मप्र में 27 सीटों पर होने वाला उपचुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं बल्कि यह सत्ता का संग्राम है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां इसके लिए तैयारी में जुटी हुई हैं। लेकिन दोनों पार्टियों को इस बात का डर सबसे अधिक सता रहा है कि उन्हें बसपा, सपा, निर्दलीय सहित अन्य पार्टियों के प्रत्याशी उनकी जीत का गणित बिगाड़ सकते हैं। इसलिए दोनों पार्टियां हर विधानसभा क्षेत्र में हार-जीत के गणित पर मंथन कर रही हैं।
मप्र में 27 सीटों पर उपचुनाव होने वाला है। प्रदेश के इतिहास में अब तक का यह सबसे बड़ा उपचुनाव होगा। इस उपचुनाव से प्रदेश सरकार का भविष्य तय होना है। उपचुनाव में बाजी मारने के लिए दोनों पार्टियां तैयारी कर रही हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के प्रभाव के कारण इस बार के चुनाव में वोटकटवा जीत का गणित बिगाड़ सकते हैं। दरअसल, कोरोना संक्रमण के कारण आशंका जताई जा रही है कि उपचुनाव में 40 से 45 प्रतिशत मतदान बमुश्किल हो पाएगा। ऐसे में वोटकटवा उम्मीदवार भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की जीत का गणित बिगाड़ सकते हैं। 2018 में इन 27 सीटों पर वोटकटवा उम्मीदवारों को 3,54,223 वोट मिले थे, अब उपचुनाव में यही वोट जीत-हार तय करेंगे।
गौरतलब है कि मांधाता, नेपानगर, बड़ामलहरा, डबरा, बदवावर, भांडेर, बमौरी, मेहगांव, गोहद, सुरखी, ग्वालियर, मुरैना, दिमनी, ग्वालियर पूर्व, करेरा, हाटपिपल्या, सुमावली, अनूपपुर, सांची, अशोकनगर, पोहरी, अंबाह, सांवेर, मुंगावली, सुवासरा, जौरा, आगर-मालवा आदि 27 सीटों पर उपचुनाव होना है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर कुल 41,54,099 वोट पड़े थे। जिसमें से 3,54,223 वोट उन उम्मीदवारों को मिले थे, जिन्हें वोटकटवा माना गया था। कई सीटों पर जीत-हार का अंतर इतना कम था कि अगर वोटकटवा उम्मीदवारों का वोट किसी एक प्रत्याशी को मिल जाता तो परिणाम बदल सकते थे। अब उपचुनाव में यही वोट भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
27 सीटों पर मुख्य मुकाबला वैसे तो भाजपा और कांग्रेस के बीच होना है, लेकिन कुछ सीटों पर बसपा भी अपना दम दिखाएगी। लेकिन वोटकटवा उम्मीदवार भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत का गणित बिगाड़ेंगे। इसको देखते हुए राजनीतिक पार्टियां जातिगत आंकड़ों के हिसाब से वोटकटवा उम्मीदवार खड़ा करेंगी, ताकि उनके प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित हो सके। उन्हें धन और बल देकर विपक्षी के खिलाफ उनका उपयोग किया जाएगा। इस कारण उपचुनाव में वोटकटवा उम्मीदवारों की भरमार रहेगी।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2018 के विधानसभा चुनाव में उपचुनाव वाली 27 विधानसभा सीटों पर कुल 390 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से 324 प्रत्याशी वोटकटवा साबित हुए थे। यानी केवल 66 प्रत्याशी ही अच्छा प्रदर्शन कर पाए। अब उपचुनाव में भी वोटकटवा प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की जीत का गणित बिगाड़ेंगे। कांग्रेस के एक पदाधिकारी कहते हैं कि जिन कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी को धोखा देकर भाजपा का दामन थामा है, उन्हें हराने के लिए हम कोई भी मौका नहीं छोड़ेंगे। वह कहते हैं कि कांग्रेस के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए पार्टी का पूरा फोकस बागियों को हराने पर है।
