मप्र सरकार ने तालाबों के महत्व को समझते हुए उन्हें ग्रामीण विकास की धुरी बनाने का फैसला किया है। राज्य सरकार प्रदेशभर के गांवों में ऐसे पुराने तालाबों का पुनरुद्धार कर रही है, जो अनुपयोगी हो गए थे। इनमें मछली पालन और सिंघाडा उत्पादन जैसी आर्थिक गतिविधियां संचालित की जाएंगी। सरकार का अनुमान है कि इस मॉडल से गांव में करीब 3000 करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था आकार लेगी। सरकार ने इसे 'पुष्कर धरोहर समृद्धि अभियानÓ नाम दिया है। सरकार इस योजना से बड़े राजनीतिक फायदे भी देख रही है।
मप्र के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने गांवों के आर्थिक विकास के लिए यह योजना तैयार की है। राज्यभर में पुराने और अनुपयोगी हो चुके करीब 40,000 तालाबों की पहचान कर ली गई है। यह संख्या 50,000 तक पहुंचने का अनुमान है। पुनरुद्धार में प्रति तालाब पचास हजार से दो लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है। इनका काम मनरेगा के माध्यम से किया जाएगा। योजना के ज्यादातर तालाबों की पहचान आदिवासी बहुल जिलों में की गई है। इसमें उमरिया, बड़वानी, शहडोल, बालाघाट और बैतूल प्रमुख हैं। उपयोग के आधार पर इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में वे तालाब हैं जो केवल सिंचाई के काम आएंगे। दूसरे में मछली पालन और तीसरे में सिंघाड़ा उत्पादन किया जाएगा। तालाबों का सबसे ज्यादा उपयोग सिंचाई के लिए किया जाएगा। अनुमान है कि इनसे करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा मिल सकेगी। ये ऐसे क्षेत्र होंगे जहां फिलहाल सिंचाई सुविधा नहीं है।
तालाबों का उपयोग तय करने और उनका संचालन सहित सारे अधिकार पंचायतों के पास होंगे। पंचायतों ने तालाबों की पहचान करने के साथ ही संचालन करने वाले समूह भी तय कर लिए हैं। राज्य सरकार का मानना है कि यह अभियान ग्राम स्वराज को नए सिरे से परिभाषित करेगा। अभियान की रूपरेखा बनाने वाले पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव कहते हैं, तालाब हमेशा गांव के विकास की धुरी रहे थे, हमने उस मॉडल को भुला दिया। तालाबों का नष्ट होना राष्ट्रीय क्षति है। हमारा प्रयास है कि उस पुरानी व्यवस्था को फिर से लागू किया जाए। इसमें समुदाय के हितों के लिए गांव की पूंजी, ज्ञान और कौशल को एक साथ लाने का प्रयास किया जा रहा है।
उमराव तालाबों से गांव के विकास का एक सफल प्रयोग पहले कर चुके है। कलेक्टर रहते हुए उन्होंने देवास में खेत तालाब बनाने का अभियान शुरू किया था। इसमें स्वयं के खर्च पर किसान को तालाब बनाना होता था। उस समय देवास में ट्रेन से पानी की सप्लाई होती थी। आज वहां के किसान समृद्ध श्रेणी में आते हैं। वहां अब तक 20,000 से अधिक तालाब बन चुके हैं जिन पर किसानों ने स्वयं करीब 6000 करोड़ रुपए का खर्च किया है। इनसे तीन लाख हेक्टेयर में सिंचाई की जा रही है। इस मॉडल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया था।
सफल देवास मॉडल के आधार पर ही इस अभियान की रूपरेखा तय की गई। इसमें पुराने तालाबों को चुना गया और व्यक्ति के बजाय सामुदायिक विकास को धुरी बनाया गया। पुराने तालाब चुने जाने के पीछे उमाकांत उमराव कहते हैं कि वे सर्वश्रेष्ठ स्थान पर बनाए गए थे। अभियान के अंतर्गत कई जिलों में पुनरुद्धार का काम शुरू किया जा चुका है। उनका कहना है कि इस अभियान से आर्थिक विकास के साथ गांवों को जल संकट से भी मुक्ति मिल जाएगी। भूजल स्तर भी बढ़ेगा, जिससे गांवों के कुएं भी जिंदा हो जाएंगे।
सरकार इसमें अपने लिए बड़ा राजनीतिक फायदा भी देख रही है, क्योंकि इसकी सफलता को चुनावों में भुनाया जा सकता है। गांवों में काम करने वाले स्वसहायता समूहों को ज्यादा से ज्यादा काम सीधे दिए जा रहे हैं। पुष्कर धरोहर समृद्धि अभियान से पंचायतों को मजबूत किया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पुष्कर धरोहर समृद्धि अभियान की रूपरेखा जिस तरह तय की गई है, यदि उसी रूप में अमल हुआ तो वह विधानसभा चुनावों में शिवराज सरकार के लिए मास्टर स्ट्रोक होगा।
जंगलों के आसपास बनाएंगे तालाब, फसलें भी बचेंगी
जंगलों में पानी के स्रोत कम या खत्म होने पर वन्य प्राणियों का जंगल से सटे गांवों-कस्बों में आना शुरू हो जाता है। इससे जहां ग्रामीणों की जान पर संकट होता है, वहीं शाकाहारी वन्य प्राणी उनकी फसलें भी चौपट कर देते हैं। यह समस्या अमूमन देश के हर राज्य में है, किंतु मप्र ने इसका हल निकालने के लिए एक प्रयोग करने की तैयारी की है। इसके तहत गांव से सटे जंगलों में वन्य प्राणियों के लिए तालाब, स्टापडैम बनवाए जाएंगे। इससे जहां जंगल में पानी मिलने से वन्य प्राणी जंगलों में ही रहेंगे, वहीं जल संरचनाओं के कारण उन क्षेत्रों का जल स्तर बेहतर होगा। जल संरचनाओं का निर्माण महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) से होगा। वन विभाग स्थल चयन में सहयोग करेगा। आमतौर पर जंगलों से सटे गांवों में किसान वन्य प्राणियों द्वारा फसल को चौपट करने से परेशान रहते हैं। इसके लिए वे बागड़ भी लगाते हैं पर यह कदम अधिक कारगर साबित नहीं होता है। विधानसभा में यह वन्य प्राणियों द्वारा फसलों को चौपट करने का विषय उठता रहता है। दरअसल, वन्य प्राणी पानी की तलाश में भटककर खेतों में आ जाते हैं। इससे फसल को तो नुकसान पहुंचता ही है ग्रामीणों की जान पर संकट भी होता है। वन विभाग वन क्षेत्रों में छोटे तालाब आदि का निर्माण भी कराता है पर इतनी संख्या सीमित होती है।
- राजेश बोरकर