मप्र में शिवराज सिंह चौहान के सत्ता संभालने से अब तक हुए उपचुनावों का विश्लेषण करें तो कांग्रेस के लिए मुश्किलों का अंदाजा सहज लगता है। वर्ष 2004 से 19 तक हुए 30 उपचुनावों में 19 भाजपा जीती है, यानी 63.33 प्रतिशत। भाजपा ने अपनी 13 सीटें बचाई, तो कांग्रेस की 6 सीटें छीन ली। हालांकि उसे 6 सीटें गंवानी भी पड़ीं। जबकि कांग्रेस 10 सीटें जीत सकी यानी 33.33 प्रतिशत। वह 4 सीटें छीनने में कामयाब रही। ऐसे में कांग्रेस को अपने खाते की सीटें बचाने के लिए भाजपा से कड़ी चुनौती मिलना तय है।
19जून को मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होने हैं। उसके बाद तमाम राजनीतिक पार्टियां विधानसभा उपचुनाव को लेकर पूरी तरह से जोर-आजमाइश में जुट जाएंगी। राज्य के लिए यह उपचुनाव कोई छोटा-मोटा उपचुनाव नहीं है। बल्कि, इसमें राज्य की सत्ता फिर से उलट-पुलट करने का माद्दा है। लेकिन, कांग्रेस यह चुनाव दो मोर्चों पर लड़ रही है। एक तो वह हर हाल में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर फिर से प्रदेश की सत्ता में वापसी चाह रही है; और दूसरी ओर उसकी कोशिश पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए और कभी कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली के बेहद करीबी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से सियासी हिसाब भी चुकता करना है।
मध्य प्रदेश में राज्यसभा चुनावों के बाद विधानसभा की 24 सीटों के लिए उपचुनाव भी होने हैं। यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी और शिवराज सिंह चौहान के लिए सत्ता बचाने का चुनाव होगा तो कांग्रेस और कमलनाथ के लिए मुश्किल से हाथ आई सत्ता गंवाने का बदला लेने का। इस तरह से दोनों दलों की राजनीति इस उपचुनाव में दांव पर लगी हुई है, क्योंकि यह प्रदेश के लिए पूरी तरह से मिनी असेंबली इलेक्शन की तरह ही होने वाला है। मार्च में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भाजपा की सरकार इसलिए बन पाई, क्योंकि कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 22 बागियों ने अपनी विधायकी छोड़ दी। यानि, कमलनाथ सरकार नहीं गिरती अगर सिंधिया ने कांग्रेस से अपना रास्ता नहीं नाप लिया होता। जाहिर है कि कांग्रेस और कमलनाथ के मन में जो खुन्नस सिंधिया के लिए होगी, मुख्यमंत्री और भाजपा के लिए शायद उससे कम ही होगी।
सबसे बड़ी बात ये है कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, उनमें से 22 सीटें सिंधिया समर्थकों की ही हैं और माना जा रहा है कि वही सारे लोग इस बार भी हाथ में कमल थामकर भाजपा प्रत्याशियों के रूप में कांग्रेस उम्मीदवारों के सामने चुनावी मैदान में खड़े होंगे। यानि यह सीधी चुनौती कमलनाथ के लिए कांग्रेस की सारी सीटें बचाए रखने की है, तो सिंधिया को इस बार हवा का रुख भगवा की ओर करना है। यही वजह है कि कांग्रेस के नेता अब अपने पूर्व श्रीमंत को ही सीधे निशाने पर लेने में लगे हैं। मसलन, ग्वालियर-चंबल इलाके के कांग्रेस के मीडिया इंचार्ज केके मिश्रा ने सिंधिया पर ट्विटर के जरिए यह कहकर हमला किया कि, 'क्या मजाक बनाया हुआ है, पिछले दिनों घोषित मप्र भाजपा की चुनाव संचालन समिति की सूची में छठवें स्थान पर? 11 मार्च को बतौर राज्यसभा प्रत्याशी की घोषणा में भी नाम के आगे 'श्रीमंत’ शब्द गायब, जबकि महाराष्ट्र के एक प्रत्याशी के नाम के आगे श्रीमंत उदयना राजे भोंसले लिखा हुआ है! मजाक?’
प्रदेश के राजनीतिक पंडितों की मानें तो उपचुनाव को सिंधिया बनाम कमलनाथ बनाने के लिए कांग्रेस की ओर से सारे घोड़े खोल दिए गए हैं। इसकी वजह ये है कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से 22 सिंधिया समर्थकों की तो हैं ही, उनमें से 16 ग्वालियर-चंबल संभाग में पड़ती हैं, जिसे सिंधिया परिवार का गढ़ माना जाता रहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि ग्वालियर-चंबल के लोगों ने विद्रोह को तो स्वीकार कर लिया है। लेकिन, इस इलाके की एक खासियत ये है कि यहां धोखेबाजी को सबक सिखाया जाता है। यही कारण है कि कांग्रेस सिंधिया और उनके समर्थकों को धोखेबाज साबित करने की कोशिशों में जुटी है और यही वजह है कि इस चुनावी जंग को सिंधिया बनाम कमलनाथ करने का प्रयास है।
कांग्रेस ने खोला है सिंधिया के खिलाफ मोर्चा
दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के नेता तो शुरू से ज्योतिरादित्य सिंधिया पर धोखा देने और जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी होने का आरोप लगा रहे हैं। यही नहीं, इसके लिए कांग्रेस लोगों के पास मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस बयान का भी खूब जिक्र कर रही है, जिसमें उन्होंने पूर्व कांग्रेसी नेता को 'विभीषण’ की संज्ञा दी थी। गौरतलब है कि महाकाव्य रामयाण में 'विभीषण’ ने अधर्म में अपने भाई रावण का साथ न देकर धर्म के लिए भगवान राम का साथ देना स्वीकार किया था। अलबत्ता, समाज में 'विभीषण’ के नाम की चर्चा अक्सर अपनों के साथ धोखा करने वालों के रूप में की जाती है।
- अरविंद नारद