अब पंचायत चुनाव का घमासान
25-Dec-2021 12:00 AM 262

 

मप्र में करीब 7 साल बाद पंचायत चुनाव का घमासान शुरू हो गया है। भले ही पंचायत चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, लेकिन राजनीतिक दलों के समर्थित प्रत्याशी चुनावी मैदान में होते हैं। इसलिए पार्टियों की साख भी दांव पर होती है। ऐसे में मप्र की मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस के लिए पंचायत चुनाव काफी अहम है, क्योंकि इसके बाद 2023 में विधानसभा चुनाव होना है। पंचायत चुनावों से यह तस्वीर निकलकर आएगी कि किस पार्टी की जमीनी पकड़ मजबूत है।

प्रदेश में पंचायत चुनाव भले ही गैर दलीय आधार पर होते हैं लेकिन इसमें राजनीतिक पार्टियों की हिस्सेदारी पूरी रहती है। इसलिए करीब 7 साल बाद होने वाले पंचायत चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट की तरह हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता होने के कारण भाजपा काफी आशान्वित है। पार्टी को उम्मीद है कि 2014 की अपेक्षा इस बार के चुनाव में भाजपा समर्थित और अधिक नेता पंचायतों में जीत का परचम लहराएंगे। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से एक नई इबारत लिखी जा रही है। स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, सड़क, रोजगार के साथ स्वच्छता के क्षेत्र में भी विशेष प्रयास किए गए हैं। अब सरकार का फोकस ग्रामीण रोजगार पर है। सरकार के इन प्रयासों से मप्र के गांव आज आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में पंचायत चुनावों के दौरान गांवों के विकास को भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोग देख सकेंगे।

गौरतलब है कि प्रदेश में इस बार ग्राम, जनपद और जिला पंचायतों का कार्यकाल 5 के बजाय 7 साल का हो गया। इसी कारण सरपंचों सहित अन्य पदाधिकारियों का कार्यकाल 5 के बजाय 7 साल का हो गया। 7 साल बाद चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन वह भी वर्ष 2014 के समय के पुराने आरक्षण के आधार पर। ऐसे में कई ग्राम पंचायतों में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की ही दावेदारी कायम रहेगी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी संगठन को सक्रिय कर दिया है। वरिष्ठ पदाधिकारियों को जिम्मेदारी भी सौंपी जा रही है। उधर, आदिवासी क्षेत्रों में जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) भी चुनाव की तैयारियों में जुटा है।

प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव तीन चरण में होने हैं। पंचायत चुनाव के माध्यम से तीन लाख 92 हजार 921 प्रतिनिधियों का चुनाव होगा। विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले इन महत्वपूर्ण चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने तैयारी प्रारंभ कर दी है। मप्र में होने वाला त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव को भाजपा और कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। ऐसा इसलिए कि इन चुनावों से दोनों पार्टियों की मैदानी पकड़ और वोट बैंक का आंकलन हो पाएगा। इसलिए पंचायत चुनावों को भाजपा-कांग्रेेस के लिए अग्निपरीक्षा माना जा रहा है। इसलिए दोनों पार्टियों ने अपने-अपने समर्थकों के लिए मोर्चा संभालने की तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, दो साल के भीतर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सभी जिला अध्यक्ष और जिला प्रभारियों को आपसी समन्वय बनाकर पंचायत चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरने के निर्देश दिए हैं। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सभी मंत्रियों को प्रभार के जिलों में चुनाव की तैयारियों के लिए कह चुके हैं। इससे पंचायत चुनाव की महत्ता समझी जा सकती है। भाजपा संगठन ने वरिष्ठ पदाधिकारियों को सक्रिय करने का निर्णय किया है। प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता यशपाल सिंह सिसोदिया ने बताया कि चुनाव कोई भी हो, पार्टी हमेशा तैयार रहती है। मतदान केंद्र स्तर तक हमारी टीम है जो हमेशा सक्रिय रहती है। जयस ने आदिवासी क्षेत्रों में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए पंचायत चुनाव में हिस्सेदारी करने का निर्णय लिया है। संगठन अपने कार्यकर्ताओं को पंच से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक का चुनाव लड़ाएगा।

