केन-बेतवा लिंक परियोजना से वन्य जीवों को होने वाले नुकसान पर भारतीय वन्य जीव संस्थान ने गहरी चिंता जताई है। इसे देखते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने उप्र के रानीपुर वन्य जीव अभयारण्य और मप्र के दुर्गावती व नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के मध्य एक कॉरिडोर विकसित करने की योजना बनाई है। इसकी मदद से तीनों अभ्यारण्य में जीवों के अनुकूलता के अनुरूप एक माहौल मिल सकेगा। इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय ने ट्वीट कर जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि केन-बेतवा नदियों को जोड़ने के साथ जीवों के संरक्षण के लिहाज से विस्तृत कार्य योजना तैयार है। इससे रानीपुर में बाघों के संरक्षण के साथ गिद्ध और घड़ियाल जैसे अन्य कई प्रजातियों के जीवों का भी संरक्षण आसानी से होगा। जीवों के संरक्षण के लिए दोनों नदियों और उनके आसपास के पूरे इलाके का व्यापक अध्ययन और विश्लेषण किया गया है।
मंत्रालय ने ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप के लिए एकीकृत लैंडस्केप प्रबंधन योजना फाइनल कर दी है। इसे भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इस परियोजना की वजह से तीनों अभ्यारण्य के जीव सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में वन्य जीवों को सुरक्षित दूसरे स्थान पर बसाने के लिए कोर एरिया को विस्तार देने की योजना है। परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का करीब 50 फीसदी हिस्सा पानी में डूब जाएगा। ऐसे में टाइगर रिजर्व के दोनों नदियों केन और बेतवा पर बनने वाले ढोढन बांध में अब सबसे बड़ी अड़चन पन्ना टाइगर रिजर्व ही है। पहले यहां से वन्यजीवों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाना है। इसके लिए प्रक्रिया तेज हो गई है।
बाघों को बचाने के लिए नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य और दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य, उप्र के रानीपुर वन्य जीव अभयारण्य के बीच कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा। वहीं, बाघ, गिद्ध और घड़ियाल जैसी प्रमुख जातियों के संरक्षण और उन्हें आवास के साथ-साथ बेहतर प्रबंधन देने के लिए भी इस एकीकृत प्लान में व्यापक प्रावधान किए गए हैं। परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का करीब 50 फीसदी हिस्सा पानी में डूब जाएगा। ऐसे में टाइगर रिजर्व के दोनों नदियों केन और बेतवा पर बनने वाले ढोढन बांध में अब सबसे बड़ी अड़चन पन्ना टाइगर रिजर्व ही है। पहले यहां से वन्यजीवों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाना है। इसके लिए प्रक्रिया तेज हो गई है।
केन-बेतवा लिंक परियोजना को केंद्र और उप्र-मप्र की सरकारें जहां बुंदेलखंड के लिए क्रांतिकारी और बेहद लाभदायक बता रही हैं तो दूसरी तरफ परियोजना से प्रभावित हो रहे गांवों के ग्रामीण, कई पर्यावरण पैरोकार और स्वयंसेवी संगठन इसका लगातार विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी असहमति जताते हुए कहा कि इससे पन्ना टाइगर रिजर्व तबाह हो जाएगा। विरोध करने वालों की दलीलें हैं कि सबसे बड़ा नुकसान बुंदेलखंड के एकलौते अभ्यारण्य पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क को होगा। इसका बड़ा इलाका पानी में डूब जाएगा। बड़े पैमाने में जंगलों का सफाया होगा। केन नदी का अस्तित्व खतरे में आ जाने की दलीलें भी दी जा रही हैं। केन-बेतवा लिंक में प्रस्तावित ढोढन बांध के नजदीक दो पावर हाउस (बिजली घर) बनेंगे। इनकी क्षमता क्रमश: 60 एवं 18 मेगावाट होगी। दूसरे चरण में बीना कांप्लेक्स में भी 20 मेगावाट और 5 मेगावाट के दो पावर प्रस्तावित हैं। ढोढन बांध में कोई सोलर प्लांट नहीं बनेगा। अलबत्ता दूसरे फेज में लोअरर परियोजना में 19 मेगावाट और कोथा बैराज में 8 मेगावाट के सोलर प्लांट बनेंगे।
उधर केन-बेतवा लिंक परियोजना का निर्माण कार्य 8 साल में पूरा होगा। निर्माण कार्य की कार्ययोजना तैयार कर ली गई है। परियोजना के प्रीकंस्ट्रक्शन और इनवेस्ट सर्वे के लिए 243 दिन का समय तय किया गया है। वहीं 730 में जमीन अधिग्रहण का लक्ष्य रखा गया है। जबकि पहुंच मार्ग के लिए 487 दिन, प्रोजेक्ट रोड के लिए 488 दिन, ऑफिस व कर्मचारी निवासी के लिए 518 दिन और निर्माण के लिए बिजली उपलब्ध कराने के लिए 549 दिन का लक्ष्य रखा गया है। वहीं विस्तृत डिजाइन व ड्राइंग के लिए 730 और टेंडर प्रक्रिया के लिए 640 दिन का समय तय किया गया है। यानी 2 साल बाद ही निर्माण कार्य शुरू होगा।
टेंडर की प्रक्रिया के बाद डाइवर्सन नहर की खुदाई का काम शुरू होगा। जिसके लिए 182 दिन का समय तय किया गया है। वहीं कांक्रीट व कॉफर डैम निर्माण के लिए भी 182 दिन का समय लगेगा। इसके बाद परियोजना के मुख्य बांध ढोढन का अर्थवर्क शुरू होगा। बांध के फाउंडेशन कार्य में ही 1917 दिन यानि 5 साल का समय लगेगा। वहीं बांध का कांक्रीट वाला हिस्सा निर्माण करने के लिए 2098 दिन यानि इसमें भी 5 साल से ज्यादा का समय लगेगा। सबसे अंत में पावर हाउस का कॉम्प्लेक्स बनाया जाएगा। जिसके निर्माण में 912 दिन का समय लगेगा। इस तरह से मुख्य बांध का संपूर्ण निर्माण कार्य 8 साल में पूरा होगा।
परियोजना में विस्थापित होंगे 21 गांव
केन-बेतवा लिंक परियोजना की वजह से पन्ना टाइगर रिजर्व का आधा क्षेत्र डूब जाएगा। ऐसे में पार्क के वन्य प्राणियों को दूसरे स्थान पर सुरक्षित बसाने के लिए कोर एरिया को विस्तार देने की योजना है। इसके लिए पार्क से सटे 21 गांवों के लोगों को विस्थापित किया जाएगा। इनमें पन्ना जिले के 7 और छतरपुर के 14 गांव हैं। छतरपुर एवं पन्ना कलेक्टर ने संबंधित गांवों में संपत्ति का सर्वे शुरू करा दिया है। अगले 6 से 8 महीने में सर्वे का काम पूरा होने की संभावना है। उधर, दोनों नदियों पर बनने वाले ढोढन बांध को लेकर तमाम तरह के निर्णय लेने का अधिकार रखने वाली केन-बेतवा लिंक परियोजना अथॉरिटी का कार्यालय भी जून में ही भोपाल में खुल जाएगा। विश्वेश्वरैया भवन में अथॉरिटी को जगह दी गई है। इसके बाद छतरपुर जिले में भी कार्यालय खोला जाएगा।
- सिद्धार्थ पांडे