विधानसभा का सत्र एक बार फिर टाल दिया गया। कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव को इसकी वजह बताया जा रहा है। यद्यपि संक्रमण के खतरे को ध्यान में रखकर सरकार ने कड़े प्रतिबंध लागू नहीं किए हैं। भीड़ भरे राजनीतिक कार्यक्रम हो रहे हैं। दरअसल सत्र को टालने के कारण भाजपा की अंदरूनी राजनीति से जुड़े हुए हैं। मार्च में सत्ता परिवर्तन के बाद विधानसभा का कामकाज प्रोटेम स्पीकर के जरिए संचालित किया जा रहा है। विधानसभा अध्यक्ष का पद एक अनार सौ बीमार वाला हो गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आ जाने के बाद पार्टी के अंदरूनी समीकरण भी बदल चुके हैं। मंत्रिमंडल का विस्तार भी नहीं हो पा रहा है।
विधानसभा की बैठकें लगातार टाले जाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह कहते हैं कि सरकार विपक्ष की आवाज को दबाना चाहती है। पर्याप्त संख्या बल के बाद भी विपक्ष बैठकें बुलाने पर दबाव क्यों नहीं बना पा रहा? इस सवाल के कटघरे में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी खड़े हुए हैं। कमलनाथ को भी इस बात का अहसास है। शीतकालीन सत्र 28 दिसंबर से शुरू होना था। केवल तीन दिन का सत्र रखा गया था। विधायक विश्रामगृह और विधानसभा के कुछ कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित होने को आधार बनाकर 27 दिसंबर को सत्र पर विचार करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। कांग्रेस की ओर से जब बैठकें न रखने का कारण पूछा तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उलटा सवाल किया कि यदि किसी विधायक को कुछ हुआ तो कौन जिम्मेदारी लेगा? कमलनाथ ने जवाबदारी सरकार पर डाली तो तत्काल सत्र टालने का निर्णय प्रोटेम स्पीकर ने ले लिया। बहुजन समाज पार्टी के विधायक संजीव कुशवाह कहते हैं कि तीन दिन के सत्र में जनता के मुद्दे तो उठाए ही नहीं जा सकते थे। सत्र का टाला जाना ही बेहतर रहा। बसपा के दो विधायक मप्र में भाजपा के साथ हैं।
सत्र आहुत किए जाने की अधिसूचना 27 नवंबर को जारी की गई थी। सत्र के पहले दिन उपचुनाव में निर्वाचित 28 विधायकों का शपथ ग्रहण होना था। सत्र टाल दिए जाने के कारण प्रोटेम स्पीकर ने विधायकों को अपने कक्ष में शपथ दिलाई। कांग्रेस ने इसी दिन किसानों के समर्थन में विधानसभा को घेरने की रणनीति बनाई थी। कांग्रेस के नेताओं का किसानों के समर्थन में प्रदर्शन ट्रैक्टर पर बैठकर होना था। सत्र टल गया तो कांग्रेस को भी आंदोलन की अनुमति नहीं मिली। कांग्रेस के नेताओं ने विधानसभा परिसर में स्थापित गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना दिया। सांकेतिक रूप से खिलौना ट्रैक्टर भी रखा। 28 दिसंबर को कांग्रेस का स्थापना दिवस भी रहता है। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर आयोजित कार्यक्रम में नेताओं की भीड़ थी। यहीं से नेता विधानसभा गए।
तीन दिन के शीतकालीन सत्र में 29 दिसंबर का दिन विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए रखा गया था। राज्य में मार्च में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से ही विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका है। प्रोटेम स्पीकर ही विधानसभा के सभी कामकाज कर रहे हैं। प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा हैं। वे भोपाल जिले की हुजूर विधानसभा सीट से विधायक हैं। संविधान में प्रोटेम स्पीकर की व्यवस्था नई विधानसभा के गठन के समय होने वाले सत्र के लिए की गई है। प्रोटेम स्पीकार का काम और कार्य अवधि स्पष्ट होती है। प्रदेश में पहला मौका है कि छह माह से विधानसभा का कोई अध्यक्ष नहीं है। शर्मा 2 जुलाई को प्रोटेम स्पीकर नामांकित हुए थे। मार्च में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार में अध्यक्ष रहे नर्मदा प्रसाद प्रजापति और उपाध्यक्ष हिना कांवरे ने अपने-अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अध्यक्ष पद के दावेदारों में रामेश्वर शर्मा के अलावा पूर्व मंत्री अजय विश्नोई और राजेंद्र शुक्ला का नाम भी है। लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव का नाम भी चर्चा में है। सीधी के विधायक केदार शुक्ला भी दावेदार हैं। विंध्य क्षेत्र के भाजपा विधायक पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला का विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का झुकाव राजेंद्र शुक्ला के नाम पर है। प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा पद बने रहना चाहते हैं। शिवराज सिंह चौहान पर शर्मा का भी दबाव है। शर्मा दूसरी बार के विधायक हैं और केदार शुक्ला चौथी बार के विधायक हैं। पिछले कार्यकाल में भी केदार शुक्ला को मंत्री बनाने का दबाव था। विधानसभा अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही इस कारण सत्र टालना मुख्यमंत्री चौहान की मजबूरी है।
मंत्रिमंडल का विस्तार भी शिवराज के लिए मुश्किल भरा
28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजों के बाद भाजपा विधानसभा में पूर्ण बहुमत में है। कुल 126 सदस्य हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस विधायकों के भाजपा में आने के कारण शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। सरकार सिंधिया के कारण बनी इसका दबाव भी मुख्यमंत्री चौहान पर साफ दिखाई दे रहा है। यद्यपि वे यह संदेश देने की कोशिश लगातार कर रहे हैं कि सिंधिया भाजपा के सामान्य कार्यकर्त्ता हैं। मुख्यमंत्री ने उपचुनाव जीतने के बाद भी सिंधिया के खांटी समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत को मंत्रिमंडल में वापस शामिल नहीं किया है। छह माह के भीतर विधायक न चुने जाने के कारण उपचुनाव के नतीजों से पहले ही इन दोनों ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। शिवराज सिंह चौहान को डर है कि मंत्रिमंडल के विस्तार में वरिष्ठ विधायकों की उपेक्षा हुई तो असंतोष बढ़ सकता है। कहा जा रहा है कि कुछ नाम ऐसे हैं जिन्हें शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में नहीं लेना चाहते, लेकिन संगठन वरिष्ठ भाजपा विधायकों के लिए दबाव बना रहा है। सिंधिया साफ तौर पर कह कर रहे हैं कि मंत्रिमंडल के विस्तार का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच का विषय है। विधानसभा उपचुनाव से पहले शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल में चौदह गैर विधायक भी रखे थे। तीन मंत्री चुनाव हार गए। इनमें दो इमरती देवी और गिर्राज दंडोतिया, सिंधिया समर्थक हैं।
- जितेंद्र तिवारी