मास्टर स्ट्रोक
04-Jun-2020 12:00 AM 320

 

मप्र में 24 विधानसभा सीटों पर आने वाले समय में होने वाला उपचुनाव किसी महायुद्ध से कम नहीं होगा। दरअसल, इन सीटों के चुनाव परिणाम सरकार की दिशा और दशा तय करेंगे। इसके लिए अभी से रणनीति बनने लगी है। तू डाल-डाल, मैं पाथ-पाथ की तर्ज पर भाजपा और कांग्रेस  गोटियां बिछा रही है। हालांकि मैदानी तैयारी में भाजपा कांग्रेस से फिलहाल काफी आगे है। 

 मध्य प्रदेश की सियासत में आगामी विधानसभा उप चुनाव को लेकर सरगर्मियां अब साफ तौर पर दिखने लगी हैं। जैसे-जैसे कोरोना फीवर कम हो रहा है, राजनीति गहरी होती जा रही है। ऐसे समय में उपचुनाव से ठीक पहले मप्र भाजपा ने ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों पर मास्टर स्ट्रोक खेला है। भाजपा ने तीन राज्यों को जोड़ने वाले 'चंबल एक्सप्रेस-वेÓ का नाम बदलकर 'चंबल प्रोग्रेस-वेÓ कर दिया है। इस प्रोजेक्ट का काम जल्द शुरू होगा और इसके लिए भूमिपूजन का ऐलान भी जल्दी ही होगा। माना जा रहा है कि 24 सीटों पर उपचुनाव के कारण सरकार इसे लेकर हड़बड़ी में दिखाई दे रही है क्योंकि 16 विधानसभा सीटें इसी ग्वालियर चंबल इलाके में हैं। इसके बाद कांग्रेस भी अलर्ट मोड पर आ गई है और मुख्यमंत्री शिवराज एवं भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर झूठ बोलकर प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेने का गंभीर आरोप लगाया है।

दरअसल, केंद्र सरकार के भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश के मुरैना से राजस्थान के कोटा तक 352 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेस-वे बनाया जाना है। इस प्रोजेक्ट की डीपीआर बनाने और जमीन अधिग्रहित करने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है लेकिन इसे बनाने का दारोमदार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के जिम्मे है। चंबल प्रोग्रेस-वे से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित तीन जिलों को आपस में जोड़ा जाना है। 8 लेन का ये एक्सप्रेस-वे चंबल नदी के किनारे बनाया जाना प्रस्तावित है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से राज्य सरकार ने सहमति ले ली है।

ये भी बता दें कि चंबल-प्रोग्रेस-वे ग्वालियर चंबल इलाके के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। चंबल के विकास के लिए यह महापथ होगा। इसके जरिए औद्योगिक इकाइयां और व्यापारिक व्यवस्थाएं बनाई जाएंगी। प्रदेश की जिन 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है, उसमें से 16 विधानसभा सीटें इसी ग्वालियर चंबल इलाके में हैं। चूंकि जून के बाद कभी भी उपचुनावों का ऐलान किया जाना संभावित है, उससे पहले-पहले शिवराज सरकार प्रोजेक्टिव का भूमिपूजन कर नींव का पत्थर गाड़ देना चाहती है। इसी कारण सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर हड़बड़ी में दिखाई दे रही है।

मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार, 'चंबल एक्सप्रेस-वे बनाने का जो फैसला भाजपा सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में किया था। इसे कांग्रेस सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। अब प्रदेश की भाजपा सरकार एक नए प्रारूप में चंबल एक्सप्रेस-वे को चंबल प्रोग्रेस-वे के नाम से तैयार करेगी।Ó

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चंबल एक्सप्रेस-वे के काम को फिर से शुरू करने को लेकर भाजपा के राज्यसभा उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया है। शिवराज की घोषणा के बाद सिंधिया ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट को कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इसके लिए सिंधिया ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का भी आभार जताया। सिंधिया ने एक ट्वीट करते हुए लिखा, 'पूर्व की कांग्रेस सरकार ने चंबल के विकास, प्रगति और उन्नति को गति देने के लिए बनने वाले 'चंबल एक्सप्रेस-वेÓ को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, उसे आज मप्र सरकार ने 'चंबल प्रोग्रेस-वेÓ के नाम से तुरंत बनाने का निर्णय लिया है।Ó