प्रदेश में अब तक के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला होते रहता है। लेकिन बसपा, सपा, निर्दलीय और अन्य पार्टियों के प्रत्याशी कांग्रेस-भाजपा की जीत के गणित को बिगाड़ते रहते हैं। अत: इस बार के उपचुनाव में दोनों पार्टियों की नजर वोटकटवा उम्मीदवारों पर रहेगी। सूत्र बताते हैं कि दोनों पार्टियों ने विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने के इच्छुक नेताओं से संपर्क करना शुरू कर दिया है। साथ ही चुनावी मैदान में उनके उतरने के प्रभाव का आंकलन किया जा रहा है।
दरअसल, 27 सीटों पर होने वाला उपचुनाव शिवराज सरकार के स्थायित्व और कांग्रेस की नई उम्मीदों से जुड़ा है। यही वजह है कि एक-एक सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए दोनों दल बिसात बिछा रहे हैं। इसमें दाल किसकी गलेगी अभी कह पाना मुश्किल है, लेकिन टिकट के दावेदारों की रस्साकसी देखकर संकेत मिलने लगा है कि बगावत दोनों तरफ होगी। अगर ऐसी स्थिति में कुछ सीटों पर बागी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतर गए तो किसी एक का खेल बिगड़ सकता है। टिकट न मिलने पर दल से बगावत कर चुनाव लड़ने का चलन बहुत पुराना है। इस बार होने वाले उपचुनाव भी इस घमासान से अछूते नहीं रहेंगे। भाजपा ने तो तय कर दिया है कि जो विधानसभा सदस्यता और कांग्रेस से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए हैं, उन्हें ही टिकट मिलेगा। इसमें एक-दो फेरबदल भले हो जाएं, लेकिन ज्यादातर सीटों के उम्मीदवार तय हैं। वहीं कांग्रेस असंतुष्ट भाजपा नेताओं को पार्टी में शामिल करवा रही है। ऐसे में वहां भी बहुत से दावेदारों की उम्मीद टूटनी तय है। अब चुनाव लड़ने की आस में अपनी-अपनी जमीन तैयार कर रहे दोनों दलों के नेता टिकट न मिलने पर निर्दलीय भी आ सकते हैं। कई दावेदारों ने अपने समर्थकों को तैयारी में लगा दिया है। प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर कोरोना का इफेक्ट देखने को मिलेगा। खासकर मतदान पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा। सूर्य की तपिश व शीतलहर में मतदाता अपने मत का उपयोग करने से हिचकिचाता है।
अब सवाल है कि कोरोना खौफ के बीच वह वोट डालने के लिए मतदान केंद्र तक जाने की हिम्मत कैसे जुटा पाएगा? इस सवाल ने सियासी दलों के साथ चुनाव आयोग व जिला प्रशासन को भी चिंता में डाल दिया है। संक्रमण के चलते देश की आधी आबादी महिलाएं व वृद्धजन पिछले तीन-चार माह से घरों के अंदर हैं। युवा भी संक्रमण से डरा हुआ है। एक अनुमान के तहत उपचुनाव में वोटिंग बमुश्किल 40 से 45 प्रतिशत ही हो पाएगी। ऐसे में भाजपा व कांग्रेस के सामने मतदाता को वोट डालने के लिए मतदान केंद्र तक ले जाना बड़ी चुनौती होगी। इसी कारण दोनों प्रमुख दलों के रणनीतिकार मतदान केंद्र के कार्यकर्ता पर फोकस कर चुनाव लड़ने की रणनीति बना रहे हैं। दोनों दल अभी से कम वोटिंग प्रतिशत में अपने नफा-नुकसान का गणित लगा रहे हैं। भाजपा व कांग्रेस कोरोना के संक्रमणकाल को ध्यान में रखते हुए अपने चुनाव-प्रचार की रणनीति बना रहे हैं। इसलिए दोनों दलों ने मतदान केंद्र पर फोकस कर रखा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि काफी हद तक कोरोना संकट के बादल छंटने पर चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि संक्रमण का डर तो लोगों में फिर भी रहेगा। इसी बात को ध्यान में रखकर पार्टी ने चुनाव की रणनीति बनाई है। मतदान केंद्र पर भाजपा का 10 प्लस 1 कार्यकर्ता की तैनाती रहेगी। वहीं महिला मोर्चा 5 प्लस 2, युवा मोर्चा 5 प्लस 1 व अन्य प्रकोष्ट भी इसी तरह से मतदान केंद्र पर काम करेंगे।
