कुल्हाड़ियों की आवाज खामोश हो गई हैं और वहां किसी भी जानवर को चरने की इजाजत नहीं है। इसलिए अब पन्ना जिले के पटना तमोली गांव की पहाड़ी ने मुरझाने, झुलसने, और उजड़ने के बावजूद सांस लेना शुरू कर दिया है। पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव 142 हेक्टेयर वीरान पहाड़ी को हरा-भरा करने की पहल के लिए चर्चा में है, जो 15 वर्षों में एक जंगल बन गया है। पटना तमोली के एक सेवानिवृत्त शिक्षक सेतुबंधु चौरसिया ने बताया, वर्तमान में यहां ऐसे पेड़ हैं जिनकी ऊंचाई 20 से 30 फीट के बीच है। यहां पर नीम के पेड़ और रात की चमेली सहित कुछ पेड़ प्राकृतिक रूप से उगे हैं, वहीं सागौन के पौधे लगाए गए हैं, उन्होंने उजड़ी हुई पहाड़ी ढलानों पर जंगलों को फिर से उगाने के लिए गांवों को एक साथ लाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव 142 हेक्टेयर वीरान पहाड़ी को हरा-भरा करने की पहल के लिए चर्चा में है, जो 15 वर्षों में एक जंगल बन गया है। चौरसिया सेतुबंधु ने बताया, पेड़ों के सिर्फ मरे हुए कुछ ठूंठ रह गए थे और जंगली झाड़ियों की जड़ों को भी नहीं बख्शा गया था। जलाओ के रूप में इस्तेमाल करने के लिए सब कुछ उखाड़ दिया गया था। 70 वर्षीय ने बताया, चूंकि पहाड़ी पर कोई वनस्पति नहीं थी, हर बार बरसात के मौसम में पानी मिट्टी को धो देता था। इस वजह से लगभग 5 हजार की आबादी वाले इस गांव के भूजल स्तर में गिरावट भी आई। परिवर्तन की बयार सेतुबंधु चौरसिया की हमेशा से ही पर्यावरण में दिलचस्पी थी और उन्होंने स्थानीय लोगों की एक टीम बनाई, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण टीम के तौर पर काम किया।
सेतुबंधु ने याद करते हुए बताया, जहां भी हमें जगह मिली, हमने पौधे लगाना शुरू कर दिया और 2004 में हमारा ध्यान पटना तमोली गांव की तरफ आकर्षित हुआ। वीरान पहाड़ी, जहां घास का एक तिनका भी नहीं था, वहां हरियाली लाने के लिए मदद की सख्त जरूरत थी। सेवानिवृत स्कूल शिक्षक ने बताया, हमने वहां काम करने का फैसला किया और गांव के लोगों से संपर्क किया। हालांकि, उस समय उन्हें इस क्षेत्र को हरा-भरा करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन, पहाड़ियों को हरा-भरा करने का विचार गांव के कुछ युवाओं को भा गया। सेतुबंधु ने बताया, अजय चौरसिया उनमें से एक थे और इलाके के युवा एक साथ इकट्ठा हुए और विचार जोर पकड़ने लगा। सिर्फ पटना तमोली ही नहीं, आसपास के गांवों ने भी दिलचस्पी दिखाई और धीरे-धीरे लोगों ने पहाड़ी की हरियाली को नुकसान पहुंचाना छोड़ दिया और वहां अपने मवेशियों को भी ले जाना बंद कर दिया। कुछ वर्षों के अंतराल में, मानव गतिविधि से विचलित न होकर, ढलानों पर हरे रंग की परत उगने लगी और पेड़ फिर से दिखाई देने लगे।
हरियाली आंदोलन का हिस्सा बने युवाओं में से एक प्रमोद वर्मा याद करके बताते हैं, 2005 में पहाड़ी पर हरे नाम का कोई निशान नहीं था। वर्मा ने बताया, सेतुबंधु के अभियान और उनके प्रोत्साहन की वजह से स्वयं सहित गांव के युवकों, अजय चौरसिया, ओम सोनी, वृंदावन चौरसिया, कृष्ण कुमार पांडा और हरिनारायण ने एक टीम बनाई और काम पर लग गए। वर्मा ने को बताया, शुरूआत में हमने पहाड़ी की किसी भी तरह की वनस्पति को छेड़ा नहीं और जल्द ही गिरे हुए पेड़ों से अंकुर निकलने लगे। सिर्फ तीन से चार वर्षों में, हरे रंग की चादर ने ढलानों को ढक दिया, और अब हमारे सामने एक जंगल खड़ा है। नतीजतन, पिछले पंद्रह सालों में, पटना तमोली में 142 हेक्टेयर में फैली एक बार खराब हो चुकी पहाड़ी, अब विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का घर है। पटना तमोली, एक ग्रीन तीर्थ स्थल आज न सिर्फ आसपास के गांवों और कस्बों के लोग, बल्कि वन अधिकारी भी पटना तमोली के लोगों के किए गए कार्यों की सराहना करते हैं।
20 साल पहले पटना तमोली एक घटना के कारण चर्चा में आया था। इस गांव में अगस्त 2002 में 65 वर्षीय महिला कट्टू बाई को उनके पति की चिता पर जिंदा जला दिया गया था। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने गांव वालों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए दो साल के लिए सरकारी सहायता देने से इंकार कर दिया। सती होने की घटना गांव पर कलंक थी। ग्रामीणों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण की पहल ने कुछ हद तक इस कलंक को धोया है। इसने न सिर्फ गांव वालों की सूरत बदली है, बल्कि अब पर्यावरण संरक्षण कार्य के लिए गांव की मिसाल दी जाने लगी है। हरित प्रयास में अहम योगदान देने वाले अजय चौरसिया ने दुख जताया कि कैसे विकास के नाम पर हर अवसर पर पर्यावरण को दूषित किया जा रहा है। अफसोस जताते हुए उसने बताया, इतने सारे रूल और रेगुलेशन के बावजूद, गैरकानूनी खनन, पेड़ों की कटाई और भूजल का दोहन बड़े पैमाने पर हो रहा है।
खत्म हो रहा नदियों का अस्तित्व
जगह-जगह बोरवेल करने से नदियों का अस्तित्व खत्म हो रहा है और न केवल पेड़, बल्कि पूरे जंगल काटे जा रहे हैं। उन्होंने बताया, जबकि लोग सूखे और बाढ़ के रूप में परिणामों का सामना कर रहे हैं, वे अभी भी इस तथ्य को नहीं समझ पा रहे हैं कि ये प्रकृति की चेतावनी हैं। उन्होंने कहा, हम संकेतों की अनदेखी कर रहे हैं और यह एक बहुत बड़ी गलती होगी। उन्होंने कहा कि पटना तमोली के लोग समय पर जागे, संकेतों को पढ़ा और सुधारात्मक उपाय करने का फैसला किया। सेतुबंधु ने काफी गर्व के साथ कहा, यह केवल हरी-भरी पहाड़ियां नहीं हैं जो हमारे लिए उत्सव का कारण हैं। नया जंगल पक्षियों की कई प्रजातियों का घर है और कई प्रवासी प्रजातियां भी अब हमारे पास आती हैं।
- धर्मेंद्र सिंह कथूरिया