लोकसभा चुनाव के पहले 22 फरवरी 2019 को जबलपुर में जिस बहुप्रतिक्षित मध्यप्रदेश के सबसे बड़े फ्लाई ओवर की आधारशिला खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रखी थी वह एक बार फिर विवादों में फंसती नजर आ रही है। हालांकि स्वॉइल टेस्टिंग से फ्लाइओवर का निर्माण कार्य शुरू हो गया है। यह काम एनसीसी कंपनी करवा रही है, जिसे इस फ्लाई ओवर को बनाने का ठेका मिला है। उधर, टेंडर प्रक्रिया से अयोग्य घोषित की गई यूपी स्टेट ब्रिज कॉर्पोरेशन लिमिटेड कंपनी हाईकोर्ट पहुंच गई है। कंपनी ने आरोप लगाया है कि टेंडर प्रक्रिया में नियमों को दरकिनार करते हुए उसे अयोग्य घोषित कर ज्यादा बोली वाली एनसीसी को यह काम दिया गया है। इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है।
गौरतलब है कि जबलपुर के दमोह नाका से लेकर मदन महल तक बनने वाले इस ऐलिवेटिड फ्लाइओवर का निर्माण करीब 7 किलोमीटर लंबाई का होगा जिसकी लागत 758.54 करोड़ है। बार-बार टेंडर की प्रक्रिया और राजनीति की भेंट चढ़ी इस कार्ययोजना के निर्माण का ठेका एनसीसी प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया है। जानकारी के अनुसार मामला कोर्ट में है फिर भी लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने एनसीसी से स्वॉइल टेस्टिंग का कार्य शुरू करा दिया है। करीब दो सौ प्वाइंटस पर स्वॉइल टेस्टिंग का काम किया जाएगा। पूरे फ्लाइओवर में करीब 200 पिलर खड़े किए जाएंगे जिसकी स्वॉइल टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद गहराई का काम किया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि जब मामला हाईकोर्ट में चल रहा है तो विभाग को इतनी हड़बड़ी क्यों है? इसमें कहीं न कहीं मिलीभगत और भ्रष्टाचार की बू आ रही है।
गौरतलब है कि दमोह नाका से मदनमहल के बीच बनने वाले फ्लाईओवर की टेंडर प्रक्रिया से अयोग्य घोषित यूपी स्टेट ब्रिज कॉर्पोरेशन लिमिटेड कंपनी ने पूरी प्रक्रिया को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने विगत दिनों मामले की वीडियो कॉन्फे्रंसिंग से हुई सुनवाई के बाद राज्य सरकार व अन्य को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए हैं।
लखनऊ (उप्र) की यूपी स्टेट ब्रिज कॉर्पोरेशन लिमिटेड की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि जबलपुर के दमोह नाका से मदन महल तक प्रस्तावित फ्लाई ओवर बनाने के लिए बुलाई गई निविदा में उसने भी टेंडर भरा था। 11 मार्च को याचिकाकर्ता कंपनी को उसके एक कर्मचारी पर दर्ज आपराधिक मुकदमे की जानकारी छिपाने के आरोप में इस टेंडर की प्रक्रिया से अयोग्य ठहरा दिया गया था। याचिकाकर्ता कंपनी का दावा है कि जिस मुकदमे को आधार बनाकर उसे टेंडर से अयोग्य घोषित किया गया, उस मुकदमे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है। ऐसे में निविदा जमा करते समय कंपनी के खिलाफ कोई प्रकरण लंबित नहीं था। ऐसे में 6 मार्च को उसे अयोग्य घोषित किया जाना न्याय संगत नहीं है। कंपनी का यह भी दावा है कि फ्लाई ओवर के निर्माण का ठेका एक ऐसी कंपनी को दे दिया गया, जिसकी राशि याचिकाकर्ता से 85 करोड़ रुपए अधिक है। इस टेंडर की वजह से सरकार पर 85 करोड़ रुपए के भुगतान का अनावश्यक भार पड़ेगा। याचिका में मप्र सरकार के लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव, चीफ इंजीनियर, हैदराबाद की एनसीसी लिमिटेड और मुंबई की एफकॉन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को पक्षकार बनाया गया है। अभी हाईकोर्ट का फैसला आना बाकी है, लेकिन अफसरों ने आनन-फानन में फ्लाई ओवर का काम शुरू करवा दिया है।
