बजट पर पहरा
20-Nov-2020 12:00 AM 1057

 

मप्र में उपचुनाव के बाद शिवराज सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो गया है। सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक संकट है। क्योंकि सरकार की आमदनी में भारी गिरावट आ चुकी है और खर्चे बढ़ गए हैं। कोरोनाकाल में भी सरकार ने हितग्राही मूलक योजनाओं में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए, क्योंकि सरकार के सामने उपचुनाव था। कोरोना संक्रमण की वजह से प्रदेश को स्वयं और केंद्रीय करों से मिलने वाली राशि में कमी आई है। इसका असर बजट पर भी पड़ा है। लोक निर्माण, जल संसाधन, चिकित्सा शिक्षा सहित 8 विभागों को छोड़कर 44 विभागों को स्वीकृत बजट का 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा खर्च करने की अनुमति नहीं दी गई है। पिछले साल की आर्थिक मंदी और इस साल कोरोना संकट से प्रदेश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है।

केंद्रीय करों में राज्य का हिस्सा और राज्य करों से होने वाली आमदनी को मिलाकर करीब 15 हजार 815 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। सरकार को अपने जरूरी खर्चे चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। पिछले 7 माह में सरकार 11,500 करोड़ रुपए तक का कर्ज ले चुकी है। दूसरी तरफ, आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के साथ सरकार को कई छूट देनी पड़ रही है। इसका असर भी खजाने पर पड़ रहा है। यही वजह है कि कर्मचारियों को सातवें वेतनमान के एरियर की आखिरी किश्त, वार्षिक वेतन वृद्धि और महंगाई भत्ते में वृद्धि का भुगतान रोकना पड़ा।

मुख्यमंत्री फसल ऋण माफी योजना, लाडली लक्ष्मी, हाउसिंग फॉर ऑल, मुख्यमंत्री पुलिस आवास योजना, निर्मल भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, अमृत योजना अशासकीय, स्कूलों को आरटीआई के तहत ट्यूशन फीस की प्रतिपूर्ति, समेत 21 योजनाओं में बगैर वित्त विभाग की अनुमति के भुगतान करने पर भी रोक लगा दी गई है। वित्त सचिव ने बजट अनुमान को लेकर विधानसभा में एक स्मृति पत्र भी पेश कर दिया है जिसके मुताबिक कोरोना महामारी के कारण केंद्र और राज्य की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। स्वयं के कर और केंद्रीय करों के हिस्से से मिलने वाली राशि में 15 हजार 815 करोड़ रुपए की कमी रहने की संभावना है। केंद्र सरकार ने फरवरी में जो बजट अनुमान प्रस्तुत किया था तब मप्र को केंद्रीय करों की राशि 61,840 करोड़ रुपए प्रस्तावित की थी, लेकिन कोरोना के कारण स्थिति बदल चुकी है। अब राजस्व में कमी और वर्ष 2019-20 में प्राप्त 4400 करोड़ रुपए अधिक राशि का सहयोग समायोजन करते हुए सरकार को यह राशि देगी। वहीं, राज्य के स्वयं के कर से 48 हजार 801 करोड़ रुपए की आय होने का अनुमान है।

