शाह हुए सफल
23-Jun-2020 12:00 AM 842

 

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में एक लंबी पारी खेलने के बाद अब अमित शाह देश के गृहमंत्री के तौर पर काम कर रहे हैं। गृहमंत्री के रूप में उनका एक साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। इस दौरान देश में कई ऐतिहासिक निर्णय हुए हैं। शाह के गृहमंत्री बनने के बाद कई ऐसे निर्णय हुए हैं, जो आजादी के बाद से ही प्रतीक्षारत थे। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी को एक बार फिर ताकत और विश्वसनीयता मिली है। लोगों को उम्मीद है कि यह जोड़ी भारत को विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

मोदी सरकार का 1 साल पूरा हो गया है। इस दौरान अगर किसी मंत्रालय की सबसे ज्यादा चर्चा हुई और जिसने देश के इतिहास को बदलने वाले कुछ निर्णय लिए तो वह है भारत सरकार का गृह मंत्रालय, जिसकी अगुवाई गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं। पिछले एक साल में जहां इस मंत्रालय द्वारा कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए तो वहीं सबसे ज्यादा चर्चा का केंद्र भी यही मंत्रालय रहा, जिस पर विपक्ष ने कई मौकों पर समय पर काम न करने का आरोप लगाया। आइए जानते हैं आखिर एक साल में अमित शाह का गृह मंत्रालय क्यों रहा महत्वपूण।

भारत समेत पूरा विश्व कोरोनावायरस की चपेट में है। पिछले 25 मार्च से देश में लॉकडाउन लागू हुआ था। पिछले 100 साल में ऐसा पहला मौका था जब किसी महामारी के चलते गतिविधियों में ताला लगा दिया गया था। इस निर्णय को देशभर में लागू करवाना और इसके साथ ही समन्वय से चरणबद्ध तरीके से महत्वपूर्ण गतिविधियों को गतिशील बनाए रखना मोदी सरकार के सामने बड़ी चुनौती थी और इससे निभाया गृह मंत्रालय ने। हालांकि विपक्ष जरूर सवाल उठा रहा है कि प्रवासी श्रमिकों की समस्या सरकार नहीं समझ पाई और लॉकडाउन लागू करना मोदी सरकार की गलती थी और आज भी यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। लेकिन अगर हम नजर डालेंगे कि लॉकडाउन की चार चरणों को कैसे देश में अमल किया गया तो उसमें गृह मंत्रालय की भूमिका का अंदाजा लग जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद जैसे ही लॉकडाउन देशभर में शुरू हुआ प्रदेशों को किस दिशा में जाना है क्या-क्या निर्देशों का पालन करना है गृह मंत्रालय की ओर से लगातार निर्देश आने शुरू हो गए। इन निर्देशों से प्रदेशों को यह जानकारी मिलने में सहूलियत हुई कि आखिरकार अब जब महामारी के चलते पूरा देश बंद हो जाएगा तो कैसे हमें काम करना है। आदेश जारी करने के बाद समय-समय पर इसकी निगरानी करने के लिए गृह मंत्रालय ने कई स्पष्टीकरण भी जारी किए। एक ओर जहां स्वास्थ्य मंत्रालय व अन्य मंत्रालय अपने-अपने विभागों का काम देख रहे थे तो वहीं गृह मंत्रालय ने कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान एक 24 घंटे का कंट्रोल रूम अपने मंत्रालय में स्थापित कर दिया था और दोनों गृह राज्यमंत्री लगातार इस कंट्रोल रूम में काम की निगरानी करते। हर घंटे सिलसिलेवार तरीके से देश के हर एक राज्य की जानकारी इस कंट्रोल रूम में ली जाती और उसके मुताबिक रणनीति बनाई जाती और दिशा-निर्देशों का खाका तैयार किया जाता। कोरोनावायरस संक्रमण का दौर अब भी जारी है लॉकडाउन पूरी तरीके से कब उठेगा और कैसे गतिविधियां सामान्य दिशा की ओर बढ़ेगी यह आने वाले दिनों में गृह मंत्रालय के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।

