मप्र में 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में राजनीति के सभी रंग दिखेंगे, इसका संकेत अभी से मिलने लगा है। हर बार से अलग हटते हुए इस बार मप्र में राजनीति का मिजाज बदला हुआ है। असंतोष, बगावत और भितरघात का खतरा भाजपा और कांग्रेस के ऊपर मंडराने लगा है। इसलिए अभी से साम (समझाना), दाम (आर्थिक प्रलोभन देना), दंड (बल प्रयोग) और भेद (कुटिलता पूर्वक शत्रु की शक्ति को कम करना) का सहारा लिया जा रहा है। उधर, बसपा ने सर्वे शुरू कराकर भाजपा और कांग्रेस को उलझा दिया है।
मप्र में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव कब होंगे, यह तो तय नहीं है लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों में अंदरूनी घमासान चरम पर आ गया है। दलबदल के कारण खाली हुई 22 सीटों पर मामला पेचीदा हो गया है। कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में आए विधायकों को टिकट देना पार्टी की मजबूरी है। वहीं, इस क्षेत्र से अब तक भाजपा का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की मुखालफत ने संगठन को उलझा दिया है। भावी प्रत्याशियों को लेकर मुखालफत दोनों तरफ है। ऐसे में दोनों पार्टियों के रणनीतिकारों को रोजाना रणनीति बदलनी पड़ रही है।
भाजपा और कांग्रेस ने 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए प्रभारियों को तैनात कर दिया है। ये प्रभारी अपने प्रभार वाले क्षेत्रों में सक्रिय हो गए हैं, लेकिन उनके सामने असंतोष, बगावत, भितरघात की जो तस्वीर आ रही है उससे उन पर उपचुनाव की तैयारी भारी पड़ रही है। भाजपा की बात करें तो आगर विधानसभा सीट के प्रभारी जगदीश अग्रवाल और जौरा प्रभारी दुर्गालाल विजय के सामने तो कम चुनौतियां हैं, लेकिन अन्य 22 सीटों के प्रभारियों के लिए कठिन अग्निपरीक्षा है। क्योंकि ये 22 सीटें उन सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों की हैं, जो 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लड़े थे। इन पूर्व विधायकों के खिलाफ उनके क्षेत्र में माहौल है। कांग्रेस के कार्यकर्ता तो नाखुश हैं ही भाजपा के नेता भी खुश नहीं है। भाजपा के लिए उपचुनाव का क्या महत्व है यह इसी से समझा जा सकता है कि पार्टी ने 8 पूर्व मंत्रियों को भी जिम्मेदारी सौंपी है। सागर जिले की सुरखी विधानसभा में गोविंद राजपूत को जिताने का जिम्मा उसी जिले से पूर्व मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह को दिया गया है। सांची में मंत्री पद के लिए प्रतिक्षारत प्रभुराम चौधरी की सीट का प्रभारी रायसेन जिले से पूर्व मंत्री रामपाल सिंह को दिया गया है। अनूपपुर में बिसाहूलाल सिंह को जिताने के लिए दो पूर्व मंत्रियों राजेंद्र शुक्ला और संजय पाठक को मैदान में उतारा गया है। वहीं, सुवासरा से हरदीप डंग की सीट पर प्रभारी के रूप में मंत्री पद के दावेदार जगदीश देवड़ा को जिम्मा सौंप दिया है। इन सीटों पर पिछला चुनाव हारने वाले किसी भी भाजपा नेता को सीट का प्रभारी नहीं बनाया गया है। ग्वालियर शहर की दोनों सीटों के लिए दिग्गज पूर्व मंत्रियों जयंत मलैया और गौरीशंकर बिसेन को भेजा जा रहा है।
कांग्रेस ने भी मैदानी जमावट शुरू कर दी है। पार्टी ने कई सीटों पर नेताओं को प्रभार देकर उन्हें सक्रिय कर दिया है। एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए की नीति का अनुशरण करते हुए कांग्रेस ने उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को घेरने की रणनीति बनाई है। इसके लिए पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। इसके पीछे कांग्रेस की सोच है कि अगर सिंधिया की घेराबंदी होगी है तो ग्वालियर संभाग की 16 सीटों का आसानी से जीता जा सकता है। इसके लिए पार्टी ने कभी सिंधिया के करीबी रहे प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत, ग्वालियर में सिंधिया के घुर विरोधी डॉ. गोविंद सिंह, केपी सिंह और पूर्व मंत्री लाखन यादव समेत अशोक सिंह को रणनीति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी के निशाने पर पाला बदलने वाले दलबदलू विधायकों से ज्यादा ज्योतिरादित्य सिंधिया होंगे।