कांग्रेस ने तय किया है कि गांव से लेकर जिला स्तर तक आपसी सहमति और समन्वय बनाकर चुनाव लड़ा जाएगा। खासतौर पर जनपद और जिला पंचायत के सदस्य के लिए प्रत्याशी का चयन जिला प्रभारी व स्थानीय विधायक, पूर्व विधायक, जिला और ब्लॉक कांग्रेस के पदाधिकारियों के साथ मिलकर तय करेंगे। कांग्रेस ने जिला स्तर पर निर्देश दिए हैं कि सभी में समन्वय रहे। उम्मीदवारी को लेकर सामने आ रहे नामों में जिताउ का ही चयन करें। प्रयास हो कि पार्टी के लोग एक-दूसरे के मुकाबले न खड़े हों। तय किया गया है कि इस मामले में प्रदेश स्तर से दखल नहीं दिया जाएगा, यदि जिले स्तर पर कोई दिक्कत आती है तो प्रदेश स्तर से मामले का निपटारा किया जाएगा। कांग्रेस को भरोसा है कि आमजन कांग्रेस पार्टी के साथ है। वर्ष 2018 के चुनाव में लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था, लेकिन भाजपा ने उनके विधायकों को तोड़कर खरीद-फरोख्त कर अपनी सरकार बना ली। प्रदेश की जनता समझदार है। भाजपा सरकार में हर वर्ग परेशान है। किसानों को फसल के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं, कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या को मजबूर हैं। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, महंगाई चरम पर है, उद्योग धंधे चौपट है, लेकिन सरकार को इसकी चिंता नहीं है। पार्टी को उम्मीद है कि पंचायत चुनाव में उन्हें इसका लाभ होगा। पंचायत चुनाव में जयस के मैदान में आने से भाजपा और कांग्रेस का गणित गड़बड़ाने के आसार हैं। जयस का आदिवासी इलाकों में खासा वर्चस्व है। पिछले पंचायत चुनाव में भी जयस के उम्मीदवार खड़े थे। इसमें धार, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी इत्यादि जिले प्रमुख रहे। जयस के संरक्षक डॉ. हीरा अलावा का कहना है कि जयस को पिछले चुनाव में खासी सफलता मिली थी। जयस के 150 से अधिक सरपंच का चुनाव जीते थे। इस बार और अधिक पंचायतों में उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि चूंकि यह चुनाव दल के आधार पर नहीं होते इसलिए पार्टी से ज्यादा क्षेत्र के जिताऊ व्यक्ति को महत्व मिलता है।

 पंचायत चुनाव भले ही राजनीतिक दलों का अखाड़ा न हो, पर समर्थकों की जीत हार से दलों के दमखम का पता तो चल ही जाता है, वहीं दिग्गज नेताओं और क्षत्रपों की व्यक्तिगत स्तर पर जमावट भी रंग दिखाती है। प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव इस लिहाज से भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा साबित होंगे। वजह है परिवारवाद के खिलाफ लकीर को इन चुनावों तक खींचना। लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव की तर्ज पर पार्टी पंचायत चुनाव पर भी नजर रखेगी कि किसी भी परिवार के सदस्य को जिला और जनपद पंचायत में उपकृत करने की कोशिश न की जाए, बल्कि प्राथमिकता कार्यकर्ताओं को मौका देने की रहेगी। दरअसल, अब तक जिला या जनपद पंचायत पर पार्टी के क्षत्रपों का ही कब्जा रहा है। मंत्री-विधायक या कद्दावर नेता अपनी बहू-बेटी या रिश्तेदार को इन पदों पर बिठाते रहे हैं। ऐसे में जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए मौका नहीं बचता है, साथ ही किसी एक नेता के मजबूत होने से पार्टी में स्थानीय स्तर पर असंतुलन की स्थिति भी बनती रही है। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी ने परिवारवाद से किनारा करते हुए सांसद, विधायक, मंत्री, महापौर सहित अन्य जनप्रतिनिधियों के परिवार वालों को मौका देने में काफी हद तक परहेज किया है। कुछ चुनिंदा नेताओं के बेटे-बेटियों को ही मौका मिल सका है, जिन्होंने पहले से जमीनी स्तर पर मजबूत तैयारी कर रखी थी। कांग्रेस पर वंशवाद के आरोप लगाते हुए पार्टी संदेश देना चाहती है कि भाजपा में सिर्फ समर्पित कार्यकर्ताओं को ही सम्मान और मौका मिलता है।