वहीं कांग्रेस भी संक्रमण को ध्यान में रखते हुए चुनाव की रणनीति बना रही है। पार्टी की जिले से लेकर पर्चा प्रभारी तक मजबूत कड़ी है। जिले के बाद ब्लॉक, मंडलम, सेक्टर व उसके बाद पर्चा प्रभारी बनाए गए हैं। जो कांग्रेस के वोटर को मतदान केंद्र तक लाने का पूरा प्रयास करेंगे। कांग्रेस के नेता केंद्र स्तर पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता से संवाद कर उसे मानसिक रूप से तैयार कर रहे हैं, क्योंकि एक-एक वोट से सरकार का भविष्य तय होना है। कांग्रेस का दावा है कि भाजपा ने जिस खरीद-फरोख्त का सहारा लेकर सरकार गिराई है। इससे लोगों में आक्रोश नजर आ रहा है।
पहली बार जीते पूर्व विधायकों की राह उपचुनाव में आसान नहीं
मध्य प्रदेश में विधानसभा की 27 सीटों के उपचुनाव के लिए अभी तारीख तय नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक दलों ने तैयारी तेज कर दी है। जिन सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें एक दर्जन ऐसे क्षेत्र हैं जहां के विधायक पहली बार कांग्रेस से जीते। लेकिन, इस्तीफा देने के बाद भाजपा में शामिल हो गए। जीतने के महज 15 माह के भीतर ही दल बदलने से उनके सामने कई चुनौतियां हैं। वैसे इन क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए राह आसान नहीं होगी। भाजपा ने कमोबेश अपनी गाइडलाइन साफ कर दी है कि इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल होने वाले कांग्रेस के बागी विधायकों पर ही वह दांव लगाएगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में अंबाह, अशोकनगर, करैरा, ग्वालियर पूर्व, दिमनी, पोहरी, भांडेर, मुरैना, मेहगांव, बड़ामलहरा, नेपानगर, मांधाता और हाटपिपल्या में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार जीते विधायक अब भाजपा में हैं। इन 13 क्षेत्रों में ज्यादातर सीटों पर भाजपा दूसरे नंबर पर रही है। कांग्रेस के बागियों के आने से 2018 के भाजपा उम्मीदवार अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। उन्हें इस बात का डर है कि पार्टी बदलने के बाद मतदाता स्वीकार करेगा कि नहीं। इसके लिए वे अब पूरी तरह भाजपा पर आश्रित हैं।
कोरोना के कारण इस बार महंगे पड़ेंगे उपचुनाव
प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में इस बार सामान्य चुनाव से दोगुना खर्च करना पड़ेगा। क्योंकि कोरोनाकाल में दोगुने से अधिक कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाएगी। इसमें से 50 फीसदी कर्मचारी रिजर्व भी रखे जाएंगे। सामान्य चुनाव में एक मतदान केंद्र पर चार कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। अब छह कर्मचारी तैनात किए जाएंगे। यह अतिरिक्त व्यवस्था कोरोना संक्रमण से बचाव को ध्यान में रखकर की जा रही है। इससे प्रत्येक उपचुनाव का खर्च करीब एक करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। इस विधानसभा उपचुनाव में कई ऐसे खर्च होंगे, जो सामान्य चुनाव में नहीं होते हैं। सैनेटाइजर, मास्क, मतदान सामग्री का सैनेटाइजेशन और अतिरिक्त मानव संसाधन का इंतजाम भी रहेगा। सोशल डिस्टेंसिंग के चलते वाहनों की संख्या भी दो से तीन गुना बढ़ाना पड़ेगी। इसमें पोलिंग पार्टी को मतदान केंद्रों तक पहुंचाने के लिए बड़े वाहनों का उपयोग किया जाएगा। मतदान कक्ष छोटे कमरों में बनाने के बजाय बड़े कमरों में बनाने के निर्देश कलेक्टरों को दिए गए हैं। इससे जहां एक विधानसभा चुनाव 50 से 75 लाख रुपए में होता रहा है, वहां अब एक करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने की संभावना है। उपचुनाव के लिए ईवीएम की प्रथम चरण की जांच पूरी हो गई है। चुनाव की घोषणा के बाद दूसरे चरण की जांच की जाएगी। इसमें 10 से 11 हजार मशीन उपयोग में लाई जाएंगी और 10 हजार मशीन रिजर्व रहेंगी।
- कुमार राजेन्द्र