अब इस प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेने में कांग्रेस भी कहां पीछे रहने वाली है। यही वजह है कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान भी इस एक्सप्रेस-वे की याद पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार को भी आ रही है। कांग्रेस ने एक्सप्रेस-वे को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज के बयान पर जवाबी हमला बोलते हुए इस प्रोजेक्ट को अपना बताया है। इस संबंध में पूर्व पीडब्लूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा, 'चंबल एक्सप्रेस-वे को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया झूठ बोल रहे हैं। चंबल एक्सप्रेस-वे कांग्रेस के प्रयासों से शुरू हुई बहुआयामी योजना है। इसके लिए कांग्रेस ने हर स्तर पर प्रयास किए हैं।Ó चूंकि पूर्व कांग्रेस नेता सिंधिया के भाजपा में जाने और एकसाथ 24 विधायकों के इस्तीफे देने के चलते कमलनाथ सरकार के हाथों से प्रदेश की कमान निकलकर फिर से शिवराज सिंह के हाथों में आई है, ऐसे में कांग्रेस सत्ता की बागड़ौर फिर से हथियाने के मूड में है। कांग्रेस नेता पहले ही इस बात की भविष्यवाणी कर चुके हैं कि आगामी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर झंडा मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ ही फहराएंगे। इस बात का सीधा-सीधा मतलब ये है कि कांग्रेस 24 सीटों पर होने वाले उपचुनावों में जीत के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती।

उधर, भाजपा को जिताने के लिए संघ ने मोर्चा संभाल लिया है। भाजपा और संघ ने सभी सीटों पर पूर्णकालिकों को तैनात कर दिया है। गौरतलब है कि उपचुनाव के परिणाम पर सरकार का भविष्य निर्भर है। इसलिए भाजपा और संघ ने चुनावी घोषणा से पहले संघ के पूर्णकालिकों को विधानसभावार जिम्मेदारी सौंप दी है। ये पूर्णकालिक सभी 24 सीटों पर बूथ स्तर की कमेटियां बनाएंगे, साथ ही निचले स्तर पर नेताओं की नाराजगी को दूर करने के साथ बात करेंगे। इन्हें भाजपा के साथ बूथों पर सिंधिया के लोगों के साथ समन्वय बिठाकर टीमें बनाने को कहा गया है। उपचुनाव वाले क्षेत्र में तैनात पूर्णकालिकों को यह भी सर्वे करना है कि क्षेत्र में संभावित उम्मीदवार के पक्ष में क्या माहौल है। गौरतलब है कि भाजपा की ओर से 22 सीटों पर उम्मीदवार लगभग तय हैं। कुछ क्षेत्रों में उम्मीदवार को लेकर विरोध के स्वर उठ रहे हैं। ऐसे में पूर्णकालिकों को समन्वय बनाना है। साथ ही हर सप्ताह संगठन को रिपोर्ट भेजनी है। उस रिपोर्ट के आधार पर संघ और भाजपा अगला कदम उठाएंगे। भाजपा के सभी उम्मीदवार आयतित हैं। इस कारण से उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य बैठाना पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है। इन विधानसभा क्षेत्रों से लंबे अरसे से काम कर रहे नेता भी इन उम्मीदवारों का ईमानदारी से साथ देंगे, या फिर औपचारिकता निभाएंगे।

