20-Nov-2020 12:00 AM
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मप्र के चारों महानगर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट लगभग एकसाथ शुरू हुए थे, लेकिन भोपाल को छोड़कर किसी अन्य शहर का स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट अभी तक पूरी तरह रफ्तार नहीं पकड़ पाया है। प्रदेश के चारों महानगरों में से ग्वालियर स्मार्ट सिटी की रफ्तार सबसे धीमी है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि शहर के विकास को गति नहीं मिल पा रही है। वहीं स्मार्ट सिटी का फंड दूसरे शहरों को ट्रांसफर किया जा रहा है।
ग्वालियर स्मार्ट सिटी के कार्यों की धीमी चाल से नगरीय प्रशासन आयुक्त ने भोपाल स्मार्ट सिटी के खाते में 50 करोड़ रुपए ट्रांसफर करवा दिए हैं। भोपाल स्मार्ट सिटी से अगर समय पर पैसा वापस नहीं मिला तो आने वाले समय में ग्वालियर के विकास में पैसों की कमी आड़े आ सकती है। वहीं पैसे जाने के मामले को तूल पकड़ता देख नगर निगम आयुक्त संदीप माकिन ने कहा है कि पैसे जल्द ही वापस आ जाएंगे।
ग्वालियर स्मार्ट सिटी के खाते में वर्तमान में 250 करोड़ के करीब रुपए जमा है। इस राशि का उपयोग वर्तमान में चल रहे प्रोजेक्टों एवं नवीन प्रोजेक्टों के लिए किया जाना है। लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकांश प्रोजेक्ट कछुए की गति से चल रहे हैं। इसके कारण इस राशि का उपयोग नहीं हो पा रहा है। वहीं भोपाल स्मार्ट सिटी को किन्हीं प्रोजेक्टों के लिए पैसों की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने नगरीय प्रशासन आयुक्त से पैसों की मांग की। इस मांग को देखते हुए उन्होंने ग्वालियर स्मार्ट सिटी के खाते से 50 करोड़ रुपए भोपाल स्मार्ट सिटी के खाते में ट्रांसफर करने का आदेश नगर निगम आयुक्त संदीप माकिन को दिया। इसके बाद ग्वालियर स्मार्ट सिटी के खाते से यह पैसा भोपाल स्मार्ट सिटी के खाते में ट्रांसफर किया गया है।
मप्र में भोपाल स्मार्ट सिटी का काम सबसे तेजी से चल रहा है। जहां तक ग्वालियर स्मार्ट सिटी का सवाल है तो यहां स्मार्ट सिटी के कई प्रोजेक्ट कछुआ चाल से चल रहे हैं। स्मार्ट सिटी ग्वालियर के पास कई बड़े प्रोजेक्ट हैं। इनमें से कई प्रोजेक्ट अभी तक योजना में है तो कई प्रोजेक्टों पर अभी तक कार्य भी प्रारंभ नहीं हो पाया है। स्वर्ण रेखा नदी प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी के पास है, लेकिन अभी तक स्वर्ण रेखा नदी में यह निर्णय नहीं हो पाया है कि इसमें क्या किया जाए कि इसके अंदर साफ पानी बहे। साथ ही अभी तक यह भी निर्णय नहीं हो पाया है कि इसे किस प्रकार सुंदर बनाया जाए, इस पर सड़क बनाई जाए, अथवा पुल बनाया जाए। वहीं अमृत योजना के तहत स्वर्ण रेखा नदी में फिर से सीवर की लाइन डाली जा रही है। अगर यह सीवर लाइन नदी के किनारे सड़क के नीचे डाली जाती है, और नालों के पानी को साफ कर फिर इसे स्वर्ण रेखा नदी में छोड़ा जाता तो पानी साफ बह सकता है। लेकिन अभी तक इस पर निर्णय नहीं हो पाया है।
शहर में करीब 241 करोड़ रुपए की लागत से शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए स्मार्ट रोड बनाई जानी है। लेकिन अभी तक इसकी टेंडर प्रक्रिया ही पूरी नहीं हो पाई है। स्मार्ट सिटी के तहत शहर में इलेक्ट्रिक बसें संचालित की जानी है। इसके लिए जगह-जगह स्टेशन एवं बसों को चार्ज करने के लिए चार्जिंग स्टेशन बनाए जाने है। इस पर सरकार की 40 प्रतिशत सब्सिडी भी है। लेकिन अभी तक यह कागजों में ही है। शहर की सड़कों पर स्मार्ट सिग्नल लगाए जाने हैं, लेकिन अभी तक यह भी कार्य धीमी गति से चल रहा है। मोती महल का सौंदर्यीकरण किया जाना है, इसके अभी एक हिस्से जिसमें कंट्रोल एंड कमांड सेंटर बना हुआ है, यह भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया है। अभी भी इसके एक हिस्से में कार्य किया जा रहा है। जबकि हालत यह है कि स्मार्ट सिटी के कर्मचारियों और अधिकारियों के पास बैठने के लिए पर्याप्त कैबिन तक नहीं बने हैं।
वहीं टाउन हॉल के सौंदर्यीकरण का कार्य स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के प्रांरभ होने से पहले का चल रहा है। लेकिन अभी तक यह पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया है, इसके कारण इसका अभी तक लोकार्पण नहीं हो सका है। तारामंडल (प्लेनिटोरियम) बनाने के लिए गोरखी स्काउट को स्मार्ट सिटी ने लिया है। लेकिन यहां पर अभी तक यह कार्य पूरा नहीं हो सका है, जबकि स्काउट को निगम ने 2019 में अपने कब्जे में ले लिया था। साथ ही इसकी अभी तक रेट भी निर्धारित नहीं हो सकी हैं। ऐसे में ग्वालियर में स्मार्ट सिटी का काम बाधित पड़ा है।
2300 करोड़ का प्रोजेक्ट
केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी की सूची में ग्वालियर को भी शामिल कर दिया है। इसके लिए नगर निगम ग्वालियर ने करीब 2300 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स कंसल्टेंट मेहता एंड मेहता द्वारा तैयार कर केंद्र को भेजे थे। उक्त प्रोजेक्ट में महाराज बाड़ा और उसके आसपास के क्षेत्र में रेक्ट्रोफिटिंग कर विरासत को संजोते हुए आधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। इसके लिए गत वर्ष केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू की ग्वालियर यात्रा के बाद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, महापौर विवेक शेजवलकर और तत्कालीन निगमायुक्त अनय द्विवेदी ने दिल्ली जाकर नायडू से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर शहर के प्रजेंटेशन से संबंधित जानकारी को साझा किया था। जिस पर नायडू ने तोमर को सकारात्मक परिणाम के लिए आश्वस्त भी किया था। ग्वालियर के स्मार्ट सिटी बनाने का रास्ता साफ होने के बाद शहर के लोगों को लगा था कि उन्हें भी देश-दुनिया के स्मार्ट शहरों के जैसी सुविधाएं ही मिल सकेंगी। पुरातात्विक स्थलों का न केवल संरक्षण होगा, वरन उनके आसपास से गुजरने पर भी राजसी माहौल जैसी अनुभूतियां होगी। सुरक्षा, चिकित्सा और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएगी, लेकिन अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण स्मार्ट सिटी निर्माण की गति तेज नहीं हो पा रही है। इससे शहर के लोगों में निराशा का भाव है। उधर, स्मार्ट सिटी का 50 करोड़ रुपए भोपाल ट्रांसफर होने से लोगों को यह लगने लगा है कि शासन-प्रशासन ग्वालियर की जगह भोपाल को प्राथमिकता दे रहा है।
- अरविंद नारद