5 अगस्त 2019 को गृहमंत्री अमित शाह अपनी चिर परिचित अंदाज में संसद भवन आए। लेकिन उससे पहले सबको यह आभास हो चुका था कश्मीर को लेकर कुछ न कुछ अहम जरूर होने वाला है। उसकी वजह थी कश्मीर में भारी तादात में सुरक्षा बलों की मौजूदगी, ठीक 1 घंटे पहले यानी 9 बजे हुई कैबिनेट और कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी की अहम बैठक और कश्मीर में हो रही तमाम तरीके की हलचल ने भी इस हवा को जोर दे दिया था। हाथ में चंद कागजात लिए गृहमंत्री अमित शाह ने संसद भवन में बोलना शुरू किया। करीब 11:05 पर उन्होंने ऐलान किया कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया जाएगा। यानी कि जो विशेष अधिकार इस कानून के तहत कश्मीर के लोगों के पास था अब इस धारा के हटने के बाद वह अधिकार खत्म हो गए थे। कश्मीर में अब आईपीसी के कानून के मुताबिक न्याय व्यवस्था चलने का ऐलान किया गया। इस धारा के हटने के बाद सबसे अहम बदलाव ये हुआ कि अब कश्मीर में भारत का कोई भी आदमी आकर जमीन खरीद सकता है अगर बेचने वाला शख्स राजी है। इस धारा के हटने के बाद से मानो भारत के लिए कश्मीर के रास्ते खुल गए। लेकिन स्थानीय लोग यानी कश्मीर में जो लोग रहते हैं वह इस धारा के हटने के बाद किस तरीके से अपनी प्रतिक्रिया देंगे इसका अभी सबको इंतजार है।

पिछले कई दशकों में असम और उसके आसपास के इलाकों में बोडोलैंड राज्य की अलग मांग कर रहे कई संगठनों ने हथियार उठा रखा था और लगातार प्रदेश में हिंसक वारदात को अंजाम दे रहे थे। गृह मंत्रालय ने पहली बार इन अलग-अलग गुटों को एक मंच पर लाया और उनके साथ विकास का खाका बनाकर एक ऐसी शांति की प्रक्रिया स्थापित की जिसके बाद यह संगठन मुख्यधारा में आने को तैयार हो गए। दरअसल इससे पहले भी बोडो संगठनों को बातचीत के लिए मनाया गया था लेकिन एक साथ सारे संगठन बात नहीं मान रहे थे। मध्यस्थकारों के जरिए सारे पक्षकारों को एक मंच पर लाया गया नई दिल्ली बुलाया गया और शांति समझौते पर ऐतिहासिक हस्ताक्षर किए गए।

5 अगस्त को गृहमंत्री मंत्री अमित शाह ने एक और अहम घोषणा की वह थी जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन। इस अधिनियम में जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने का प्रावधान है। पहला जम्मू और कश्मीर, दूसरा लद्दाख। इस अधिनियम के प्रावधान 31 अक्टूबर 2019 से लागू हुए। हालांकि गृहमंत्री ने ये भी साफ किया कि जम्मू-कश्मीर को वापस प्रदेश बनाया जा सकता है अगर तय समय की समीक्षा के बाद माहौल अनुकूल पाया गया। इस अधिनियम के पारित होने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित होने का प्रावधान है। यानी देश में जितने भी केंद्र शासित प्रदेश हैं अब उनकी तरह जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भी होगा। 5 अगस्त को ही हुई इस घोषणा के बाद भारत में जम्मू-कश्मीर का नक्शा बदल गया और 2 नए केंद्र शासित प्रदेश अपने अस्तित्व में आ गए। ब्रू रियांग समझौते का फैसला करीब 35000 लोगों से जुड़ा हुआ था लेकिन इसके जरिए गृहमंत्री अमित शाह ने देशभर में यह संदेश देने की कोशिश की कि दूरदराज इलाके में रह रहे अल्पसंख्यक लोगों को अगर प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा हो तो भारत सरकार उनके साथ है। मिजोरम से लाकर त्रिपुरा में ऐसे लोगों को बसाने के लिए भारत सरकार और 2 प्रदेशों की सरकार ने कई महीनों तक मिलकर एक योजना तैयार की और उसके बाद ऐतिहासिक समझौते पर दस्तखत किए।

जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन 2019 विधेयक भी मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद सत्र के पहले महीने में ही पारित हो गया। इस विधेयक के पारित होने के बाद जम्मू में भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर रह रहे लोगों को 3 फीसदी आरक्षण का लाभ उसी तरह से मिलना शुरू हो गया जैसे नियंत्रण रेखा पर रह रहे लोगों को मिलता है। सरकार का बिल पारित कराने के पीछे ये मकसद था कि जम्मू और कश्मीर के लोगों को समान अधिकार और सहूलियतें मिले। जम्मू-कश्मीर से जुड़े महत्वपूर्ण कदम उठाते वक्त गृहमंत्री ने यह साफ कर दिया कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों के साथ है और हर कदम पर उस इलाके के विकास के लिए वह काम करेगी। इसीलिए सरपंचों और पंचों का जम्मू-कश्मीर में सशक्तिकरण किया गया यानी उन्हें और ज्यादा वित्तीय अधिकार दिए गए जिसके बाद उन्हें अपने गांव में अपने इलाकों में अपनी जरूरत के हिसाब से पैसे खर्च करने की छूट है। इसके अलावा केंद्र सरकार के 80,000 करोड़ रुपए जो परियोजनाएं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में चल रही हैं उसके भी काम में तेजी लाई गई है।

