आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एलजी पॉलिमर्स से हुई गैस लीक ने भोपाल गैस त्रासदी के जख्मों को ताजा कर दिया है। यह बात भी फिर होने लगी है कि हम हादसों से सबक नहीं लेते हैं और न ही सामान्य स्थितियों में कुछ भी सोचते हैं। कानून और नियमों की अधिकता के बावजूद हमारे देश में रसायनिक हादसे न थम रहे हैं और न ही इन्हें रोकने का कोई कारगर उपाय हो रहा है। विशाखापट्टनम में यह पहली बार नहीं है, हर वर्ष यहां फैक्ट्रियों में हादसे होते हैं और लोगों की जाने जाती हैं। हालांकि इस बार रिहायश भी चपेट में है। देश में 329 ऐसी जगहें हैं जहां रसायनिक हादसों का जोखिम बहुत ज्यादा है।
भोपाल के बाद विशाखापट्टनम जैसा बड़ा हादसा हमने नहीं देखा है। रासायनिक हादसे हर वर्ष होते हैं, हम इसे स्वीकार करके आगे बढ़ जाते हैं। ऐसे हादसों से दुनिया में भारत की बड़ी जगहंसाई होती है। यह बहुत दुखद है कि कोविड-19 के दौरान जारी लॉकडाउन में आखिर किस तरह से रसायन को हैंडल किया गया और जांच की गई? जब हम प्लास्टिक के खतरनाक रसायन की बात करते हैं तो प्लास्टिक उद्योग इसकी उपेक्षा करता है। आज यह सबके सामने है कि इसका रसायन कितना खतरनाक है। प्लास्टिक के केमिकल का लोगों के स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा प्रकोप है लेकिन इंडस्ट्री इसे हमेशा नकारती है। कोई नहीं समझ रहा है कि प्लास्टिक में कितने खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है। सबसे बड़ा मुद्दा है कि कानून और नियमों का पालन सख्ती से न हो रहा है।
दुनिया में एक भी रसायन ऐसा नहीं है जिसे मासूम कहा जाए। इस सच को हम अच्छे से जानते हैं और इसके भुक्तभोगी भी हैं। दुनिया के सबसे बड़े रासायनिक हादसों में शामिल भोपाल गैस त्रासदी को 35 वर्ष हो चुके हैं और जानलेवा मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का प्रयोग अभी तक देश में प्रतिबंधित नहीं है। 2 से 3 दिसंबर, 1984 की मध्य रात्रि को बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी-अब डाउ केमिकल्स का स्वामित्व) के भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड प्लांट (यूसीआईएल) में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था और कुछ ही देर में पांच हजार से ज्यादा लोगों की जीवनलीला समाप्त हो गई। एमसीआई जैसे बेहद खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को अनिवार्य लायसेंस देने वाले उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीआईपीपी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि इसके विनियमन (रेग्युलेशन) को लेकर रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग काम कर रहा है। मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का इस्तेमाल कार्बारिल कीटनाशक और पॉलीयूरेथेन्स (एक प्रकार का प्लास्टिक) बनाने के लिए किया जा सकता है। यूसीसी की औद्योगिक इकाई भोपाल में एमसीआई गैस का इस्तेमाल कर कार्बारिल सेविन नाम से कीटनाशक तैयार करती थी। इस कीटनाशक को 8 अगस्त, 2018 से प्रतिबंधित किया गया है।
भोपाल गैस त्रासदी के बाद से सक्रिय कार्यकर्ता सतीनाथ सारंगी ने बताया कि मिथाइल आइसोसाइनेट को कभी प्रतिबंधित नहीं किया गया। यहां तक कि उसके उत्पादन में वसूली जाने वाली लेवी को भी घटा दिया गया। उन्होंने बताया कि यूनियन कार्बाइड का स्वामित्व हासिल करने वाली डाउ केमिकल्स अभी पॉलीयूरेथेन को भारत में ला रही है। यह जलने के बाद मिथाइल आइसोसाइनेट पैदा करती है। इतने बड़े औद्योगिक हादसे के बाद भी सरकारें जाग नहीं पाई हैं। मिथाइल आइसोसाइनेट या अन्य समकक्ष खतरनाक रसायनों को लेकर तीन से अधिक केंद्रीय मंत्रालय की अलग-अलग भूमिकाएं हैं। इनमें केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और कृषि मंत्रालय शामिल हैं। रसायन एवं पेट्रो विभाग में निदेशक धर्मेंद्र कुमार मदान ने बताया कि खतरनाक रसायनों के रेग्युलेशन को लेकर जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं हालांकि जानकार अधिकारी के कथन से इत्तेफाक नहीं रखते।
टॉक्सिक लिंक के पीयूष मोहपात्रा इस बिंदु पर कहते हैं 'रसायनों के प्रबंधन को लेकर मंत्रालयों की अलग-अलग भूमिका तर्कपूर्ण नहीं है बल्कि यह चिंताजनक है। यूरोपियन यूनियन में रसायनों के नियंत्रण के लिए पंजीकरण, आकलन, वैधता और प्रतिबंध (आरईएसीएच) जैसा विनियमन है लेकिन भारत में रसायन एक व्यवसाय है और उस पर कोई विनियमन नहीं किया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन इंटरनेशनल हेल्थ रेग्युलेशन एट प्वाइंट ऑफ इंट्रीज इंडिया के मुताबिक देश में 25 राज्यों और 3 संघ शासित प्रदेशों के 301 जिलों में 1,861 प्रमुख दुर्घटना वाली खतरनाक औद्योगिक ईकाइयां हैं। साथ ही असंगठित क्षेत्र में तीन हजार से ज्यादा खतरनाक फैक्ट्री मौजूद हैं। इनका कोई विनियमन नहीं है।
उद्योगों को खुश करने पर जोर
इन चिंताओं से हटकर सुस्त अर्थव्यवस्था में भी भारतीय रसायन उद्योग काफी उत्साहित है। केंद्र सरकार मेक इन इंडिया के जाम पहिए में रसायन उद्योग से ही ग्रीस डलवाना चाहती है। दरअसल, भारत दुनिया में रसायन उत्पादन के मामले में छठवे स्थान पर और कृषि रसायनों के मामले में चौथे स्थान पर है। 2017-18 के दौरान देश में कुल 4.90 करोड़ टन रसायन और पेट्रोरसायन का उत्पादन किया गया है। एसोचैम इंडिया की रिपोर्ट रीसर्जेंट 2015 के मुताबिक भारत में कुल 70 हजार रसायन बनाने वाली छोटी-बड़ी औद्योगिक ईकाइयां हैं और 70 हजार से भी ज्यादा रसायन उत्पाद यहां बनाए जा रहे हैं। देश में सबसे ज्यादा 69 फीसदी क्षारीय रसायन निर्मित किए जा रहे हैं जबकि पेट्रो रसायनों में 59 फीसदी बहुलक (पॉलीमर) का उत्पादन होता है।
- अक्स ब्यूरो