फिर उठी अलग राज्य की मांग
26-Dec-2020 12:00 AM 1354

 

विकास की राह से भटका हुआ वह भूभाग जिसने अपने संसदीय क्षेत्र से प्रधानमंत्री तक दिए लेकिन हर बार सरकारों ने इस क्षेत्र को विकास और इसकी आहटों से दूर रखा हालांकि लंबे वक्त से लंबित मांग अब सरकार द्वारा पूरी करने की कवायद शुरू की जा रही है लेकिन इस कवायद के साथ ही राजधानी को लेकर लोग आक्रोश में है। दरअसल सरकार की मंशा है कि वह प्रयागराज को बुंदेलखंड की राजधानी बनाए मगर लोगों का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो पहले से ही विकसित प्रयागराज क्षेत्र पर तो सरकारी कृपा बरसेगी लेकिन कोर बुंदेलखंड का क्या होगा?

अगर सूत्रों की मानें तो अब वह दिन दूर नहीं जब भारत में नए राज्य का गठन किया जाएगा। जल्द ही भारत में एक नए राज्य बुंदेलखंड की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जा सकता है। जिसके लिए कई दशकों से लगातार मांग और आंदोलन इत्यादि चल रहे थे हालांकि इसमें कई पेंच हैं लेकिन इन पेंचों के बावजूद भी मप्र और उप्र के साथ केंद्र में भाजपा की सरकार है इससे यह समझ में आता है कि अगर सरकारें चाहें कि राज्य का गठन हुआ है तो ऐसी कोई बड़ी मुश्किल नहीं है।

उप्र और मप्र का ऐसा भूभाग जो पूर्व में बुंदेली शासन में रहे या दूसरे शब्दों में ऐसा क्षेत्र जो बुंदेला राज्य में रहा वह बुंदेलखंड में माना जाता है। हालांकि सरकारी बुंदेलखंड और लोगों द्वारा स्वघोषित बुंदेलखंड में काफी अंतर है। दरअसल मूल रूप से लोगों द्वारा यह माना जाता है कि उप्र-मप्र का एक निर्धारित क्षेत्र है जिसमें संस्कृति, भाषा, संस्कार, रहन-सहन के साथ-साथ वैवाहिक संबंध बनते हैं, वह बुंदेलखंड है। अगर इस दृष्टि से देखें तो उप्र के महोबा, बांदा, झांसी, ललितपुर, जालौन, चित्रकूट और हमीरपुर शामिल हैं। वहीं मप्र से छतरपुर, पन्ना, सागर, विदिशा, टीकमगढ़, दमोह, दतिया, भिंड, सतना इत्यादि जिले शामिल हैं। इन सभी क्षेत्रों में भाषायी समानता के साथ-साथ संस्कृति का भी बेहद मिला-जुला रूप नजर आता है लेकिन अगर वर्तमान सरकार का प्लान सोचें तो इसमें मप्र के जबलपुर समेत उप्र के प्रयागराज जिले को भी शामिल करने की योजना बनाई जा रही है।

दरअसल सरकार जिस बुंदेलखंड के लिए प्रस्ताव तैयार कर रही है उसमें प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) को बुंदेलखंड राज्य की राजधानी बनाने के मूड में है, लेकिन सरकारों के इस काम को लेकर बुंदेली मड़ई काफी आक्रोश में है। लोगों का मानना है कि अगर बुंदेलखंड की राजधानी प्रयागराज हुई तो उनके लिए सास मरी और बहू के बिटिया हुई वाली कहानी साबित होगी। लोगों का कहना यह है कि अभी उन्हें अपने विकास के लिए प्रदेश के मुख्यालय लखनऊ के मुंह की तरफ देखना पड़ रहा है। कल उन्हें प्रयाग की तरफ देखना पड़ेगा और यह हर प्रकार से बुंदेली समाज के खिलाफ एक साजिश है। जिससे बुंदेली लोगों को जानबूझकर पूर्वांचल के ऊपर निर्भर किया जा रहा है। लोगों ने बताया कि बुंदेलखंड खनिज संपदा के लिए स्वर्ग है इस प्रकार से बुंदेलखंड का दोहन बरकरार रहेगा और इसका मुफ्त में लाभ प्रयाग उठाएगा।