अनुमानत: प्रदेश पर करीब 2 लाख 28 हजार 181 करोड़ रुपए का कर्ज है। इसमें सर्वाधिक 1 लाख 54 हजार 604 करोड़ रुपए का ऋण बाजार, 29,251 करोड़ रुपए अल्प बचत, 24,856 करोड़ रुपए केंद्र सरकार, 11,572 करोड़ रुपए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक सहित अन्य वित्तीय संस्थाओं से लिया जा चुका है। एफआरबीएम के तहत मप्र को जीडीपी से 3.5 प्रतिशत तक का बिल लेने की मंजूरी है। इस हिसाब से मप्र सरकार इस वित्तीय साल में औसत 34 हजार करोड़ रुपए तक कर ले सकती है। शिवराज सरकार ने गत दिनों बाजार से 1 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। इससे पहले 7, 13 और 21 अक्टूबर को सरकार बाजार से 1-1 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। शिवराज सरकार अपने 7 माह के कार्यकाल में 9वीं बार कर्ज ले रही है। वित्त विभाग के नोटिफिकेशन के मुताबिक, 4 अक्टूबर को 20 साल के लिए एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेने की प्रक्रिया पूरी की गई है। केंद्र से अतिरिक्त मदद लेना मुश्किल रहेगा क्योंकि केंद्र के राजस्व में भी कमी आई है। कोरोना के कारण प्रदेश की आर्थिक स्थिति खराब है। इसलिए अतिरिक्त टैक्स लगना आसान नहीं। जीएसटी के कारण टैक्स की भी लिमिट है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 में स्टेट जीएसटी और आईजीएसटी कलेक्शन का लक्ष्य 16 हजार 100 करोड़ रुपए है। इसमें से 8 हजार 663 करोड़ रुपए अक्टूबर तक जमा हो चुके हैं। हालांकि यह भी पिछले साल के अक्टूबर तक हुए कलेक्शन से 22 फीसदी कम है। वित्तीय वर्ष 2019-20 अक्टूबर तक 11 हजार 157 करोड़ रुपए एकत्रित हो चुके थे। जीएसटी कलेक्शन बढ़ने से मप्र की वित्तीय स्थिति में सुधार होगा। लॉकडाउन लगने के तीन-चार महीनों में प्रदेश सरकार ने सोचा था कि जीएसटी कलेक्शन में 30 से 40 फीसदी की कमी रहेगी। यह अक्टूबर में 22 प्रतिशत पर पहुंच गई। अनुमान है कि यह नवंबर-दिसंबर में और घटेगी।

जीएसटी कलेक्शन से आस

कोरोनाकाल के कारण आई आर्थिक मंदी अब प्रदेश से भी मंद पड़ने लगी है। इसके संकेत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के ताजा संग्रह से मिले हैं। प्रदेश में पिछले साल के मुकाबले इस साल अक्टूबर में जीएसटी कलेक्शन में 35 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई। यह अभी तक किसी भी महीने में बढ़ोतरी का रिकॉर्ड है। इसके पीछे ऑटो-मोबाइल, पार्ट्स, रेडिमेड सेक्टर, जनरल गुड्स, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, ड्रायफू्रट और टाइल्स के साथ अन्य कारोबार में बढ़ोतरी को बड़ी वजह माना जा रहा है। यही रफ्तार और सकारात्मकता नवंबर से मार्च तक बनी रही तो मप्र स्टेट जीएसटी और आईजीएसटी के कलेक्शन के लक्ष्य को 80 से 90 प्रतिशत तक हासिल कर लेगा। राज्य सरकार ने व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए अपने स्तर से भी कर्मचारियों को फेस्टिवल एडवांस और सातवें वेतनमान के एरियर की अंतिम किश्त का 25 प्रतिशत देकर प्रयास किए हैं। वाणिज्यिक कर विभाग का मानना है कि नवंबर में भी ग्रोथ बरकरार रहेगी। सितंबर और अक्टूबर में मिली ग्रोथ की मुख्य वजह यह भी है कि कोरोना संक्रमण के कारण अप्रैल, मई, जून, जुलाई में न कोई कारोबार हुआ और न ही रिटर्न दाखिल हुए। अगस्त से व्यापारियों ने कारोबार खोला तो रिटर्न भी जमा हुए। अक्टूबर में इतनी बड़ी ग्रोथ का यह एक प्रमुख कारण है। अच्छा जीएसटी कलेक्शन अप्रैल, मई, अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर के साथ फरवरी-मार्च में होता है। नवंबर में भी ग्रोथ रह सकती है।

- नवीन रघुवंशी

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