मप्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर से शुरू होने जा रहा है। विधानसभा अध्यक्ष की कोशिश है कि यह सत्र पूरे दिन चले। इसके लिए कई तरह की पाबंदियां लगाई जा रही हैं, ताकि सदन में अधिक से अधिक काम हो सके।
मप्र विधानसभा के लगभग हर सत्र में सदन का कामकाज लगातार प्रभावित हो रहा है। इसको देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम 20 दिसंबर से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र में ऐसी व्यवस्था शुरू करने जा रहे हैं ताकि सदन में जनहित के मुद्दों पर अधिक से अधिक काम हो सके। इसके लिए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधायकों के लिए आचार संहिता लागू की जा रही है। जानकारी के अनुसार, विधानसभा अध्यक्ष की पहल पर यह प्रयास शुरू किया जा रहा है कि सदन में अधिक से अधिक काम हो सके। इसके लिए विधायकों को सवाल दोहराने की अनुमति नहीं होगी। चाहें तो पूरक प्रश्न पूछ सकेंगे। इसके लिए विधानसभा सचिवालय ने तैयारी शुरू कर दी है। गिरीश गौतम का कहना है कि हमारा प्रयास है कि सदन में जनहित के विषयों पर ज्यादा चर्चा हो, इसलिए तय किया है कि विधायक लिखित सवाल न दोहराएं। उससे जुड़े पूरक प्रश्न पूछ लें। इससे समय बचेगा। बचे हुए समय में अन्य विधायकों को सवाल पूछने का मौका मिलेगा।
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रयास है कि प्रश्नकाल में ज्यादा से ज्यादा सवालों को लिया जाए और पर चर्चा हो सके। जनहित से जुड़े सवालों के जवाब मिल सकें। एक घंटे के प्रश्नकाल में चर्चा के लिए 25 सवालों को शामिल किया जाता है। चयन लॉटरी के जरिए होता है। सवालों पर लंबी चर्चा या हंगामा, शोर-शराबा के कारण सवाल अधूरे रह जाते हैं, इसलिए विधानसभा अध्यक्ष टाइम मैनेजमेंट में जुटे हैं। ऐसे में तय किया गया है कि विधायक लिखित सवाल न दोहराएं, क्योंकि ये सवाल तो पहले से ही संबंधित विभाग के मंत्री के पास मौजूद हैं। जवाब भी लिखित में है। यदि कोई विधायक इसी विषय से जुड़ा सवाल पूछना चाहता है तो आजादी होगी, लेकिन पूरक प्रश्न ज्यादा नहीं होगा इससे समय बचेगा और इस बचे हुए समय में शेष सवालों को शामिल किया जा सकेगा। प्रश्नकाल में ज्यादा से ज्यादा विधायकों के सवाल शामिल किए जा सकेंगे।
पिछले कुछ साल से विधानसभा में हंगामें के कारण कामकाज प्रभावित हो रहें हैं। प्रश्नकाल के दौरान आमतौर पर 25 में से 15-16 सवालों पर चर्चा हो पाती है। ऐसे मौके बहुत कम आते हैं जब सभी 25 सवाल पूछे जा सके हों, जब-जब ऐसा हुआ तब-तब संसदीय कार्य मंत्री या फिर अन्य विधायकों की ओर से आसंदी को धन्यवाद दिया गया। सदन में कई बार हंगामा और शोर-शराबे के चलते महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा के पारित हो गए। राज्य का बजट भी कई बार बिना चर्चा के पारित हो गया। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का कहना है कि निर्धारित किए गए दिन में प्रश्नकाल के दौरान सिर्फ नए विधायकों को सवाल पूछने का मौका दिया जाएगा। संशोधित नियम के तहत यदि किसी सदस्य ने विधायक के तौर पर सवाल पूछे और इस बीच वह मंत्री या विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बन जाता है तो उसके लिखित सवाल निरस्त कर दिए जाएंगे या निरस्त माना जाएगा। सरकार की ओर से इनके जवाब भी नहीं दिए जाएंगे।
गौरतलब है कि मप्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र 20 से 24 दिसंबर तक आयोजित किया जाएगा। इस सत्र में इंदौर-भोपाल में कमिश्नर प्रणाली का विधेयक लाया जाएगा। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार अनुपूरक बजट पेश करेगी। इसके साथ ही कई विधेयक भी सरकार विधानसभा के पटल पर रखेगी। यह विधानसभा सत्र पिछली बार की तरह हंगामे वाला हो सकता है। पांच दिनों तक चलने वाला यह सत्र 24 दिसंबर तक चलेगा। इस सत्र में इंदौर और भोपाल में लागू की जाने वाली कमिश्नर प्रणाली को लेकर अध्यादेश लाया जाएगा। गौरतलब है कि इस विधेयक पर विपक्ष के नेता कमलनाथ ने भी समर्थन दिया है। उनका कहना है कि यह विधेयक हमारी सरकार भी लाना चाहती थी। इस सत्र में राज्य सरकार का अनुपूरक बजट भी लाया जाएगा। इसके अलावा कई और विधेयकों को लाने पर विचार किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक विपक्ष इस सत्र में हंगामे के मूड में है। विपक्ष इस बार किसान आत्महत्या को लेकर मुद्दा गर्मा सकता है। इसके अलावा अवैध खनन, अतिवृष्टि और बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिलने का भी मुद्दा उठाया जा सकता है। इसके अलावा किसानों के मुद्दे पर भी सरकार को घेरने की तैयारी की जा रही है। पांच दिनों के सत्र की बैठकें और अधिक बढ़ाने पर विपक्ष मांग कर सकता है, वहीं सरकार की कोशिश रहेगी कि पांच दिन में ही सारे काम निपटा लिए जाएं।
विधानसभा का घटता महत्व
मप्र विधानसभा का महत्व लगातार घटता जा रहा है। पहले 5 साल में विधानसभा में लगभग 300 बैठकें होती थीं जो अब घटकर 100-125 तक आ गई हैं। पिछले लंबे समय से मप्र विधानसभा में किसी गंभीर मुद्दे पर कोई सार्थक चर्चा नहीं हुई है। बीते दो साल में जितने कानून विधानसभा में पारित हुए हैं, किसी पर भी दो मिनट चर्चा नहीं कराई गई है। ध्वनिमत से कानून बनाने की नई परिपाटी बनती जा रही है। मप्र में दिग्विजय सिंह के पहले कार्यकाल (1993-1998) में 282 बैठकें हुईं, उनके दूसरे कार्यकाल (1998-2003) में 288 बैठकें हुईं। इसके बाद भाजपा के पहले कार्यकाल (2003-2008) में 159 बैठकें, दूसरे कार्यकाल (2008-2013) में 170 बैठकें और तीसरे कार्यकाल (2013-18) में मात्र 135 बैठकें हुईं। मौजूदा सत्र में कांग्रेस व भाजपा की सरकारों ने बीते तीन साल में अभी तक मात्र 43 बैठकें हुई हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है।
- राकेश ग्रोवर