अफसाना-ए-राहत
21-Aug-2020 12:00 AM 546

 

हिन्दुस्तान ही नहीं वर्तमान दौर में सारी दुनिया के श्रेष्टतम शायरों में शुमार राहत इंदौरी का यूं अचानक चले जाना हिन्दी-उर्दू की साझा विरासत के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं है। खासतौर पर ऐसे समय में जब वो बुलंदियों के शिखर पर थे और उनकी  तमाम शायरी न केवल हर पीढ़ी की •ाबान  पर थी वरन् पूरी दुनिया और सरहदों के पार भी दूसरे मुल्कों में उनकी लोकप्रियता का वही मुकाम था जो उन्हें हिन्दुस्तान में हासिल था।

मेरी इस जादुई शायरी वाले असीम फनकार डॉ. राहत इंदौरी से पहली मुलाकात करीब 40 साल पहले राजस्थान में मेरी जन्मस्थली राजाखेड़ा गांव में एक छोटे से मेले के कवि सम्मेलन में हुई। राहत साहब उस कवि सम्मेलन के मुख्य आकर्षण थे और नवोदित कवि के रूप में मुझे भी अपनी एक-दो रचनाएं सुनाने का मौका उस मंच पर मिला था। खैर लोग तो वहां राहत साहब को ही सुनने आए थे और उन्होंने लोगों की फरमाइश पर पूरे एक घंटे तक अपनी शायरी से महफिल को नई ऊंचाइयां दी थीं। कार्यक्रम के बाद जब मैंने उनसे हाथ मिलाना चाहा, उन्होंने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, बच्चे इसी तरह पढ़ते-लिखते रहो, तुम्हारा कॉन्फिडेंस बहुत अच्छा है। मंच पर इस छोटी-सी मुलाकात के बाद कुछ सालों बाद मेरा चयन भारतीय पुलिस सेवा में हुआ और मुझे मध्यप्रदेश कैडर  मिला। फिर 15 साल बाद उनसे मेरी दूसरी मुलाकात ग्वालियर मेले के कवि सम्मेलन में हुई तो मैंने उनको बचपन की अपनी यादों का स्मरण कराया। इस बार मंच पर मेरे कविता पाठ के दौरान उन्होंने पुरजोर हौसला आफजाई की। फिर तो विगत 25 सालों में मैंने उनके साथ मप्र और मप्र से बाहर पचासों मंच साझे किए होंगे, हालांकि ज्यादातर हमारी  मुलाकात भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, सूरत और हैदराबाद के मंचों पर ही हुई।

मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग एवं भारत भवन में मेरी पदस्थापना के दौरान उनसे मेरी निकटता और बढ़ी और फिर उन्होंने अपनेपन से मुझे पवन भाई कहना शुरू कर दिया था। मंच पर मुझे उनका फक्कड़ और सूफीयाना अंदाज बहुत भाता था। चाहे मुशायरे का मंच हो या कवि सम्मेलन का, राहत इंदौरी के मंच पर आते ही पूरे माहौल और भीड़ में एक नया उल्लास छा जाता था। वो हमेशा कहते थे कि मुझे जरा ध्यान से सुनना, क्योंकि मेरा पता नहीं है कब मैं कोई अच्छा शेर पढ़ दूं। मेरी उज्जैन में आईजी के रूप में पदस्थापना के दौरान वहां उनका आना-जाना बहुत होता था और जब किसी मंच पर मैं अतिथि या कवि के रूप में उपस्थित होता था तो वो हमेशा ये बात कहते थे कि पवन साहब आईजी होंगे आपके लिए, पर हैं तो हमारे ही कुनबे के। यूं तो मंच एवं मंच से परे उनके साथ बिताए गए पलों के सैंकड़ों किस्से हैं, पर कुछ संस्मरण ऐसे हैं जो यकीनन मेरे साथ ताउम्र रहेंगे। वे संस्मरण केवल उनकी जिंदादिल शायरी के नहीं, वरन् उनके बड़प्पन और इंसानियत के हैं।

