चीन का विकल्प बनें
02-Jul-2020 12:00 AM 707

 

भा रतीय सेना के जवानों पर चीन के निर्दयतापूर्ण, कायरतापूर्ण और पूर्वनियोजित हमले से हमारे 20 बहादुर जवान लड़ते हुए शहीद हो गए और इसे भारत कभी भी भुला नहीं सकता। अब समय आ गया है कि हमारे महान देश का हरेक नागरिक हमारी सेना के साथ खड़ा हो और सरकार यह सुनिश्चित करे कि विश्व हमारी एकजुटता का संकल्प देखे। चीन का इतिहास विश्वासघात से भरा है। यह हमेशा अन्य देशों की भूमि पर कब्जा करना चाहता है और किसी न किसी बहाने से इसे हथिया लेता है। हालांकि इसने पिछले 30 सालों में अर्थव्यवस्था में वृद्धि की है, लेकिन राष्ट्र के रूप में इसका दर्जा घटा है और अब राष्ट्रों की वैश्विक समिति के एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। दुख की बात है कि चीन जैसी अर्थव्यवस्था और आकार वाले देश ने अपने लगभग हर पड़ोसी पर धौंस ही जमाई है और स्थापित मानकों की जानबूझ कर अवहेलना की है।

भारत के संदर्भ में चीन ने हमारी सीमा के संबंध में लंबित मुद्दों के समाधान के लिए भारत द्वारा उठाए गए सतत् और परिपक्व कदमों को मानने से इंकार कर दिया है। इसने बहुत से क्षेत्रों की विवादित सीमा के नक्शे का आदान-प्रदान भी नहीं किया है और इनका उपयोग भारतीय सीमा के भीतर घुसपैठ करने के लिए किया है। इसने भारत के खिलाफ परोक्ष रूप से आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान की सहायता की है, उसे हथियार तथा वित्तीय मदद दी। चीनी हथियारों का इस्तेमाल नेपाल के माध्यम से वामपंथी चरमपंथियों द्वारा भी किया गया है और इसने पशुपति से लेकर तिरुपति तक लाल गलियारा खड़ा कर दिया है। इस गलियारे में आने वाले खनिज प्रधान क्षेत्रों को दशकों से बाधित किया गया है, जिसके कारण भारत के प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है और बेरोजगारी अधिक हो रही है।

ऐसा वर्तमान महामारी में साफ दिख रहा है। अधिकतर प्रवासी श्रमिक इसी गलियारे में रहते हैं और यहां साफ देखा जा सकता है कि इस अशांति से क्षेत्र में बेरोजगारी अधिक बढ़ी है और आर्थिक क्षति हुई है। संक्षेप में चीन ने दोहरा खेल खेला है। एक ओर 1990 के दशक की शुरुआत में भारत द्वारा अपने व्यापार और अपनी अर्थव्यवस्था खोलने के साथ ही इसने भारतीय बाजार और उपभोक्ताओं में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है, दूसरी ओर यह प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उकसावे के माध्यम से हमारे देश को स्थिर करने का प्रयास करता रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के साथ संबंधों पर बहुत अधिक समय दिया है। उन्होंने चीन का कई बार दौरा भी किया और चीन के साथ मैत्रीपूर्ण और अच्छे संबंध स्थापित करने की लगातार मंशा दिखाई है। भारत के लोगों में चीन के लोगों के लिए कोई द्वेषपूर्ण भावना नहीं है। दोनों राष्ट्रों का सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों तथा पारस्परिक जुड़ाव का एक लंबा इतिहास रहा है। भारतीय लोग चीन के साथ अच्छे आर्थिक और कूटनीतिक संबंध चाहते हैं। लेकिन यह देखा जा सकता है कि चीन की सरकार और उसके सैन्य-औद्योगिक पारिस्थितिकीय तंत्र भारत के साथ अच्छे संबंध नहीं चाहते हैं।

चीन की रणनीति और मंशा को देखते हुए अब समय आ गया है कि भारत अपने हितों को सुरक्षित रखने का काम करे। इस बारे में कई उपाय और विकल्प प्रक्रियाधीन हैं, फिर भी विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मदों के आयात सहित चीनी आयात पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिए जनता का आव्हान का समर्थन भी किया गया, जिसमें भारत ने पिछले वर्ष लगभग 400 अरब (बिलियन) डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात किया था। इनमें से अधिकतर वस्तुओं का निर्माण मूलत: चीन में हुआ था। चीनी कंपनियों ने भारतीय बाजार में मोबाइल फोन और अन्य वस्तुओं का अग्रणी खिलाड़ी (विक्रेता) बनते हुए दूसरों को पीछे छोड़ दिया है। इस लिहाज से देखें तो 'आत्मनिर्भर भारत’ अभियान या आंदोलन बहुत महत्वपूर्ण है। जब तक हम मजबूत विनिर्माण क्षमता का विकास नहीं करते, सेवाओं के साथ वस्तुओं का अधिकतर निर्यात नहीं करते, तब तक हम अपनी जनता की कल्याणकारी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे। भारत को ऐसे ही आयातित वस्तुओं की बड़ी मात्रा में स्थानीय स्तर पर निर्माण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। भारत में घटकों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए घटकों पर सीमा शुल्क क्रमश: आधार वर्ष से 10 प्रतिशत से बढ़ाकर चौथे वर्ष तक 40 फीसदी तक करना चाहिए। यह भारत में निर्माण घटक को बढ़ावा देगा।

भारत सरकार को संप्रभु रेटिंग की जरूरत

दरअसल, भारत सरकार को एक संप्रभु रेटिंग की जरूरत है, जिसे ब्याज दरों और ऋणों को बनाए रखने या घटाने के लिए वरीयता दी जाती है। इससे सरकार और उद्योगों से ज्यादा उधार मिलता है। रेटिंग एजेंसियों का काम निवेशकों को विभिन्न प्रकार के ऋणों के जोखिम पर विश्वसनीय सूचना देना है, लेकिन ये रेटिंग एजेंसियां भारत में वित्तीय कठिनाई बढ़ा रही हैं। 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिका ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के पहले संशोधन अधिकार को समाप्त कर दिया था। अगर भारत इसी तरह की नीति बना सके और चीन तथा रूस की तरह स्थानीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को बढ़ावा दे सके, तो इससे भारत को चीन से वित्तीय रूप से प्रतिस्पर्धा करने में सहायता मिलेगी। हमारी सरकार 2017 में एक नीति लेकर आई थी, जिसने केंद्र या राज्य सरकार द्वारा पूरी तरह आंशिक रूप से वित्तपोषित किसी परियोजना के लिए सार्वजनिक क्रय के लिए मदों की रणनीतिक सूची विनिर्दिष्ट की।

- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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