इस बार बदले-बदले नजर आ रहे शिवराज
04-Jun-2020 12:00 AM 405

 

देश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान की पहचान एक ऐसे नेता के रूप में होती है जो संतुलित, संगठित, संयमित और सहज भाव से राजनीति करते हैं। लेकिन इस बाद वे बदले-बदले नजर आ रहे हैं। उनमें न तो पहले जैसे तेवर हैं और न ही ऊर्जा। इससे ऐसा लग रहा है जैसे वे राजनीतिक दबाव में हैं।

15माह पुराने कमलनाथ सरकार के पतन के बाद शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला तो उनके चेहरे पर पहले की तरह ऊर्जा और आभा नजर आई। उन्होंने इसी तेवर के साथ करीब 1 महीने तक सत्ता का संचालन किया, लेकिन 21 अप्रैल को मंत्रिमंडल गठन के साथ ही उनके तेवर बदल गए। इससे ऐसा लग रहा है जैसे वे किसी दबाव में हैं। सूत्रों की मानें तो इस बार आलाकमान की तरफ से उन्हें फ्री हैंड नहीं मिला है। इसलिए वे गाइडलाइन में बंधकर काम कर रहे हैं। इसका असर यह हो रहा है कि शासन के साथ ही प्रशासन में भी उनकी धमक फीकी पड़ गई है।

इसके इतर अगर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के 15 माह के शासनकाल को देखें तो उसमें और शिवराज सिंह चौहान के इस शासनकाल में जमीन-आसमान का अंतर नजर आ रहा है। जहां शिवराज सिंह चौहान की ब्यूरोक्रेसी पर कमांड नजर नहीं आ रहा है, वहीं कमलनाथ के सामने पूरी ब्यूरोक्रेसी नतमस्तक रहती थी। कमलनाथ ने 15 माह के शासनकाल के दौरान भले ही जिलों में दस्तक नहीं दी, लेकिन मंत्रालय से लेकर जिला प्रशासन तक में उनकी धमक दिखाई देती थी। जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार में मंत्री रहने के कारण कमलनाथ को इसका अनुभव पर्याप्त है कि नौकरशाही पर किस तरह नियंत्रण रखा जाए। हालांकि इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। कमलनाथ नौकरशाही पर नकेल कसने में लगे रहे और उनका कुनबा उनके नियंत्रण से बाहर होता चला गया।

जहां तक शिवराज सिंह चौहान की इस पारी का सवाल है तो अभी तक यह देखने को मिला है कि उनका न तो शासन पर और न ही प्रशासन पर नियंत्रण है। सरकार में जो 5 मंत्री शामिल हैं। उन्हें देखकर यह तो साफ दिखता है कि उन पर मुख्यमंत्री का नियंत्रण नहीं है। क्योंकि वे अलग-अलग गुटों से आए हुए हैं। दरअसल, कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से सत्ता छीनने के लिए भाजपा ने जिस तरह एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, अलग-अलग गुटों को साथ लेकर चलना उसकी मजबूरी थी। सरकार बन जाने के बाद ये सभी गुट सत्ता में अपने प्रतिनिधित्व को लेकर उतावले हो रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज चाहकर भी सभी गुटों को संतुष्ट नहीं कर सकते। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने बीच का रास्ता निकाला, जिसमें सभी गुटों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें साधने की कोशिश की गई है। जिन पांच मंत्रियों ने शपथ ली है उसमें कमल पटेल का नाम चौंकाने वाला है। कमल पटेल पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के खेमे के माने जाते हैं। शिवराज की पिछली सरकार में भी मंत्री रहे हैं। उस दौरान उन्होंने अपनी ही सरकार पर अवैध खनन को लेकर कई तरह के आरोप लगाए थे, जिसके चलते मुख्यमंत्री शिवराज की फजीहत हो चुकी है। माना जा रहा था कि शिवराज उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है।

यही हाल मंत्रिमंडल विस्तार की कवायद को भी देखकर लग रहा है। पिछले एक माह से अधिक समय से मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें लगाई जा रही हैं। सूची बनने और बिगड़ने की खबरें आ रही हैं। जिस तरह मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर रोज समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं उससे साफ लग रहा है कि इस सरकार में शिवराज सिंह चौहान की भी नहीं चल पा रही है। दरअसल, भाजपा सूत्रों की मानें तो इस बार की शिवराज सिंह चौहान की सरकार में भाजपा, संघ और सिंधिया की तिकड़ी का जोर है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि तीनों में संतुलन साधने में शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को रोज पसीना बहाना पड़ रहा है। आलम यह है कि शिवराज सिंह चौहान को कई मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। जहां एक तरफ उन्हें कोरोना वायरस के संक्रमण के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ रही है वहीं उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार के लिए संतुलन बनाना पड़ रहा है। उसके ऊपर आलम यह है कि अफसरों को भी साधना पड़ रहा है। इस तरह कई मोर्चों पर जूझ रहे शिवराज सिंह चौहान के लिए इस बार सरकार चलाना चुनौती भरा काम है। अब देखना यह है कि मंत्रिमंडल के विस्तार में वे अपने पसंदीदा विधायकों को मंत्री बनवा पाते हैं या नहीं।

ब्यूरोक्रेसी पर कमांड नहीं

अपनी चौथी पारी में शिवराज सिंह चौहान फ्री हैंड होकर काम नहीं कर पा रहे हैं। इसका असर यह हो रहा है कि ब्यूरोक्रेसी निरंकुश हो गई है। खासकर इनके इस शासनकाल में महिला आईएएस अधिकारियों की निरंकुशता तो हद पार कर रही है। अभी हाल ही में कोरोना संक्रमण के इस दौर में सागर और खंडवा कलेक्टर की लापरवाही सामने आ चुकी है। सरकार के निर्देशों के बाद भी सागर की कलेक्टर रहीं प्रीति मैथिल और खंडवा की कलेक्टर रहीं तन्वी सुंद्रियाल ने कोरोना संक्रमण के लिए जारी निर्देशों का पालन नहीं किया। इन दोनों के खिलाफ स्थानीय नेताओं ने भी शिकायत की। उसके बाद मुख्यमंत्री इन्हें हटाने के लिए मजबूर हुए। वहीं दो अन्य जिलों रतलाम और शिवपुरी की कलेक्टर की भी शिकायतें सरकार के पास पहुंच रही हैं। सूत्र बताते हैं कि रतलाम कलेक्टर रूचिका चौहान की भी विदाई की तैयारी कर ली गई है। जल्द ही उनके स्थान पर किसी अन्य को पदस्थ किया जा सकता है। वहीं शिवपुरी कलेक्टर अनुग्रह पी. की भी कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर महिला कलेक्टर सरकार के निर्देशों का पालन क्यों नहीं कर रही है। कहीं ऐसा तो नहीं इन महिला अफसरों पर किसी और का प्रभाव है।

- जितेन्द्र तिवारी

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^