विरासत की वक्रदृष्टि
21-Jul-2020 12:00 AM 587

 

गांधी परिवार पर विरासत की कैसी वक्रदृष्टि पड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) से शुरू हुई कहानी अब गांधी परिवार से जुड़े तीन और संस्थानों - इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट, राजीव गांधी फाउंडेशन तक पहुंच चुकी है। 

करीब 70 वर्षों तक देश की सत्ता पर आसीन रहा नेहरू-गांधी परिवार आज भ्रष्टाचार के अनेक आरोपों से घिरा हुआ है। इस परिवार की देखरेख में चल रही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के इतने नए और बड़े मामले सामने आए कि 2014 में जनता ने इस गठबंधन से किनारा कर लिया और अब तो लगता है कि जनता में खासकर गांधी परिवार के प्रति विशेष नाराजगी है। शायद यही वजह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार राहुल गांधी विरासत में मिली उप्र की अमेठी सीट से चुनाव हार गए।

दरअसल, ताजा घटनाक्रमों को देखेंगे तो लगेगा कि गांधी परिवार पर विरासत की ही वक्रदृष्टि पड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाहर लाल नेहरू की नीतियों पर बार-बार प्रहार किया तो राजीव गांधी के 'एक रुपए भेजता हूं तो 10 पैसे ही मिलते हैं’ वाले बयान को यह कहकर भुनाया कि दरअसल कांग्रेस पार्टी, खासकर गांधी परिवार की अगुवाई में भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। बहरहाल, गांधी परिवार पर विरासत की कैसी वक्रदृष्टि पड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) से शुरू हुई कहानी अब गांधी परिवार से जुड़े तीन और संस्थानों- इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट, राजीव गांधी फाउंडेशन तक पहुंच चुकी है।

गृह मंत्रालय ने गांधी परिवार से जुड़े इन तीन ट्रस्टों की जांच के लिए एक समिति बनाई है। इन पर वित्तीय लेनदेन में गड़बड़ी के आरोप हैं। तीनों ट्रस्ट पर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट और इनकम टैक्स एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन का आरोप है। अब एक इंटर-मिनिस्टीरियल कमेटी इन तीनों ट्रस्ट के वित्तीय लेनदेन की जांच करेगी।

चीन की आक्रामकता को लेकर मोदी सरकार को घेर रही कांग्रेस के लिए भाजपा के इस आरोप का जवाब देना कठिन हो सकता है कि आखिर राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से आर्थिक सहायता लेने की क्या जरूरत थी? यह महज राजीव गांधी के नाम पर बना फाउंडेशन नहीं है। यह वह फाउंडेशन है जिसकी मुखिया कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं और जिसके बोर्ड में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य अनेक कांग्रेसी नेता शामिल हैं। इस तरह की किसी संस्था की ओर से किसी भी विदेशी दूतावास से धन लेना कई सवालों को जन्म देता है और तब तो और भी जब वह विदेशी दूतावास चीन का हो। पता नहीं राजीव गांधी फाउंडेशन ने चीनी दूतावास से धन लेना जरूरी क्यों समझा? यदि यह आवश्यक ही था तो फिर इस बारे में तभी पूरी सूचना सार्वजनिक की जानी चाहिए थी। अब तो आम धारणा तो यही बनेगी कि एक तरह से कांग्रेस पार्टी ने गुपचुप रूप से चीन से धन लिया। ध्यान रहे कि यह धन तब लिया गया जब कांग्रेस केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रही थी। इस बारे में कांग्रेस अपनी सफाई में बहुत कुछ कह सकती है, लेकिन उससे संतुष्ट होना कठिन है। हैरत नहीं कि भाजपा के आरोप से तिलमिलाई कांग्रेस मोदी सरकार पर कुछ और तीखे हमले करने के लिए आगे आए। वैसे भी कांग्रेस और खासकर उसके नेता राहुल गांधी यह साबित करने में लगे हुए हैं कि प्रधानमंत्री ने चीन के आगे हथियार डाल दिए हैं। वह यह भी सिद्ध करने में तुले हैं कि चीन ने भारत की जमीन हथिया ली है। इस बारे में वह न तो प्रधानमंत्री के बयान को महत्व देने के लिए तैयार हैं और न ही उनके स्पष्टीकरण को।

पता नहीं वह सरकार पर अनावश्यक राजनीतिक हमले कर क्या हासिल करना चाहते हैं, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस का आचरण जाने-अनजाने चीन का दुस्साहस बढ़ाने वाला है। एक ऐसे समय जब देश चीन की खतरनाक आक्रामकता से दो-चार है तब जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक एकजुटता का प्रदर्शन किया जाए ताकि दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत चीनी सत्ता की गुंडागर्दी के समक्ष एकजुट है।

संकट के समय राजनीतिक कलह ठीक नहीं। कम से कम कांग्रेस सरीखे सबसे पुराने राजनीतिक दल को तो राजनीतिक परिपक्वता दिखानी ही चाहिए। यह हैरत की बात है कि अन्य दल गंभीरता का परिचय दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ऐसा करने से इंकार कर रही है। नि:संदेह भाजपा को कांग्रेस के राजनीतिक हमलों का जवाब देना ही होगा, लेकिन उसे इसकी भी चिंता करनी चाहिए कि चीन को लेकर देश में राजनीतिक एका का माहौल बने।