गौरतलब है कि मप्र में 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में ग्वालियर-चंबल की 16 विधानसभा सीटें भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई हैं। ये 16 सीटें तय करेंगी कि भाजपा और कांग्रेस का सियासी भविष्य क्या होगा। ग्वालियर-चंबल इलाके में जीत दर्ज करने वाले को सत्ता की चाभी मिलना तय माना जाता है। इस कारण यहां कांग्रेस से भाजपा में गए सिंधिया की साख दांव पर लगी है। पिछले विधानसभा चुनाव में सिंधिया के दम पर कांग्रेस ने ये इलाका जीता था, लेकिन इस बार सिंधिया विरोधी पार्टी में जा खड़े हुए हैं। इसलिए कांग्रेस के लिए ये मुश्किल की घड़ी है। कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत का कहना है ग्वालियर चंबल इलाके में सिंधिया के मुकाबले कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ेगी। भाजपा के नरोत्तम मिश्रा का मानना है कांग्रेस के पास ग्वालियर चंबल इलाके में उम्मीदवारों का टोटा है। ऐसे में टीम कैसे तैयार होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पहली बार कांग्रेस पार्टी अपने बूते पर ग्वालियर चंबल इलाके में चुनाव मैदान में उतरेगी और वो भी सिंधिया के खिलाफ लड़ेगी। लेकिन देखना यह होगा कि कमलनाथ की रणनीति पर टीम कांग्रेस सिंधिया के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन पाती है। सिंधिया को उनके इलाके में मात देकर सत्ता में वापसी कर पाती है।
भाजपा और संघ के सर्वे में संकेत मिले हैं कि सिंधिया समर्थक 22 पूर्व विधायकों में से करीब 10 के खिलाफ उनके क्षेत्र में जबर्दस्त माहौल है। ये वे विधायक हैं जो पहली बार कांग्रेस से जीते। लेकिन, इस्तीफा देने के बाद भाजपा में शामिल हो गए। जीतने के महज 15 माह के भीतर ही दल बदलने से उनके सामने कई चुनौतियां हैं। वैसे इन क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए राह आसान नहीं होगी। भाजपा ने कमोबेश अपनी गाइडलाइन साफ कर दी है कि इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल होने वाले कांग्रेस के बागी विधायकों पर ही वह दांव लगाएगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में अम्बाह, अशोकनगर, करैरा, ग्वालियर पूर्व, दिमनी, पोहरी, भांडेर, मुरैना, मेहगांव और हाटपिपल्या में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार जीते विधायक अब भाजपा में हैं। इन दस क्षेत्रों में ज्यादातर सीटों पर भाजपा दूसरे नंबर पर रही है। कांग्रेस के बागियों के आने से 2018 के भाजपा उम्मीदवार अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह को हराकर मुरैना में रघुराज सिंह कंषाना पहली बार कांग्रेस से जीते थे। गुर्जर समाज के बड़े नेता रुस्तम सिंह ने अभी अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है, लेकिन उनके समर्थक रघुराज सिंह कंषाना के साथ दिल से जुड़ नहीं पा रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की मुश्किल यह है कि 2018 के उनके मजबूत स्तंभ अब भाजपा में चले गए हैं। ऐसे में उनके सामने उम्मीदवारों का टोटा है और अब उनकी निगाह भाजपा के ही असंतुष्टों पर टिक गई है। अगर कांग्रेस ने भाजपा के पुराने उम्मीदवारों पर दांव लगा दिया तो लड़ाई रोमांचक हो जाएगी। फिर चेहरे वही हो सकते हैं, लेकिन सिंबल बदला रहेगा।
