राशन तो मिला पीने को पानी नहीं
19-May-2020 12:00 AM 695

फूस की झोपड़ी के नीचे हल को कुल्हाड़ी से मरम्मत कर रहे है 55 साल के सुंदर धुर्वे की एक चिंता कई पीढ़ियों से चली आ रही है। चिंता का नाम जल है। दरअसल, मप्र के आदिवासी बहुल जिलों में पीने के पानी की समस्या सबसे बड़ी है। यहां के लोगों का कहना है कि राशन तो आसानी से मिल जाता है लेकिन पीने का पानी खोजना मुश्किल भरा होता है। आदिवासी टोलों के अधिकतर लोग नदी का पानी पीकर जिंदगी जी रहे हैं। उन्हीं में शामिल हैं सुंदर धुर्वे। वे कहते हैं, कई पीढ़ी से नदी का पानी पीकर जिंदगी गुजर कर रहे है। मजदूरी से राशन चलता था, लेकिन अब वो भी बंद है। सुंदर धुर्वे के परिवार में उनके बूढ़े मां-बाप के अलावा दो बच्चे भी हैं। कहते हैं कि इस बार सरकारी राशन टाइम पर मिल गया है, जिससे खाने की परेशानी तो थोड़ी कम हो गई है, लेकिन पानी की समस्या पहले की ही तरह है।

दरअसल, यह एक व्यक्ति या एक परिवार की समस्या नहीं है, बल्कि मप्र के आदिवासी बहुल जिलों मंडला, डिंडौरी, झाबुआ सहित कई जिलों में आदिवासी लोगों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। आदिवासियों को पानी देना सरकार की प्राथमिकता ही नहीं है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड के सभी आदिम जनजातीय बहुल इलाके बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। सीधी में विलुप्त होती बैगा जनजाति के कल्याण के लिए उत्थान के लिए बना 'बैगा प्रोजेक्ट’ फेल हो गया है। जिले के कुसुमी क्षेत्र के दूरदराज के इलाकों में पानी की बूंद-बूंद के लिए संघर्ष है। मनडोलिया में हैंडपंप लगे हैं, लेकिन दो साल से सब सूख गए हैं। रोजगार गारंटी के तहत बनाया कुआं भी काम नहीं कर रहा है। हैंडपंप और कुआं सूखने के बाद अब गंदे नाले पानी के 'स्त्रोत’ के अलावा उनके पास कोई 'विकल्प’ नहीं बचा है।

सीहोर में भी तीन दर्जन से अधिक आदिवासी परिवार गंदे नाले से पानी लाने को विवश हैं। गुना जिले के चांचौड़ा और बीनागंज में जलापूर्ति की लाइन पिछले पांच दशक से जंग खाकर खत्म होने के कगार पर हैं। एक स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि खानपुरा तालाब से सत्तर के दशक में दो वाटर फिल्टर प्लांट बनाए गए थे जिनसे पानी फिल्टर करके सप्लाई किया जाता था। स्थानीय निवासी यह भी शिकायत कर रहे हैं कि वाटर फिल्टर प्लांट जाम हो चुके हैं। जिससे अब 10 इंची की जगह 3 इंची पाइप से पानी सप्लाई होता है। एक ही प्लांट होने के कारण प्लांट की सफाई करना ही संभव नहीं है। ऐसा करेंगे तो सफाई कार्य के चलते दो सप्ताह तक जलापूर्ति रुक जाएगी। चांचौड़ा एवं बीनागंज में चार-चार टैंकर जल आपूर्ति के लिए लगाए गए हैं लेकिन वो नाकाफी हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है, 'गांवों में 84 प्रतिशत आबादी जलापूर्ति से वंचित है। जिन्हें पानी मिल रहा है, उसमें 70 प्रतिशत प्रदूषित है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 20 प्रतिशत भूजल के स्त्रोत का अति शोषण हो रहा है। बारिश के पानी को बचाने के लिए, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की जरूरत है। यहां खेती का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर है। हार्वेस्टिंग के लिए केवल 40 फीसदी हिस्से में काम हो पाया है। राज्य शहरों में गंदे पानी के ट्रीटमेंट में फिसड्डी है। यहां शहरों में केवल 3 प्रतिशत गंदे पानी का ट्रीटमेंट होता है। वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में भारत 120वें स्थान पर है।

मध्य प्रदेश का श्योपुर आदिवासियों के साथ घोर अन्याय का प्रतीक है। यह अभावों की धरती है। लेकिन सियासी रोटी सेंकने के लिए माकूल जगह भी है। सारे ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्तर तेजी से गिर गया है। हैंडपंप पानी नहीं दे रहे। जंगल से लगे गांवों में पानी की समस्या और भी गंभीर है। पानी की समस्या को लेकर लोग प्रशासन की एक जनसुनवाई में पहुंचे तो हकीकत कैमरों में कैद हुई। चंद्रपुरा गांव की सुमिला अन्य 25 से अधिक महिलाओं के साथ कलेक्ट्रेट पहुंचीं थीं। महिलाओं ने कहा कि हैंडपंप खराब हो गए हैं। दूर खेतों से पानी ढोकर लाना पड़ रहा है।  बहरहाल पेयजल की इस हालत में खेती और सिंचाई की बात बेमानी है। आलम यह है कि चुनावों के दौरान नेता यहां पेयजल उपलब्ध कराने का वादा करते हैं लेकिन आज तक स्थिति जस की तस है।

नीति आयोग की नीति कारगर नहीं

नीति आयोग देश के समाज और अर्थ-वैज्ञानियों की जिम्मेदार संस्था है। उसकी रिपोर्ट में गंभीर जल संकट की ओर इशारा किया गया है। एक लाइन में कहें तो देश में 60 करोड़ लोगों के सामने पानी का गंभीर संकट है। यह देश के इतिहास के सबसे गंभीर जल संकट का दौर है। पानी की कमी से लाखों लोगों की जान और उनकी आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्य, जिनमें मप्र का पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ भी है, में जल प्रबंधन की स्थिति बेहद खराब है। 75 प्रतिशत आबादी पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक जाती है। इसके बावजूद जल प्रबंधन को लेकर कई राज्य गंभीर नहीं हैं। गौरतलब है कि आयोग ने जल प्रबंधन में गुजरात को सबसे अव्वल तो मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र को क्रम से दो से पांच तक के अंक दिए हैं। देश के 50 राज्य ऐसे हैं जहां पेयजल शुद्धता और गंदे पानी को ट्रीटमेंट के बाद उपयोगी बनाने की दिशा में काम करना अनिवार्य हो गया है। वॉटर हार्वेस्टिंग के बिना ऐसा संभव नहीं है। नीति आयोग ने सभी राज्यों के लिए नीति बनाकर जल शोधन का निर्देश दिया था, लेकिन अधिकांश राज्यों ने उसके निर्देशों का पालन नहीं किया। ऐसे राज्यों में मप्र भी शामिल है। अगर सरकार गंभीरता से इस दिशा में नीति बनाकर काम करती तो आज आदिवासियों के सामने विकट समस्या नहीं रहती।

- विकास दुबे

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