उम्मीदवारों की तलाश बड़ी चुनौती
04-Jun-2020 12:00 AM 362

 

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती ग्वालियर-अंचल में जिताऊ उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने की है। इस चुनौती से निपटने के लिए कमलनाथ लॉकडाउन के बीच पार्टी नेताओं से लगातार संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद अंचल में उभरे नए राजनीतिक समीकरण भी कमलनाथ की परेशानी की वजह हैं।

मध्य प्रदेश में पहली बार एक साथ 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है। विधानसभा की खाली सीटों को भरने की छह माह की अवधि सितंबर में समाप्त होगी। चुनाव आयोग को सितंबर से पहले उपचुनाव संपन्न कराना है। 22 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे के कारण हो रहे हैं। दो सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं। ये सीटें आगर और जौरा की हैं। जौरा विधानसभा क्षेत्र सिंधिया के प्रभाव वाले मुरैना जिले में आता है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सिंधिया समर्थक बनवारी लाल शर्मा चुनाव जीते थे। कांग्रेस ने हमेशा ही इस सीट पर सिंधिया की पसंद के आधार पर टिकट दिया है। ग्वालियर-चंबल अंचल में जौरा के अलावा 14 अन्य सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होना है। सबसे ज्यादा पांच सीटों पर उपचुनाव मुरैना जिले में ही होना है। मुरैना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का निर्वाचन क्षेत्र भी है।

प्रदेश में दलबदल के कारण हुए सत्ता परिवर्तन में दिग्विजय सिंह समर्थक ऐंदल सिंह कंसाना और बिसाहूलाल सिंह भी कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे। कंसाना मुरैना जिले के सुमावली से और बिसाहूलाल सिंह अनूपपुर से विधायक थे। बिसाहूलाल सिंह आदिवासी वर्ग से हैं। नौ सीटें अनुसूचित जाति वर्ग की हैं। इनमें आठ सीटें सिंधिया समर्थकों की हैं। ग्वालियर-अंचल की कुल पंद्रह सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होना है। कांग्रेस के लिए इन सीटों पर मजबूत उम्मीदवार तलाश करना काफी चुनौतीपूर्ण है। पिछले चार दशक से कांग्रेस इस क्षेत्र में टिकटों का वितरण महल की पंसद के आधार पर करती रही है। अंचल में पहली बार कांग्रेस सिंधिया राज परिवार के बगैर चुनाव मैदान में होगी। इससे पूर्व एक बार माधवराव सिंधिया ने भी कांग्रेस छोड़ी थी। पीवी नरसिंहाराव उस वक्त प्रधानमंत्री थे। लेकिन, उस दौरान विधानसभा का कोई चुनाव नहीं हुआ था। सिर्फ लोकसभा का ही चुनाव हुआ था। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का फायदा भारतीय जनता पार्टी ने उठाया था। इस बार पूरा सिंधिया राज परिवार एक साथ भारतीय जनता पार्टी में है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया शिवपुरी से विधायक हैं। शिवपुरी जिले में दो विधानसभा क्षेत्र करैरा और पोहरी में उपचुनाव होना है। बुआ और भतीजे के एक ही दल में होने के कारण इस बार महल समर्थकों के बीच चुनाव को लेकर किसी तरह के भ्रम की स्थिति नहीं है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस  छोड़ने से सबसे ज्यादा खुश वे नेता हैं, जो पिछले चार दशक से पार्टी में महल विरोधी राजनीति कर रहे हैं। सिंधिया को घेरने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ महल विरोधी नेताओं से सलाह-मशवरा भी कर रहे हैं। सिंधिया के प्रभाव वाले जिलों में कांग्रेस के नए अध्यक्ष नियुक्त भी कर दिए हैं। ग्वालियर कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष अशोक सिंह को बनाया गया है। अशोक सिंह के कारण कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच दूरी बननी शुरू हुई थी। अशोक सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं। दिग्विजय सिंह की अनुशंसा पर ही कमलनाथ ने अशोक सिंह को मध्य प्रदेश राज्य सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनाया था। शिवपुरी में कट्टर विरोधी श्रीप्रकाश शर्मा को जिला अध्यक्ष बनाया गया है। श्योपुर और गुना जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बदल दिए गए हैं। सिंधिया के गढ़ शिवपुरी के नवनियुक्त जिला अध्यक्ष श्रीप्रकाश शर्मा कहते हैं कि यदि यह उनका गढ़ होता तो लोकसभा का चुनाव वे नहीं हारते।

सिंधिया परिवार के प्रभाव से मुक्त होते ही ग्वालियर-चंबल अंचल में अपना-अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में कांग्रेस के दिग्गज नेता लगे हुए हैं। सिंधिया के बाद इस अंचल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और अजय सिंह के समर्थकों की संख्या ज्यादा है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पहली बार इस अंचल में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए सक्रिय हुए हैं। कमलनाथ की नजर उन नेताओं पर है, जो अब तक मुख्यधारा में नहीं आ सके हैं। किसी दौर में सुरेश पचौरी के समर्थक रहे पूर्व मंत्री राकेश चतुर्वेदी को कमलनाथ आगे बढ़ा रहे हैं। राकेश चतुर्वेदी वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस  छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। लोकसभा चुनाव के समय वापस लौटे हैं। सिंधिया ने कांग्रेस में वापसी कराई थी। चतुर्वेदी को मेहगांव विधानसभा सीट से टिकट दिए जाने की चर्चा है। चतुर्वेदी को टिकट दिए जाने का विरोध अजय सिंह और गोविंद सिंह कर रहे हैं। बताया जाता है कि उपचुनाव की रणनीति पर चर्चा करने के लिए कमलनाथ द्वारा बुलाई गई बैठक में अजय सिंह ने कहा कि यदि दलबदलुओं को टिकट दिया गया तो वे पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर होंगे। कमलनाथ उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार में वापसी की एक और कोशिश कर रहे हैं। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के रवैए से राह मुश्किल होती जा रही है।

भाजपा के असंतुष्टों को तोड़ने की कोशिश

सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से भाजपा का गणित भी गड़बड़ा गया है। भाजपा के जो नेता परंपरागत तौर पर सिंधिया और उनके समर्थकों के विरोध की राजनीति कर रहे थे, वे अब अपने भविष्य को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा नाराज नेताओं को मनाने में लगे हुए हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी के तेवर भी तीखे हैं। मनोज चौधरी के भाजपा में शामिल होने से पार्टी के भीतर ही उनका एक प्रतिस्पर्धी आ गया है। मनोज चौधरी ने हाट पिपल्या विधानसभा सीट पर दीपक जोशी को ही हराया था। उपचुनाव में मनोज चौधरी को पार्टी फिर टिकट दे रही है। इससे जोशी नाराज हैं। शर्मा से मुलाकात के बाद जोशी ने अभी चुप्पी साध रखी है। कमलनाथ, जोशी के भाजपा छोड़ने की संभावनाओं को भी तलाश कर रहे हैं। इंदौर में सिंधिया के कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट को घेरने के लिए प्रेमचंद्र गुड्डू को कांग्रेस में वापस लिए जाने की संभावना बन रही है। गुड्डू कहते हैं कि मैंने फरवरी में भाजपा छोड़ दी है। सिंधिया के एक अन्य कट्टर समर्थक गोविंद राजपूत को घेरने के लिए सागर जिले के भाजपा नेताओं को तोड़ने की कोशिश चल रही है। मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता आशीष अग्रवाल कहते हैं कि भाजपा का छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी यह अच्छी तरह जानता है कि कांग्रेस एक डूबता जहाज है। 

- भोपाल से रजनीकांत पारे

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