 राहत भाई हिन्दुस्तान में कहीं भी जाते थे और पुलिस से उनको कोई भी दिक्कत आती थी तो तुरंत मुझे फोन लगाते थे। अभी 2018 के विधानसभा चुनाव में ऐसे ही इनका अचानक फोन आया कि पवन भाई भोपाल में आपकी पुलिस ने मुझे पकड़ लिया है और मुझे जाने नहीं दे रहे हैं। मेरा परिचय पूछ रहे हैं। तो उन्होंने फोन वहां के थाना प्रभारी को थमा दिया, जब मैंने उनसे बात की तो माजरा ये समझ में आया कि राहत भाई कहीं से 2-3 आयोजन करके लौटे थे और उन्हें आयोजन से जो नगद राशि मिली थी वो चुनाव आयोग की आचार संहिता की तुलना में कहीं ज्यादा थी तो पुलिस वाले उनसे उस राशि का सोर्स पूछ रहे थे,  तो मैंने उनको कहा कि ये भारत के बड़े शायर हैं और आमतौर पर मुशायरों और कवि सम्मेलनों में इनको बड़े लिफाफे मिलते हैं, तो इनके पास इतनी नगदी का होना स्वाभाविक है। जहां तक बात है आचार संहिता के उल्लंघन की, तो आपको कार्यक्रम के आयोजकों से असलियत पता करनी होगी कि उन्होंने ही इनको ये राशि दी है, या फिर आप चाहें तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को सूचित कर दें ताकि वो इनसे जानकारी प्राप्त कर लेगें। खैर पुलिस ने उन्हें तुरंत जाने दिया। ऐसे बहुत से किस्से हैं जब भी वो किसी पुलिस चैकिंग में या एयरपोर्ट पर कहीं कोई दिक्कत आती थी, तो मुझे यदाकदा पूरे अधिकार से फोन कर लेते थे और मुझे भी हमेशा उनकी मदद करके एक संतुष्टि मिलती थी।

इंदौर के लोगों में राहत भाई के प्रति जो सम्मान, जो मोहब्बत, जो श्रद्धा थी, उसका मैं वर्णन शब्दों में नहीं कर सकता। हिन्दुस्तान में शायद ही किसी शायर या कवि को उसके शहर में लोग इतनी मोहब्बत करते होंगे और इसका यही प्रमाण है कि जब इस साल जनवरी में उनके 70 साल पूरे होने पर जश्न-ए-राहत कार्यक्रम हुआ तो उसमें देश के सभी बड़े नामचीन शायर मुनव्वर राणा, जावेद अख्तर, वसीम बरेलवी ही नहीं, कुमार विश्वास जैसे देश के श्रेष्टतम कवि भी उस जलसे में पहुंचे थे और जिस सभागार में मात्र 5-7 हजार लोग ही समा सकते थे, वहां पूरे 10-12 हजार लोग प्रांगण के बाहर सड़कों तक मौजूद थे। वैसे तो राहत भाई का फलसफा जिंदादिली और पॉजिटिविटी का ही था। उनकी शायरी भी सूफियाना, कलंदर और वतन परस्ती की है। अपनी बात को बेबाकी से बेखौफ कहने का उनका अंदाज दूसरे शायर और कवियों से उन्हें अलग करता था। लेकिन कोरोना काल में वो बड़े व्यथित हो गए थे। विशेषकर जब उनकी अपनी मिट्टी के शहर इंदौर में जब पुलिस और  स्वास्थ्यकर्मियों पर कुछ उपद्रवियों ने हमला किया तो उन्होंने न केवल उन उपद्रवियों को फटकार लगाई वरन् अपने ट्वीट और वीडियो के माध्यम से सोशल मीडिया में लोगों से डॉक्टर, पुलिस और प्रशासन के लोगों का सम्मान करने और उनकी बात मानने की सलाह भी दी। मैंने इस दौर में कई बार उनसे बात की वो हालात से थोड़े चिंतित और परेशान नजर  आते थे। मैंने वहां के स्थानीय पुलिस अधिकारी और पुलिस अधीक्षक के उनको नंबर भी दिए और पुलिस अधिकारियों को अवगत भी कराया कि कभी भी उन्हें कोई जरूरत हो, शहर में लॉकडाउन हो या किसी अन्य कारण से उनको तकलीफ ना हो। हालांकि, मेरे बात करने से उनको एक दिलासा तो मिलता था लेकिन वो ये हमेशा कहते थे कि मैं एक कैदी की तरह रह रहा  हूं पता नहीं कब इस कैद से बाहर निकलूंगा।

अब वो हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी, उनके नगमें उनकी गजलें, उनके किस्से हमारे बीच हैं और रहेंगे। उनकी शायरी यकीनन कालजयी है जो सदियों तक उनको जिंदा रखेगी। और हम जैसे लोग ये फख्र कर पाएंगे कि हमने उनको बहुत करीब से देखा था।

आने वाली नस्लें तुम पर नाज करेंगी हमअसरों

जब उनको मालूम चलेगा तुमने राहत को देखा था।

-पवन जैन

(लेखक- भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और वरिष्ठ कवि हैं।)

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