बानगी के तौर पर अम्बाह सीट पर 2018 में कांग्रेस से लड़ रहे कमलेश जाटव निर्दलीय नेहा किन्नर से करीब साढ़े सात हजार मतों से जीते। इसी तरह पोहरी में पहली बार सुरेश धाकड़ भी बसपा के कैलाश कुशवाहा से 7918 मतों से कड़ी मशक्कत के बाद जीत सके थे। इन क्षेत्रों में भाजपा तीसरे नंबर पर थी। अब अम्बाह और पोहरी में भाजपा के लिए लड़ाई आसान नहीं रहेगी, लेकिन कांग्रेस के लिए मुश्किल और भी बड़ी होगी। भाजपा को उपचुनाव में विजय हासिल करने में सर्वाधिक भरोसा पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर है। सिंधिया के प्रभाव में ही चंबल-ग्वालियर की अधिकांश सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। अब वह भाजपा में हैं और उनके लिए यह प्रतिष्ठापरक भी है। उधर, कांग्रेस भी भाजपा को शिकस्त देने के लिए सारे समीकरण आजमा रही है।
भाजपा ने संघ तो कांग्रेस ने 3 सर्वे एजेंसियों को मैदान में उतारा
उपचुनाव को लेकर जीत की रणनीति बनाने में भाजपा और कांग्रेस जुट गई हैं। सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा ने विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति का आंकलन कराने के लिए संघ के पूर्णकालिकों को पहले ही तैनात कर दिया है। ये पूर्णकालिक घर-घर जाकर लोगों का मन जान रहे हैं, वहीं भाजपा की जीत के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। वहीं सत्ता में दोबारा आने के लिए कांग्रेस ने 2018 चुनाव के फॉर्मूले को लागू करने की तैयारी कर ली है। इसके लिए पीसीसी चीफ कमलनाथ निजी एजेंसियों के जरिए 15 जिलों की 24 विधानसभा सीटों पर सर्वे करा रहे हैं। तीन अलग-अलग एजेंसियां सर्वे के काम में जुटी हैं।
टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस में भी बहुत टेंशन
भाजपा की तरह कांग्रेस में भी टिकट बंटवारे को लेकर टेंशन बहुत है। सिंधिया खेमे के लोगों को मात देने के लिए कांग्रेस अपने पुराने बागियों पर चांस लेने की तैयारी में हैं। लेकिन बागियों की एंट्री को लेकर कांग्रेस में ही एकमत नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने ही चर्चा के दौरान कई नेताओं ने इस्तीफे की धमकी तक दे दी। उसके बाद कमलनाथ ने कहा कि किसी भी उम्मीदवार को टिकट सर्वे के आधार पर ही मिलेगा। दरअसल, उपचुनाव वाले सभी सीटों की पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ समीक्षा कर रहे हैं। साथ ही जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में लगे हैं। प्रेमचंद गुड्डू की तरह ही भिंड के मेहगांव सीट से राकेश सिंह चतुर्वेदी को टिकट देने की चर्चा है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह इनका विरोध कर रहे हैं। उधर, कांग्रेस ग्वालियर-चंबल अंचल की 16 सीटों को जीतने के लिए वहां के करीब 20 फीसदी दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में करना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने बसपा में सेंधमारी शुरू कर दी है। गत दिनों बसपा नेता प्रागी लाल जाटव सहित दो दर्जन से अधिक नेताओं ने मायावती का दामन छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। इसके अलावा डबरा नगरपालिका की पूर्व अध्यक्ष सत्यप्रकाशी बसपा कार्यकर्ताओं के साथ कांग्रेस में शामिल हो गईं। ये दोनों नेता ग्वालियर-चंबल इलाके में बसपा का बड़ा चेहरा माने जाते थे। इससे पहले बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार, पूर्व विधायक सत्यप्रकाश और पूर्व सांसद देवराज सिंह पटेल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
- कुमार राजेन्द्र