भाजपा सूत्रों के अनुसार, 22 में से करीब आधा दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा कार्यकर्ता सिंधिया समर्थक नेताओं को महत्व नहीं दे रहे हैं। यही नहीं संगठन में भी सिंधिया और उनके समर्थकों को अधिक भाव नहीं मिल रहा है। एक समय था जब ग्वालियर चंबल संभाग के 8 जिलों में कांग्रेस के वार्ड अध्यक्ष की नियुक्ति भी सिंधिया से पूछे बिना नहीं होती थी। लेकिन भाजपा ने सिंधिया के ग्वालियर में ही संगठन के जिला एवं ग्रामीण अध्यक्षों की नियुक्ति करते समय सिंधिया को पूछा तक नहीं है। भाजपा संगठन में हुई नियुक्तियों के बाद सिंधिया समर्थकों में हलचल तेज हुई है। समर्थकों का मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया बेशक भाजपा में आकर सत्ता की नजदीकी हासिल कर लें, लेकिन फिलहाल संगठन स्तर पर उन्हें और उनके समर्थकों को महत्व नहीं दिया जा रहा है। भाजपा कार्यालयों में लगे बैनर, पोस्टर में शिवराज सिंह चौहान, वीडी शर्मा, नरेंद्र सिंह तोमर तो दिखते हैं, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा अभी किसी बैनर में दिखाई नहीं देता।

भाजपा के सामने बड़ी चुनौती

भाजपा के सिर पर भी सरकार बचाए रखने का भारी बोझ है। कांग्रेस को बराबरी का मुकाबला करने के लिए कम से कम 15 सीटों पर जीत की जरूरत है। ऐसे में कांग्रेस उक्त प्रोजेक्ट का क्रेडिट लेकर इलाके की 16 विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा करने की फिराक में है। वैसे ये सभी सीटें कांग्रेस के कब्जे में ही थी। वहीं ग्वालियर के महाराज भी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। वैसे तो यहां से जीते सभी विधायक सिंधिया खेमे के ही हैं, लेकिन अचानक से इस्तीफा देकर दल बदलने से इन सभी की छवि पर गहरा असर पड़ा है। ऐसे में दोनों ही पार्टियों के लिए यहां सीटें जीतना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। ऐसे में इस सेतु का क्रेडिट लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां जीत का रास्ता पार करना चाह रही हैं।

ग्वालियर-चंबल पर खास नजर

उपचुनावों को लेकर यदि कांग्रेस की बात करें, तो उसे उम्मीदवार खोजने में ही कठिनाई आ रही है। क्योंकि पहली बार ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस पार्टी सिंधिया के बिना चुनाव लड़ेगी। सिंधिया और भाजपा की चुनौती से कांग्रेस को लड़ना होगा। इसी कारण भाजपा के कुछ प्रभावशाली नेताओं से कांग्रेस संपर्क कर रही है। 15 साल प्रदेश में शासन करने के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल ने ही चौथी बार भाजपा को सरकार बनाने में बैरिकेट्स लगा दिया था। एक बार फिर ग्वालियर-चंबल अंचल को तय करना है कि भोपाल में शिवराज सरकार रहेगी या फिर कमलनाथ सरकार की वापसी होगी। क्योंकि उपचुनाव में अंचल की 16 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है। इनमें से 15 विधानसभा क्षेत्रों से चुने गए विधायकों के कारण ही कांग्रेस सरकार से बाहर हुई है। उपचुनाव के मद्देनजर भाजपा ने मैदानी जमावट के साथ ही अपने विधायकों और नेताओं की निगरानी भी बढ़ा दी है। इसके लिए हर विधानसभा क्षेत्र में कुछ चुनिंदा भाजपा कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को यह जिम्मेदारी दी जाएगी कि वे विधायक और नेताओं की एक-एक रिपोर्ट भेजें। संघ सूत्रों के अनुसार, 2018 का विधानसभा चुनाव भाजपा अपने मंत्रियों और कुछ विधायकों की कार्यप्रणाली के कारण हारी थी। इसलिए संघ ने विधायकों की कार्यप्रणाली दुरुस्त रखने के लिए अभी से अपने अय्यारों को मुस्तैद कर दिया है। बताया जाता है कि संघ द्वारा तैनात कार्यकर्ता कर सप्ताह विधायक की कार्यप्रणाली की रिपोर्ट भेजेंगे। फिर रिपोर्ट के आधार पर विधायक को दिशा-निर्देश दिए जाएंगे। उधर, भाजपा का किसान मोर्चा किसानों और श्रमिकों के बीच कोविड-19 को माध्यम बनाकर सक्रिय हो गया है। वह किसानों को गमछा और काढ़ा बांट रहा है। साथ ही भाजपा को जिताने की अपील भी कर रहा है। 

- भोपाल से अरविंद नारद

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