देश को 60 फीसदी सोयाबीन उत्पादन देने वाले मप्र में इस बार नकली बीज और मौसम की मार से पीले सोने की पैदावार 65 फीसदी गिरी है। इससे प्रदेश के किसानों को बड़ी चपत लगी है। वहीं इस बात का संकेत भी है कि सोयाबीन बीज का संकट फिर बढ़ेगा। इस कारण किसानों को एक बार फिर से नकली बीज माफिया का शिकार होना पड़ेगा। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सोयाबीन की फसल को सबसे अधिक नकली बीजों से नुकसान पहुंचा है। इस बार प्रदेश की कंपनियों ने बड़ी मात्रा में सोयाबीन का नकली बीज खपाया है। इस कारण जहां खेती का रकबा घटा है, वहीं पैदावार भी घटी है। उधर, कंपनियां नकली बीज बेचकर मालामाल हो गई हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में 144.6 लाख हैक्टेयर में खरीफ बुआई का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें 60 लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की बुआई होनी थी। लेकिन 58.46 लाख हैक्टेयर ही बोवनी हो पाई। लेकिन मौसम की बेरूखी और नकली बीज-खाद की मार से फसल तबाह हो गई। जिससे उत्पादन में गिरावट आई है। ज्यादातर किसान अगले वर्ष के लिए बीज संकट की स्थिति को भांप रहे हैं। सोयाबीन प्रमुख रूप से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान और कर्नाटक में पैदा होती है। मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में किसान प्रवीण परमार बताते हैं कि उन्होंने कुल 5 एकड़ में सोयाबीन की खेती की थी। अनियमित वर्षा ने उनकी फसलों को बर्बाद कर दिया। एक एकड़ में जहां पांच क्विंटल तक सोयाबीन की उम्मीद लगाकर बैठे थे, वहीं उन्हें एक एकड़ में सिर्फ एक क्विंटल सोयाबीन मिली है। इस वक्त वे खेतों को खाली करा रहे हैं।
प्रवीण परमार बताते हैं कि इस वक्त व्यापारी 2000 रुपए से 2200 रुपए तक ही प्रति क्विंटल सोयाबीन का दाम तय कर रहा है। कृषि बिल के हिसाब से मैं अपनी लागत और फायदे को जोड़ भी दूं तो सोयाबीन कौन खरीदेगा। एक एकड़ में करीब 11 हजार रुपए की लागत लगी है, जब प्रति क्विंटल 3000 रुपए से अधिक दाम वाली सोयाबीन एक एकड़ में कम से कम चार क्विंटल होती तो मेरी लागत निकलती लेकिन मौजूदा रेट भी बेहद कम है और सोयाबीन पांच एकड़ में महज पांच क्विंटल हुई है। इन्हें बीज के लिए रखा जा सकता है। क्योंकि कुछ बीज पिछली बार खरीदी थी लेकिन वे फेल हो गईं।
परमार कहते हैं कि किसानों की सोसाइटी सरकारी बीज मुहैया जरूर कराती है लेकिन वह 6700 रुपए के करीब मिलती है, जबकि हम सभी किसान आपस में ही बातचीत करके 4000 रुपए तक बीज की व्यवस्था कर लेते हैं। इस बार फसल हुई नहीं तो बीजों का संरक्षण भी कम होगा, ऐसे में बीज की किल्लत तो बनेगी, हो सकता है महंगा बीज भी खरीदना पड़े। जुलाई-अगस्त के अंत तक असयम वर्षा ने सोयाबीन के किसानों को खूब परेशान किया। सितंबर के शुरुआती दिनों में इंदौर की मंडी में पहुंचने वाले सोयाबीन में नमी का हिस्सा तय मानक से काफी ज्यादा था, वहीं अब जब पूरी तरह से सोयाबीन के मंडी में पहुंचने का वक्त है तब मंडी के व्यापारी आंदोलन पर हैं। कृषि से जुड़े आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि सामान्य वर्षा के अनुमान के कारण इस वर्ष भारत में सोयाबीन का रकबा भी बढ़ा था। 2019-20 में भारत में 113.98 लाख हैक्टेयर (281.65 हैक्टेयर) क्षेत्र में सोयाबीन बोई गई जबकि बीते वर्ष की समान अवधि में 110.71 लाख हैक्टेयर ही सोयाबीन क्षेत्र था।