गौरतलब है कि मार्च 2019 में भी इस फ्लाई ओवर का टेंडर रद्द हो चुका है। इसके पीछे की वजह ठेकेदार द्वारा की जा रही लापरवाही बताई जा रही है। ज्ञात हो कि जब से मदनमहल से दमोह नाका फ्लाई ओवर निर्माण की बात की जा रही थी कुछ ना कुछ परेशानी सामने आ रही थी। पहले रेलवे ने भी अपनी जमीन पर दो खंभे लगाने की परमिशन देने से मना कर दिया था। उसके बाद मार्च 2019 में फ्लाई ओवर निर्माण का टेंडर जिस कंपनी को दिया गया था, उसे रद्द कर दिया गया था। बताया जाता है कि पीडब्ल्यूडी ने गुजरात की एजेंसी रंजीत बिल्डकॉन को इसका टेंडर दिया था। लेकिन कंपनी ने ठेका लेकर मप्र लोक निर्माण विभाग से अनुबंध नहीं किया था। इसलिए पीडब्ल्यूडी ने यह ठेका निरस्त करके कंपनी द्वारा जमा 616 लाख रुपए जब्त कर लिए।
भवन विशषज्ञों के हवाले परियोजना
सूत्र बताते हैं कि इस बहुप्रतीक्षित परियोजना में हर स्तर पर गलती हुई है। दरअसल, इस परियोजना का संपादन मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग सेतु परिक्षेत्र भोपाल के अधीनस्थ अधीक्षण यंत्री, कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण विभाग सेतु संभाग जबलपुर को करना था क्योंकि यह प्रोजेक्ट सेतु विभाग के ही इंजीनियर पूरा करने में सक्षम होते हैं दूसरे नहीं। परंतु दलाली के चक्कर में परियोजना को पूरा करने के लिए सेतु विशेषज्ञों से हटाकर भवन विशेषज्ञों अर्थात कार्यपालन यंत्री जबलपुर संभाग भवन, रोड-2 को सौंप दिया गया। सरकार द्वारा अनुमोदित मंत्री समूह की समिति ने इसका निर्माण लोक निर्माण विभाग सेतु संभाग से कराने की अनुशंसा की थी। परंतु तत्कालीन कमलनाथ सरकार के एक स्थानीय मंत्री ने इसे अपने अधिक फायदे के लिए लोक निर्माण भवन, सड़क विभाग के कार्यपालन यंत्री को उपकृत करने के लिए सेतु विभाग के बजाय लोक निर्माण विभाग भवन, सड़क के लोक निर्माण संभाग 2 जबलपुर को स्थानांतरित कर दिया। हालांकि सरकार बदलने के बाद लगातार मिल रही शिकायतों के चलते 24 अप्रैल को पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन प्रमुख अभियंता मेहरा ने आदेश निकालकर प्रोजेक्ट को मुख्य अभियंता लोक निर्माण सेतु परिक्षेत्र भोपाल के अंतर्गत अधीक्षण यंत्री एवं कार्यपालन यंत्री सेतु संभाग लोक निर्माण विभाग जबलपुर द्वारा संपादित कराने को कहा। परंतु 29 अप्रैल को उपरोक्त आदेश निरस्त कर दिए गए और कहा गया कि फ्लाई ओवर का काम अब भवन, सड़क संभाग-2 के अधीक्षण, कार्यपालन यंत्री द्वारा संपादित किया जाएगा। 6 मई को रातो-रात चार्ज भी हैंड ओवर करने के आदेश के बाद अब सेतु निर्माण का काम सेतु के इंजीनियर के बजाय भवन, सड़क के कार्यपालन यंत्री गोपाल गुप्ता द्वारा संपादित किया जा रहा है।
- जबलपुर से सिद्धार्थ पाण्डे