पसोपेश में नजर आ रहे हैं। मंत्री पद सीमित है और कई वरिष्ठ नेताओं को मंत्रिमंडल में समायोजित करना है यह ढेड़ी खीर बनता जा रहा है। सबसे ज्यादा समस्या आ रही है बुंदेलखंड क्षेत्र से जहां गोपाल भार्गव जैसे दिग्गज और वरिष्ठ नेता हैं, तो वहीं शिवराज के करीब पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह भी मौजूद हैं। इस क्षेत्र से पहले ही सिंधिया खेमे से गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाया जा चुका है। तो वहीं कई ऐसे विधायक भी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए बेताब हैं जो भाजपा के टिकट से लगातार जीतते आ रहे हैं जिसमें शैलेंद्र जैन और प्रदीप लारिया का नाम सबसे आगे हैं।

जबकि विंध्य क्षेत्र में भी इस बार सिर्फ राजेंद्र शुक्ला के नाम पर सहमति बनती नहीं दिख रही। पार्टी सूत्रों की माने तो विंध्य क्षेत्र के प्रमुख विधायकों ने बैठक करके संगठन से कहा है कि इस बार सिर्फ शुक्ला नहीं चलेंगे। विंध्य क्षेत्र में भाजपा ने इस बार अधिक सीटें जीती हैं, इसलिए अन्य को भी मौका मिले। रीवा संभाग की देवतालाब विधानसभा से भाजपा के वरिष्ठ विधायक गिरीश गौतम ने इस बैठक को लेकर कहा कि 'कोरोना समेत कई मामलों को लेकर हम पांच-छह विधायकों ने बैठक की है। हम राजेंद्र शुक्ला का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन विंध्य में 30 में से 24 सीटें जीतने के बाद प्रतिनिधित्व तो बढ़ना चाहिए।’ यहां राजेंद्र शुक्ला के अलावा गिरीश गौतम, नागेंद्र सिंह गुढ़,  जुगलकिशोर बागरी, नागेंद्र सिंह नागौद समेत कुछ और लोग भी मंत्रिमंडल में शामिल होने की आस रखते हैं।

सिंधिया को 8 मंत्री चाहिए

मंत्रिमंडल विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक कांग्रेस के 8 बागी और मंत्री बनाए जाने हैं। इसके अलावा कई मंत्री राष्ट्रीय नेतृत्व की पसंद के बनने हैं। ऐसे में भाजपा के लिए सिर्फ 21 मंत्री पद ही बचेंगे, जबकि इन पदों के लिए उसके पास दोगुने से ज्यादा दावेदार हैं। इसके बावजूद, मुख्यमंत्री सियासी समीकरणों को देखते हुए मंत्रिमंडल में तीन से चार स्थान खाली रखेंगे। 21 अप्रैल को हुए मंत्रिमंडल के गठन में जिस तरह भाजपा ने नरोत्तम मिश्रा के साथ कमल पटेल और मीना सिंह को शामिल किया है, उससे उन 9 पूर्व मंत्रियों में उम्मीद बढ़ गई है जो 2013 का चुनाव हारने के बाद अब 2018 में फिर जीते हैं।  इन सबके बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपाल भार्गव का यह कहना कि यदि हम नाराज हो गए यो क्या बचेगा। यह साफ करता है कि दूर से ही सही लेकिन गोपाल भार्गव इशारा कर रहे हैं कि वह नाराज हैं और अगर उनकी नाराजगी दूर ना हुई तो फिर पार्टी को दिक्कत हो सकती है।

मालवा-निमाड़ में दावेदारों की लंबी लाइन

कुछ यही हाल मालवा और निमाड़ क्षेत्र का भी है। जहां इंदौर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर और नीमच में मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए दावेदारों की लाइन लगी है। ओमप्रकाश सकलेचा, जगदीश देवड़ा, यशपाल सिंह सिसोदिया, मोहन यादव, चेतन कश्यप, ऊषा ठाकुर, मालिनी गौड़, महेंद्र हार्डिया और रमेश मेंदोला ने संगठन के सामने अपनी बात रख दी है। इसमें भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खास रमेश मेंदोला को जगह मिल सकती है। जबकि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र जहां सबसे अधिक 16 विधानसभाओं में उपचुनाव होने हैं यहां और मालवांचल में बिना सिंधिया की बिना राय के किसी का भी मंत्री बनना मुश्किल होगा। क्योंकि ग्वालियर-चंबल और मालवांचल के कुछ क्षेत्रों में सिंधिया की अच्छी पैठ मानी जाती है। लेकिन वहीं कांग्रेस सरकार को गिराने में अहम भूमिका अदा करने वाले भिंड जिले की अटेर विधानसभा से विधायक अरविंद भदौरिया मंत्रिमंडल में जगह पा सकते है।

- कुमार राजेन्द्र

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