महाराष्ट्र के वासिम जिले में सचिन कुलकर्णी बताते हैं कि उनके जिले में सोयाबीन की बंपर पैदावार होती है लेकिन इस बार वर्षा ने फसल चौपट कर दिया है। किसान पहले ही कोरोना संक्रमण की मार से परेशान था और अब इतनी भी फसल नहीं है कि बीजों का सही से संरक्षण हो सके। इसका असर अगले साल जरूर होगा। बीज काफी महंगी हो जाएंगी।
भारत दुनिया में सोयाबीन उत्पादन में चौथा स्थान रखता है। 2020-21 में दुनिया में कुल 36.44 करोड़ टन सोयाबीन उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। वहीं, सोयाबीन उत्पादन को लेकर सरकार के तीसरे एडवांस अनुमान (2019-2020) के मुताबिक 1.22 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान आंका गया था जबकि बीते वित्त वर्ष में 1.32 करोड़ टन उत्पादन हुआ था। वहीं, अब विशेषज्ञ इस अनुमान से कम उत्पादन का अंदाजा लगा रहे हैं। भारत सोयाबीन का निर्यात ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बहरीन, बांग्लादेश, बेल्जियम, मैयोटे, भूटान, ब्रुनेई, बुल्गारिया और कंबोडिया को करता है।
खरीफ सीजन की बुवाई के समय हुई 'अच्छीÓ बारिश से यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि इस बार अच्छी फसल होगी, लेकिन जब फसल पकने लगी या पक कर तैयार हुई, उस समय हुई बेमौसमी बारिश ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। खरीफ सीजन 2020-21 का पहला अनुमान बताता है कि ज्यादातर फसलों का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले कम भी रह सकता है।
पीले सोने की चमक काली पड़ी
कृषि विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में इस बार रिकार्ड 58.46 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बोवनी हुई थी। इस कारण उम्मीद जताई जा रही थी कि गेहूं की तरह सोयाबीन की भी बंपर पैदावार होगी, लेकिन नकली बीज, अतिवृष्टि, वायरस और कीटों के प्रकोप ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पीला सोना कहलाने वाली सोयाबीन न सिर्फ काली पड़ गई बल्कि दाना भी सिकुड़ गया। इस कारण न्यूनतम 2000 और अधिकतम 3650 रुपए क्विंटल ही भाव मिल पा रहे हैं। राजधानी भोपाल में कृषि विभाग के क्राप कटिंग (फसल कटाई प्रयोग) में प्रति हैक्टेयर 50 किलो से दो क्विंटल तक पैदावार हुई है, जबकि अनुकूल स्थिति होने पर प्रति हैक्टेयर 10 से 15 क्विंटल तक सोयाबीन फसल होती है। कोरोना संक्रमण से जूझ रहे किसानों को सोयाबीन की कम पैदावार ने बड़ी आर्थिक चोट मारी है। भोपाल के अलावा सीहोर, शाजापुर, आगर, राजगढ़, उज्जैन, देवास आदि जिलों में भी यही स्थिति है। मंडियों में सोयाबीन बेचने के लिए आने वाले किसानों के आंसू निकल रहे हैं। उनकी पीड़ा यह है कि कर्ज लेकर सोयाबीन की बुआई की थी, किंतु पैदावार इतनी भी नहीं हुई है कि लागत निकल जाए। ऐसे में रबी फसल के लिए फिर से कर्ज के बोझ तले दबना पड़ेगा।
- श्याम सिंह सिकरवार