आइए पहले समझते हैं एजेएल मामले को: जवाहरलाल नेहरू ने 1938 में नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना की थी। अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी एजेएल के पास था। आजादी के बाद 1956 में एसोसिएटेड जर्नल को अव्यवसायिक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया। वर्ष 2008 में एजेएल के सभी प्रकाशनों को निलंबित कर दिया गया और कंपनी पर 90 करोड़ रुपए का कर्ज हो गया। कांग्रेस नेतृत्व ने यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक नई अव्यवसायिक कंपनी बनाई जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे, ऑस्कर फर्नांडिस और सैम पित्रोदा को निदेशक बनाया गया। नई कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास 76 फीसदी शेयर थे जबकि बाकी के 24 फीसदी शेयर अन्य निदेशकों के पास थे।

अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में मुंबई और पंचकूला स्थित एजेएल की करोड़ों की संपत्ति जब्त कर ली है। इस मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और गांधी परिवार के बिल्कुल करीबी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा भी फंसे हैं। आरोप है कि इन्होंने एजेएल को हरियाणा के पंचकूला में एक प्लॉट के आवंटन में कानूनों का उल्लंघन किया। यह मामला उस समय का है जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के चेयरमैन भी थे। इस मामले में हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नेशनल हेराल्ड की सहायक कंपनी एसोसिएट्स जर्नल लिमिटेड (एजेएल) को 2005 में 1982 की दरों पर प्लॉट अलॉट करवाया था। इस मामले में सीबीआई ने भी पंचकूला की एक अदालत में दिसंबर 2018 में आरोपपत्र दायर किया था। सीबीआई ने भी इस मामले में कथित अनियमितता बरतने को लेकर वोरा और हुड्डा को आरोपी बनाया है।

ट्रस्ट की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इसकी शुरुआत 2001 में ऑर्ट्स एंड साइंस कॉलेज की शुरुआत से हुई। बाद में ट्रस्ट के तहत डेंटल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, पैरामेडिकल कॉलेज, फार्मेसी कॉलेज भी खोले गए। वेबसाइट के अनुसार, आईजीएमटी की अध्यक्षता केएम पारीख करते हैं। इसके अलावा, डॉ. केपी शियास महासचिव हैं, डॉ. केपी सियाद सीईओ और केपी शिबु मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। यह नई दिल्ली में 1 अकबर रोड पर तुलग रोड इलाके में हैं। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेसी सरकारों के दौरान खजाने की लूट के लिए कई तरीके इजाद किए गए थे। इसी के तहत ये फाउंडेशन और ट्रस्ट गठित किए गए थे। अब केंद्र सरकार ने इनकी गतिविधियों और फंड की जांच शुरू करा दी है। जल्द ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट

एक रजिस्टर्ड, नॉट-फॉर-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन के रूप में ट्रस्ट की स्थापना 2002 में हुई। इसका मकसद देश के गरीबों की मदद करना था, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में। इसकी दो योजनाएं हैं- राजीव गांधी महिला विकास परियोजना और इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर। दावा है कि उप्र में महिला सशक्तिकरण के लिए राजीव गांधी महिला विकास परियोजना सबसे बड़ा मोबलाइजेशन प्रोग्राम चला रही है। वहीं इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर 12 जिलों में आई केयर की सुविधा देती है। वहीं राजीव गांधी फाउंडेशन की नींव 21 जून, 1991 को रखी गई। 2010 में फाउंडेशन ने शिक्षा पर फोकस करने का फैसला किया। इस फाउंडेशन की चेयरपर्सन सोनिया गांधी हैं। ट्रस्टीज में डॉ. मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, सुमन दुबे, राहुल गांधी, अशोक गांगुली, संजीव गोयनका और प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल हैं।

सवालों के घेरे में ट्रस्ट और फाउंडेशन को मिले दान

हाल ही में राजीव गांधी फाउंडेशन को लेकर एक और खुलासा हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए 21 जून 1991 को सोनिया गांधी ने इसकी शुरुआत की थी। सोनिया गांधी राजीव गांधी फाउंडेशन की चेयरपर्सन हैं। इस फाउंडेशन में सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी, बेटी प्रियंका वाड्रा, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा पी. चिदंबरम ट्रस्टी हैं। कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गलत इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फंड से राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा दान किया गया। कई सरकारी उपक्रमों ने भी राजीव गांधी फाउंडेशन में दान किया था। इनमें गृह मंत्रालय समेत 7 मंत्रालय और 11 बड़े सार्वजानिक उपक्रम भी शामिल थे। यह सब दान तब किए गए जब देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उस समय यूपीए की चेयरपर्सन थीं। राजीव गांधी फाउंडेशन को भारत स्थित चीनी दूतावास, चीन सरकार, जाकिर हुसैन के साथ-साथ करोड़ों रुपए के घोटाले में फरार मेहुल चोकसी ने भी दान दिया था।

 - दिल्ली से रेणु आगाल

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