उप्र सरकार ने 7 जनपदों क्रमश: झांसी, बांदा, जालौन, हमीरपुर, ललितपुर, चित्रकूट एवं महोबा को मिलाकर बुंदेलखंड विकास बोर्ड का गठन किया है। इसी प्रकार मप्र सरकार ने सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना, दतिया एवं निवाड़ी को मिलाकर बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का गठन किया है। इन्हीं समस्त जिलों को बुंदेलखंड मानकर केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज दिया था। इन क्षेत्रों के साथ लहार, पिछोर, करेरा, गोहांड, चंदेरी, गंजबासौदा, कटनी, सतना का चित्रकूट आदि क्षेत्रों को जोड़कर अखंड बुंदेलखंड राज्य का निर्माण किया जाना चाहिए। देश की आजादी के 73 वर्ष बाद भी देश के हृदय स्थल बुंदेलखंड को सरकारी दस्तावेजों में अति पिछड़ा क्षेत्र लिखा जाता है जो सरकारों के विकास के नजरिए को दर्शाता है। बुंदेलखंड राज्य 3 साल के भीतर बनवा देने के वादे के 6 साल 4 माह पूरे हो गए हैं परंतु अभी तक केंद्र सरकार में राज्य निर्माण की कार्यवाही तक प्रारंभ नहीं हुई है।

उधर, उप्र के झांसी में बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा (बुनिमो) के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने बुंदेलखंड राज्य की अपनी पुरानी मांग दोहराते हुए गत दिनों जबरदस्त प्रदर्शन और नारेबाजी की। बुनिमो अध्यक्ष भानु सहाय ने कहा कि मोदी सरकार ने सत्ता में आने के 3 साल के भीतर बुंदेलखंड राज्य बनाने का वादा किया था लेकिन आज 6 साल 6 माह हो गए हैं कुल मिलाकर दोगुने से ज्यादा समय बीत चुका है और इनको अपने वादे की कोई परवाह नहीं है। इनकी दोमुंही राजनीति अब बर्दाश्त नहीं की जा सकती। इस सरकार को चुनाव में वोट लेने के लिए बुंदेलखंड राज्य की याद आती है और सत्ता में आकर यह वादा बिसरा कर अपने काम में लग जाते हैं। इस व्यवहार को बुंदेली अब बर्दाश्त नहीं कर सकते।

नई नहीं है राज्य की कल्पना

ऐसा नहीं कि बुंदेलखंड राज्य किसी कल्पना का अंग हो। दरअसल बुंदेलखंड राज्य अपने आप में एक राज्य रह चुका है। आजादी के बाद 12 मार्च 1948 को संविधान सभा द्वारा बाकायदा इस बुंदेलखंड राज्य का गठन किया गया था जो लगातार 8 वर्ष और 7 माह तक एक राज्य की भांति रहा। इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री भी कामता प्रसाद सक्सेना रहे लेकिन बाद में 31 अक्टूबर 1956 को बुंदेलखंड राज्य का विलय उप्र और मप्र में कर दिया गया था। बुनिमो अध्यक्ष ने कहा कि अगले चुनाव में बुंदेलियों का नारा होगा-  'जो बुंदेलखंड की बात करेगा, वही हम पर राज करेगा।Ó हम इस सरकार के दोगले नुमाइंदो को सत्ता से बाहर करेंगे, यह केवल चुनावी बुंदेली हैं। हम लोग चुनाव में असली बुंदेली के साथ खड़े नजर आएंगे। अब बुंदेली, जनप्रतिनिधियों के विरोध में सड़कों पर उतरेंगे। बुंदेलखंड राज्य हमारा सपना है यह हमारी आन है, बान है और हमारी शान है। इसके साथ किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा। बुंदेलखंड तो हम लेंगे ही और जैसे दोगे वैसे लेंगे।

- राकेश ग्रोवर

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