बंदी के दौरान सबसे ज्यादा पुलिस और चिकित्सा कर्मी जान जोखिम में डालकर काम में लगे हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि लोग इस बात को समझ नहीं रहे हैं और अफवाहों और गलत जानकारियों के शिकार हो रहे हैं और हमले जैसा कदम उठा रहे हैं। पिछले हफ्ते इंदौर की एक मुस्लिम बस्ती में कोरोना संदिग्धों की जांच के लिए पहुंचे चिकित्सा कर्मियों के दल को डेढ़-दो सौ लोगों की भीड़ ने घेर लिया था।
इन दिनों पुलिस और चिकित्सा कर्मियों पर हमलों की बढ़ती घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं। बंदी के दौरान लोग घरों से न निकलें, सड़कों पर न घूमें, इसका पालन करवाना पुलिस के लिए भारी साबित हो रहा है। इसी तरह लोग कोरोना जांच के लिए आने वाले चिकित्सा कर्मियों से भी सहयोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन पर हमले कर रहे हैं। सवाल है कि इस वक्त हम जिस संकट से गुजर रहे हैं, उसे लोग समझ क्यों नहीं रहे हैं। पुलिस पर हमले की ताजा घटना उत्तर प्रदेश के बरेली और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में देखने को मिली। बरेली में पुलिस पर हमला उस वक्त हुआ, जब पुलिस शहर से सटे एक गांव में कुछ तबलीगियों के बारे में पूछताछ करने पहुंची। तभी बंदी के दौरान घूम रहे कुछ लोगों को घरों में रहने को कहा। इसी पर बढ़े विवाद में पुलिस एक शख्स को थाने ले आई। इसके बाद करीब पांच सौ ग्रामीणों ने थाने को घेर लिया। लाठीचार्ज कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को खदेड़ा गया।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तो और बदतर स्थिति देखने में आई। शहर के इस्लामनगर में रात जमा भीड़ को हटाने पहुंची पुलिस पर लाठियों, सरियों और चाकुओं से हमला कर दिया गया। बताया जा रहा है कि हमलावरों में दो कुख्यात अपराधी भी हैं, जिनकी शह पर यह हुआ। पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए हमलावरों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन इस घटना से यह तो साफ है कि अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और वे पूर्ण बंदी को सफल नहीं होने देने के लिए इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। सरियों, चाकू से होने वाले हमले का मतलब है कि शरारती तत्व पहले से तैयार थे।
दरअसल, ज्यादातर जगहों पर अब नई समस्या यह सामने आ रही है कि सूचनाओं के आधार पर पुलिस तब्लीगी जमात से लौटे लोगों की तलाश में जहां-जहां जा रही है, उसे ऐसे विरोध और हमलों का सामना करना पड़ रहा है। अगर पुलिस ऐसे लोगों का पता नहीं लगाएगी और तब्लीगी जमात से लौटे लोग स्वयं बाहर आकर सच नहीं बताएंगे, तो न जाने कितने लोगों में यह संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ता चला जाएगा। बंदी के दौरान सबसे ज्यादा पुलिस और चिकित्सा कर्मी जान जोखिम में डालकर काम में लगे हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि लोग इस बात को समझ नहीं रहे हैं और अफवाहों और गलत जानकारियों के शिकार हो रहे हैं और हमले जैसा कदम उठा रहे हैं। पिछले हफ्ते इंदौर की एक मुस्लिम बस्ती में कोरोना संदिग्धों की जांच के लिए पहुंचे चिकित्सा कर्मियों के दल को डेढ़-दो सौ लोगों की भीड़ ने घेर लिया था। हालांकि जांच टीम के लोग किसी तरह बच निकले और जान बचाई। जिस तरह से लोग हमले कर रहे हैं, वे अचानक होने वाले हमले नहीं हैं। ये सुनियोजित हमले हैं। हालांकि इसके पीछे एक वजह यह भी है कि लोगों में जांच कराने को लेकर डर है।
जानकारी के अभाव में लोगों को लगता है कि कहीं पुलिस पकड़ कर उन्हें चौदह-पंद्रह दिन के लिए अलग न कर दे। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह की घटनाओं के बावजूद चिकित्सा कर्मियों और पुलिस ने ज्यादातर मौकों पर संयम का परिचय दिया है। इस तरह के हमले कर्तव्य-निर्वहन में जुटे कर्मियों के मनोबल पर बुरा असर डालते हैं। इसलिए आपराधिक तत्वों के सख्ती जरूरी है। आज पूरा भारत कोरोना के खिलाफ पूर्ण बंदी के माध्यम से जंग लड़ रहा है। लेकिन दूसरी ओर, इसी देश में तब्लीगी जमात के सैकड़ों लोगों ने सबसे बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। तब्लीगी जमात के लोगों को जब कोरोना की जांच के लिए बसों में ले जाया जा रहा था, तभी कुछ लोग बस से बाहर थूंकने लगे। इससे भी ज्यादा शर्मनाक हरकत तब्लीगी जमात के मरीजों ने गाजियाबाद स्थित एमएमजी अस्पताल में महिला नर्सों के साथ की। इंदौर में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए पहुंची टीम पर हमले किए गए। ऐसे कृत्यों की एक सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है। आज योद्धा बनकर डॉक्टर और अस्पताल कर्मी मरीजों को बचाने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ शरारती लोग ऐसी हरकतों से इन योद्धाओं का मनोबल तोड़ रहे हैं। अगर हमें कोरोना से जंग जीतनी है, तो डॉक्टरों का मनोबल बढ़ाना और उनके साथ सहयोग करना जरूरी है।
असली चेहरा कौन?
इंदौर में पिछले हफ्ते टाटपट्टी बाखल इलाके में कोरोना संदिग्धों की जांच के लिए गई टीम पर हुए हमले ने आधुनिक भारत के सभ्य समाज को कलंकित करने की सारी हदें पार कर दीं। दूसरी ओर, दिल्ली में पूर्ण बंदी होते हुए भी निजामुद्दीन इलाके में तब्लीगी जमात का मामला सामने आया, जिसने कोरोना महामारी को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई। सिलसिलेवार हुई इन दोनों ही घटनाओं ने इस देश को सोचने पर मजबूर अवश्य किया है। सोचने वाली बात यह है कि एक तो पूर्ण बंदी के रहते इन धर्म प्रशिक्षुओं की इतनी तादाद में भीड़ कैसे जमा हो गई? साथ ही जिस टाटपट्टी बाखल इलाके में हमला हुआ, वह हाई रिस्क जोन के अंतर्गत आता है और इस इलाके में तो सुरक्षा मजबूत होगी ही। वैसे बंदी के दौरान हर जगह पुलिस रहती है, लोगों के आने-जाने पर नजर रहती हैं, तो फिर अचानक से 100 से ज्यादा लोगों का इकट्ठा होना क्या किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं है? आखिर जान बचाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों और दिल्ली ंमे कोरोना पीड़ितों का इधर-उधर थूकने जैसी घटनाएं क्या संदेश देती हैं। सवाल है कि आखिर ये कौन-सी ताकतें हैं जो भारत को गर्त में धकेल रही हैं? इनके असली चेहरे को बेनकाब करना जरूरी हो गया है। हाल ही में कई वैश्विक संस्थाओं ने यह उम्मीद जताई थी कि इस संकट काल में भारत एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है। भारत के पास अवसर है कि वह अपनी क्षमता का प्रदर्शन करे। लेकिन इस तरह की घटनाएं भारत की छवि को धूमिल कर रही हैं।
- विकास दुबे