पिछले साल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नवंबर में विधानसभा के 28 सीटों के उपचुनाव और बीते दिनों खंडवा लोकसभा सहित तीन विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव में पार्टी ने वंशवाद से खुद को दूर रखा। इसके नतीजे भी आशा के अनुरूप आए। पार्टी मानती है कि कार्यकर्ताओं में उत्साह है, वहीं नेताओं के बच्चे भी अपने स्तर पर मेहनत कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि पंचायत चुनाव में परिवारवाद को नकारे जाने से प्रदेश के 313 जनपद पंचायत और 52 जिला पंचायतों में नए चेहरे दिखाई पड़ने की संभावना अधिक है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस फैसले को लेकर समन्वय समिति गठित की जाएगी, जो स्थानीय दिग्गज नेताओं और क्षत्रपों से बात करेगी। सूत्र अनुशासन का दावा करते हुए कहते हैं कि पार्टी लाइन से कोई भी नेता कभी असहमत नहीं होता, इसलिए परिवारवाद को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने के लिए सभी साथ है। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि पंचायत चुनाव को लेकर पार्टी का प्रदेश नेतृत्व समग्र विचार कर रहा है। संचालन समिति, समन्वय समिति के माध्यम से प्रदेश अध्यक्ष आवश्यक दिशा निर्देश देंगे। भाजपा में जो तय होता, उसी को हर कार्यकर्ता चाहे वह मंत्री, विधायक-सांसद या पदाधिकारी हो, सभी स्वीकार करते हैं। भाजपा के लिए गए निर्णय पर विजय सुनिश्चित है।

6 करोड़ आबादी पर फोकस

मप्र में गांवों की संख्या 51,527 है। ये गांव प्रदेश के 52 जिलोंं के अंतर्गत आते हैं। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 6 करोड़ से भी अधिक आबादी प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती हैं। पंचायत चुनावों में यही आबादी पंच, सरपंच का चुनाव करेगी। पंचायत चुनाव के माध्यम से तीन लाख 92 हजार 921 प्रतिनिधियों का चुनाव होगा। विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले इन महत्वपूर्ण चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने तैयारी प्रारंभ कर दी है। इसलिए भाजपा का पूरा फोकस इस आबादी पर है। दरअसल, 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 6 करोड़ आबादी का समर्थन किसी भी पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों पर पूरा फोकस कर दिया है।

भाजपा शासनकाल में गांवों में तेजी से हुआ विकास

मप्र आज बीमारू राज्य की श्रेणी से निकलकर विकास के पथ पर सरपट दौड़ रहा है, इसके पीछे ग्रामीण विकास का महत्वपूर्ण योगदान है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गांवों के विकास पर सबसे अधिक फोकस किया है। इससे प्रदेश में गांवों की स्थिति अब तेजी से सुधर रही है। ग्रामीण इलाकों में विकास के नए सोपान गढ़े जा रहे हैं। प्रदेश को कई योजनाओं में देश में प्रथम स्थान मिलने से इसकी पुष्टि होती है। ग्राम सभाओं में भागीदारी, पंचायतों के सशक्तिकरण, सामूहिक विकास में समुदाय का समावेशन, सामुदायिक निगरानी, सहभागिता, सामुदायिक स्वामित्व जैसे मुद्दों के साथ ग्रामीण अधोसंरचना विकास, मूलभूत सुविधाएं, आवागमन, सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता, रोजगार-स्वरोजगार, नवीन तकनीकियों की ग्राम स्तर तक पहुंच, विशेषकर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और आजीविका क्षेत्र में प्रतिबद्धता से काम किए जा रहे हैं। इन तमाम प्रयासों से गांवों की तस्वीर बदलती दिख रही है। भाजपा को उम्मीद है कि प्रदेश के गांवों में जो विकास हुआ है उसके कारण जनता उसके साथ है। इसी आधार पर पार्टी पंचायत चुनाव के रास्ते मिशन 2023 के लिए अपना जनाधार मजबूत करेगी। गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्र में उन्नत कृषि, पशुपालन में बुनियादी सुविधाएं, सिंचाई, भंडारण, वृहद बाजारों को गांव से जोड़ने के लिए भी उल्लेखनीय जतन किए गए हैं।

- कुमार राजेन्द्र

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