सियासी संतुलन
04-Feb-2020 12:00 AM 441

वर्तमान समय में मप्र की कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं है। लेकिन पार्टी के नेताओं में हमेशा एक अनजाना डर देखा जा सकता है। सबसे अधिक तब जब ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश में सक्रिय होते हैं। लेकिन विगत दिनों अपने प्रदेश दौरे के दौरान सिंधिया भोपाल और इंदौर में सियासी संतुलन साधते दिखे। ऐसे में सिंधिया के इस कदम का प्रदेश की राजनीतिक वीथिका में अलग-अलग नजरिए से देखा गया। मप्र कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि यहां जितने दिग्गज नेता हैं पार्टी उतने धड़े में बंटी हुई है। बात भी सही है। लेकिन वर्तमान समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री कमलनाथ गुट सबसे अधिक चर्चा में है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कमलनाथ ने या तो कुछ गुटों को साध लिया है या दबा रखा है। ऐसे में प्रदेश में जब भी सिंधिया सक्रिय होते है प्रदेश कांग्रेस में राजनीतिक हलचल का पारा बढ़ जाता है। लेकिन जनवरी में सिंधिया का तीसरा दौरा कांग्रेस को सियासी सुकून दे गया। सिंधिया के दौरे से पहले तरह-तरह की अटकलें लगाई गईं थी। लेकिन उनके इस दौरे में मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं तथा खुद सिंधिया ने गुटीय समीकरणों को भ्रामक प्रचार साबित करने का प्रयास किया। सिंधिया ने जनवरी महीने में प्रदेश के तीन दौरे किए। 16 से 19 जनवरी के चार दिन के तीसरे दौरे में सिंधिया ने गुटीय राजनीति की छाप से हटकर दूसरे नेताओं के समर्थकों से मेल-मिलाप कर सर्वमान्य नेता की छवि दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने इसके लिए पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से हटकर दूसरे नेताओं के यहां पहुंचकर कांग्रेसजन को चौंकाया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल प्रवास पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी भी उनके साथ सक्रिय दिखाई दिए। वहीं, सिंधिया ने न केवल अपने समर्थक दो मंत्रियों सहित अन्य नेताओं को समय दिया, बल्कि उन्होंने कमलनाथ सर्मथक मंत्री सुखदेव पांसे व पचौरी समर्थक मानी जाने वाली मंत्री डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ के निवास पर पहुंचकर प्रदेश कांग्रेस के दूसरे खेमों में भी अपनी मौजूदगी दर्शाने की कोशिश की। यही नहीं सिंधिया ने अपने चार दिन के प्रवास में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पहुंचकर कार्यकर्ताओं से मिलने का कार्यक्रम बनाया था। यहां वे अपने समर्थकों के अलावा पार्टी के दूसरे नेताओं के समर्थकों से मिले। उन्होंने अपने समर्थकों को पीछे रखते हुए आम कार्यकर्ताओं के साथ मेल-मुलाकात की। विदिशा में स्थानीय विधायक के घर पहुंचकर उनका मान रखा। चार दिन के दौरे में वे भोपाल, इंदौर, विदिशा, चंदेरी, मुंगावली में शादी समारोह व स्थानीय नेताओं से सौजन्य मुलाकात करने उनके निवास पर पहुंचे तो अपनी पार्टी के नेताओं के घरों में हुए शोक पर श्रद्धांजलि देने उनके घर भी पहुंचे। सिंधिया के इस रूप को देखकर कांग्रेसी भी दंग रह गए। कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का भोपाल दौरा भले ही खत्म हो गया हो, मगर उसके निहितार्थ खोजे जाने लगे हैं। डिनर से लेकर पार्टी कार्यालय में हुई बैठक में गुटबाजी सतह पर दिखी। कमलनाथ खेमा इस पूरे कार्यक्रम से दूर रहा। इसने कई तरह की अटकलों को जन्म दिया गया। सिंधिया दिल्ली में कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर दौरे पर आए थे, इसलिए इसे उन्हें मिलने वाली नई जवाबदारी से जोड़कर देखा रहा है। इस दौरे से मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जिस तरह से दूरी बनाई उसकी भी चर्चा है। कमलनाथ भोपाल में थे और आईएएस एसोसिएशन के डिनर में शामिल होने गए लेकिन सिंधिया की मौजूदगी में मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के यहां डिनर में वे नहीं पहुंचे। अगस्त में जब सिंधिया की मौजूदगी में मंत्री तुलसी सिलावट ने डिनर दिया था तब कमलनाथ पहुंचे थे और खासा समय दिया था लेकिन गोविंद राजपूत के यहां वे नहीं पहुंचे। वे चाहते तो थोड़े समय के लिए जाकर आ सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके मायने तलाशे जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि कमलनाथ के सिंधिया से संबंध ठीक नहीं है। वे साथ-साथ दिखते रहे हैं। इसलिए चर्चा यह है कि मुख्यमंत्री गोविंद सिंह राजपूत से नाराज हैं। एक समय गोविंद की अगुवाई में ही सिंधिया समर्थकों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था। कैबिनेट की बैठक तक में बड़ा हंगामा हुआ था। चर्चा यह भी है कि कमलनाथ ने सिंधिया के दौरे से दूरी बनाकर संदेश देने की कोशिश की है कि वे प्रदेश में दो पावर सेंटर बनने देने के पक्ष में नहीं है। - सुनील सिंह

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