वर्चस्व की जंग
19-May-2020 12:00 AM 411

देश में सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाले मध्यप्रदेश में बाघों के बीच वर्चस्व की जंग जानलेवा साबित हो रही है। यह जंग किस कदर खतरनाक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में 22 दिनों के अंदर 8 बाघों की मौत हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि प्रदेश में बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है और वनक्षेत्र सीमित है। इसलिए बाघों में वर्चस्व के लिए लड़ाई के मामले बढ़ रहे हैं।

गौरतलब है कि अखिल भारतीय बाघ आंकलन में मध्यप्रदेश 526 बाघों के साथ देश में पहले स्थान पर है। यही नहीं, तीन टाइगर रिजर्व पेंच, कान्हा और सतपुड़ा देश में प्रबंधकीय दक्षता में प्रथम तीन स्थान पर हैं। मप्र को स्टेट टाइगर का दर्जा मिलने के बाद भी बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। खासकर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 22 अप्रैल को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की खितौली रेंज में 10 साल के बाघ का शव मिला है, तो सतना की व्हाइट टाइगर सफारी मुकुंदपुर चिड़ियाघर में बीमारी से 6 साल की बाघिन की मौत हो गई है। इन्हें मिलाकर प्रदेश में पिछले 22 दिनों में 8 बाघों की मौत हो चुकी है, जो देश में सबसे ज्यादा है।

प्रदेश में बाघों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। इसने वन अफसरों को चिंता में डाल दिया है, लेकिन वे इसका कारण नहीं तलाश पा रहे हैं। इन घटनाओं पर सरकार की भी अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है इसलिए मैदानी स्तर पर बाघों की सुरक्षा प्रबंधों में ढिलाई देखी जा रही है। घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन सख्ती नहीं दिखाई दे रही। बांधवगढ़ में 10 साल के बाघ की मौत का कारण दो बाघों के बीच आपसी लड़ाई बताया जा रहा है। वन अफसरों का अनुमान है कि रहवास क्षेत्र को लेकर दोनों में लड़ाई हुई होगी। जिसमें 10 साल के बाघ की मौत हुई है।

बांधवगढ़ में टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 1536 वर्ग किमी है, जिसमें बाघों के लिए सघन कोर जंगल महज 694 वर्ग किमी बताया जाता है। इसमें बाकी का हिस्सा बफर जोन का है जिसके कारण टैरोटिरि फाइट की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके कारण दस वर्षों में 50 बाघों की मौत की पुष्टि भी हुई है। टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने के बाद मध्यप्रदेश को यह तमगा बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण बन गया है। 2014 के बाद देश में बाघों की सर्वाधिक 150 मौत मप्र में ही हुई हैं। इसमें 42 बाघों का शिकार हुआ। ऐसे में सरकार को जल्द ही टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स स्थापित करना होगा। पर्यावरणविदों का कहना है कि यहां के जंगलों पर विकास के नाम पर गतिविधियां बढ़ाने का दबाव है। इसे रोकना होगा। टाइगर रिजर्व में बढ़ते जा रहे मानवीय दखल को कम करने के लिए खास रणनीति बनानी होगी। बाघों के रहवास के विकास के लिए भी ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

उधर, मुकुंदपुर जू में बाघिन की मौत का कारण बीमारी बताया जा रहा है। चार साल पहले औरंगाबाद से लाई गई बाघिन करीब पांच दिन से बीमार थी। उसे रह-रहकर तेज बुखार आ रहा था। जू के डॉक्टर बीमारी का ठीक से अंदाज नहीं लगा पाए हैं। हालांकि जबलपुर वेटनरी कॉलेज के डॉक्टर बाघिन का इलाज कर रहे थे। वन अफसरों का कहना है कि बाघिन का पोस्टमार्टम कर सैंपल लिए गए हैं। उनके परीक्षण से ही बीमारी का सही पता चलेगा। देश में सबसे ज्यादा बाघों की संख्या वाले मध्यप्रदेश में शिकारियों की भी नजरें हैं।

उधर, सीधी जिले के संजय टाइगर रिजर्व अंतर्गत कोर एवं बफर एरिया में शिकारियों द्वारा वन्य प्राणियों के शिकार का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जबकि सरकार द्वारा वन्य प्राणियों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए करोड़ों रुपए का बजट पानी की तरह बहाया जाता है। साथ ही विभाग द्वारा वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए सैकड़ों कर्मचारियों की तैनाती भी की गई है। इतना ही नहीं वन्य प्राणियों को सुरक्षा प्रदान करने में चूक न हो इसके लिए लाव लश्कर सहित अन्य जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती हैं। बावजूद इसके वन्य प्राणियों के शिकार का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

ऐसा ही एक मामला संजय टाइगर रिजर्व कोर एरिया अंतर्गत वन परिक्षेत्र पोंड़ी के आमगांव बीट प्रकाश में आया है। जहां ग्रामीण अंचल के विश्वस्त सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक शिकारियों द्वारा जानवरों के शिकार की नियत से विगत दिनों बिजली का खुला तार का जाल जंगल में फैलाकर उसमें हाई वोल्टेज करंट दौड़ाया गया था। बताया गया कि शिकारियों द्वारा बिछाए गए इस जाल में फंसकर एक सियार की मौत हो गई थी। जिसकी सूचना विभागीय कर्मचारियों के द्वारा संजय टाइगर रिजर्व के आला अधिकारियों को दी गई थी।

लॉकडाउन में शिकारी भी हुए सक्रिय

कोरोना वायरस के कारण इस समय सबका ध्यान इस वायरस के संक्रमण को रोकने पर है। इसका फायदा उठाते हुए वन्यप्राणी तस्कर और शिकारी जंगलों में डेरा डाल चुके हैं। वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि इसकी खबर मिलते ही अमला फिर से जंगल में उतर गया है। आए दिन बाघ और तेंदुए के शिकार की खबरें आ रही हैं। विगत दिनों एक बाघ का आधा कटा हुआ सिर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था। वायरल तस्वीर के साथ लिखे मैसेज में यह शिकार पन्ना जिले में इटवा में महुलिया के जंगल में होना बताया जा रहा है। इसमें रैपुरा वन विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है और इस मामले को दबाने के प्रयास का भी आरोप लगाया गया है। हालांकि पन्ना जिले का वन विभाग इससे इनकार कर रहा है। उनका कहना है कि मैसेज में जो दावा किया गया है, वो क्षेत्र पन्ना जिले में ही नहीं है। हालांकि बाद में मामला दब गया। उधर, प्रदेश के अन्य वन्य क्षेत्रों से भी तस्करों की सक्रियता की खबरें आ रही हैं।

- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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