यूएपीए कानून में बदलाव और एनआईए को मजबूत बनाना इन दोनों कानूनों को मजबूत बनाने के लिए संसद में दो महत्वपूर्ण बिल पारित कराए गए जिसके पीछे सरकार का मकसद यही था कि जांच एजेंसियां जो संवेदनशील अपराधों की तफ्तीश कर रही है उनको और ज्यादा शक्ति मिले। यही नहीं कानून को इतना मजबूत बना दिया जाए कि अगर जांच एजेंसियों के पास पुख्ता सबूत है तो अपराधी को तुरंत सजा मिले। यह तो थी संसद के भीतर सरकार द्वारा कुछ ऐतिहासिक कदम उठाए जाने की बात। लेकिन संसद के बाहर भी कुछ ऐसे कदम थे जिसके जरिए सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह बदलाव करना चाहती है और इसके लिए देश को तैयार रहना चाहिए।

पुलिसिंग को मजबूत बनाने पर जोर

अपने 100 दिनों के कार्यकाल में गृहमंत्री अमित शाह ने जिन पुलिस अकादमियों का दौरा किया उसमें हैदराबाद की नेशनल पुलिस अकादमी और दिल्ली की ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रमुख थे। इसके अलावा गृहमंत्री दिल्ली के पुलिस मेमोरियल भी गए जिसको शहीद हुए पुलिसकर्मियों की याद में बनाया गया है। पुलिस सिस्टम से जुड़ी इन जगहों का दौरा कर गृहमंत्री ने यह साफ कर दिया कि पुलिस व्यवस्था को दुरुस्त करना उसके महत्वपूर्ण लक्ष्य में से एक है। इसके लिए पुलिस को मजबूत बनाने के लिए विशेष संस्थान खोले जाएंगे जहां पर वह खासतौर के तकनीकी शिक्षा ले सकें साथ ही तैनात पुलिस वालों को उनके काम के लिए पूरा सम्मान मिले इसके लिए सिर्फ पुलिसकर्मियों के लिए स्मारक बनाया गया जिसमें आजादी के बाद से अब तक 35 हजार से ज्यादा शहीद हुए पुलिसकर्मियों का नाम है। गृह मंत्रालय की ओर से अमित शाह ने यह साफ कर दिया कि अपराधियों से 10 कदम आगे पुलिस को रहना चाहिए तभी अपराध पर काबू पाया जा सकेगा। गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सल प्रभावित प्रदेशों के मुख्यमंत्री के साथ 26 अगस्त को बैठक की जिसमें गृहमंत्री शाह के साथ नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहे। 

गृह मंत्रालय पर सवाल

पिछले एक साल के दौरान अगर महत्वपूर्ण निर्णय जिस मंत्रालय ने दिए तो विपक्ष की ओर से सवाल भी इसी मंत्रालय पर सबसे ज्यादा उठाए गए। इस फेहरिस्त में सबसे आगे था दिल्ली दंगों के दौरान गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस का वक्त पर सही कदम न उठाना। विपक्ष का आरोप था कि समय पर कदम नहीं उठाए गए इसलिए 40 लोगों की मौत दिल्ली दंगों के दौरान हो गई। इसका जवाब गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में दिया। सिलसिलेवार तरीके से प्रभावशाली कदम उठाने का सिलसिला घटना के दिन से ही शुरू हो गया था। बहरहाल इस पूरे प्रकरण की जांच चल रही है। इसके अलावा जेएनयू और जामिया में छात्रों का जो उग्र प्रदर्शन हुआ उसे लेकर भी विपक्ष का यही कहना था कि सरकार ने छात्रों की बात नहीं सुनी इसीलिए आंदोलन उग्र होता गया। जबकि सरकार का पक्ष यही था कि छात्रों की हर वाजिब मांग को वह सुनने को तैयार है। काफी गतिरोध के बाद यह प्रदर्शन खत्म हुआ। इसके अलावा शाहीन बाग में एनआरसी को लेकर जो प्रदर्शन हुआ उसकी देशभर में चर्चा हुई। इसमें भी गृह मंत्रालय को सवालों के घेरे में ला खड़ा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस मामले में एक कमेटी भी बनाई गई। हालांकि समय-समय पर भारत सरकार और गृह मंत्रालय ने इन मुद्दों पर अलग-अलग मंचों पर सफाई दी और अपना पक्ष रखा लेकिन आने वाले दिनों में इन्हीं को आधार बनाकर विपक्ष एक बार फिर मोदी सरकार पर हमला करने की कोशिश करेगा और उसका जवाब तैयार करना और इससे निपटना गृह मंत्रालय और भारत सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी। अमित शाह की असली परीक्षा तब होगी। अब देखना यह है कि शाह इस परीक्षा में किस रणनीति के तहत काम करते हैं।

- इन्द्र कुमार

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