अगर यह कहा जाए कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे वाली महाआघाड़ी गठबंधन की सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की कृपा पर टिकी हुई है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस बात का संकेत मोदी-शाह ने ठाकरे को राज्य विधानपरिषद में निर्विरोध जिताकर दे दिया है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राज्य विधान परिषद के लिए निर्विरोध चुन लिए गए। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे की मुश्किलें भी खत्म हो चुकी हैं। यह संभव हो पाया है नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कृपा के कारण। दरअसल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को 27 मई तक राज्य की विधायिका का सदस्य बनना था। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण फिलहाल किसी चुनाव के आसार नहीं थे। ऐसे में ठाकरे की कुर्सी जानी तय थी और संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार पर भी संकट गहरा जाता।
बताया जाता है कि इस स्थिति से परेशान होकर 30 अप्रैल को ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और उसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। राज्यपाल ने ठाकरे का नाम सदस्यता के लिए मनोनीत तो नहीं किया लेकिन चुनाव आयोग से विधान परिषद की 9 रिक्त सीटों पर जल्द से जल्द चुनाव कराने का अनुरोध किया। उसके बाद विधान परिषद की 9 सीटों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई और 14 मई को उद्धव ठाकरे के अलावा 8 अन्य उम्मीदवारों को भी राज्य विधान परिषद के लिए निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अलावा विधान परिषद की उपसभापति नीलम गोरे (शिवसेना), रणजीत सिंह मोहिते पाटिल, गोपीचंद पाडलकर, प्रवीण दटके और रमेश कराड (सभी भाजपा) को भी निर्वाचित घोषित किया गया है। निर्वाचित होने वाले उम्मीदवारों में राकांपा के शशिकांत शिंदे और अमोल मितकरी तथा कांग्रेस के राजेश राठौड़ शामिल हैं। ये सभी उम्मीदवार विधान परिषद की उन 9 सीटों के लिए मैदान में थे जो 24 अप्रैल को खाली हुई थीं।
भले ही ठाकरे चुनाव जीतने के बाद राहत महसूस कर रहे हैं, लेकिन वे मोदी और शाह की कृपा पर ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं। दरअसल, वर्तमान समय में राज्य की स्थिति ऐसी नहीं है कि भाजपा तख्ता पलटकर अपनी सरकार बनाती। दरअसल, महाराष्ट्र पूरी तरह कोरोना की चपेट में है। पूरे राज्य में 26 हजार से ऊपर कोरोना संक्रमित लोग हैं। वहीं एक हजार से अधिक की मौत हो चुकी है। अभी भी स्थिति ऐसी है कि राज्य में कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में भाजपा कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती थी। अगर भाजपा तख्ता पलट कर देती तो उसके ऊपर यह आरोप लगते कि इस संकटकाल में भी उसने सत्ता के लालच में सरकार पलट दी। वहीं उस पर कोरोना को नियंत्रित करने का भार आ जाता। इसलिए मोदी-शाह ने राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न न हो इसके लिए विधान परिषद के चुनाव कराना ही उचित समझा।
गौरतलब है कि नवंबर 2019 में जब उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उस समय वो ना राज्य की विधानसभा के सदस्य थे और ना विधान परिषद के। भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार उनके पास दोनों में से किसी भी एक सदन का सदस्य चुने जाने के लिए छह महीनों का समय था। वो अवधि 28 मई को समाप्त हो रही थी और इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज्य के मंत्री-परिषद ने 9 अप्रैल को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से ठाकरे को विधान परिषद की सदस्यता के लिए मनोनीत करने की अनुशंसा की थी। अमूमन राज्यपाल मंत्री-परिषद की अनुशंसा नजरअंदाज नहीं करते हैं। लेकिन अगर कोश्यारी ठाकरे को सदस्यता के लिए मनोनीत नहीं करते तो वो विधायिका के सदस्य नहीं बन पाते और 28 मई तक उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना पड़ता। ऐसे में मोदी-शाह ने ठाकरे की गुहार को गंभीरता से लिया और विधान परिषद का चुनाव कराकर उन्हें निर्विरोध जीतने का मौका दे दिया। इस चुनाव के साथ 59 वर्षीय ठाकरे पहली बार विधायक बने हैं।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को जीवनदान तो मिल गया है लेकिन उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। कोरोना का संक्रमण इस समय उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। महाराष्ट्र में सबसे अधिक कोरोना के मामले तो हैं ही, यहां सबसे अधिक मौतें भी हो रही हैं। इसलिए ठाकरे को अभी चुनौतियों से लगातार जूझना है। अब देखना यह है कि वे इन चुनौतियों से किस तरह निकल पाते हैं।
उद्धव पर कृपा क्यों...?
उद्धव ठाकरे के निर्विरोध चुनाव जीतने के बाद देश की राजनीति में यह सवाल उठने लगा है कि उद्धव ठाकरे पर मोदी-शाह ने इतनी कृपा क्यों की है। तो इसके पीछे एक सोची-समझी राजनीति है। दरअसल, भाजपा और शिवसेना एक ही विचारधारा की पार्टी हैं। दोनों में वर्षों पुराना गठबंधन रहा है। भले ही इस बार दोनों पार्टियां अलग-अलग हो गई हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से दोनों में अभी भी जुड़ाव है। अगर भाजपा महाराष्ट्र की सरकार गिराने की कोशिश करती तो शिवसेना के साथ उसकी खाई और बढ़ती जाती। इससे भविष्य में दोनों पार्टियों में गठबंधन की कोई भी संभावना खत्म हो सकती थी। अत: मौके की नजाकत को भांपते हुए मोदी-शाह ने उद्धव ठाकरे की गठबंधन वाली सरकार को बचाकर उन पर एक एहसान कर दिया है। साथ ही यह रास्ता भी खोल दिया है कि अगर भविष्य में ठाकरे चाहें तो भाजपा उनके साथ गठबंधन कर सकती है। बिहार में भाजपा ऐसा प्रयोग कर चुकी है। वहां नीतीश कुमार और राजद के गठबंधन की सरकार थी। राजद की मनमानी जब बढ़ने लगी तो मोदी-शाह ने नीतीश कुमार की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और नीतीश कुमार ने राजद के साथ गठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना ली। भविष्य में कुछ ऐसा ही महाराष्ट्र में हो सकता है।
- बिन्दु माथुर