लोकलुभावन योजनाओं को संचालित करने में मप्र भी पीछे नहीं है। किसान, अनुसूचित जाति एवं जनजाति सहित अन्य वर्गों को साधने के लिए बजट का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा अनुदान में जा रहा है। 22 हजार करोड़ रुपए तो केवल बिजली अनुदान पर खर्च किए जा रहे हैं। सरकार ने हाल ही में 6 हजार करोड़ रुपए के बिजली बिल माफ किए हैं। डिफाल्टर किसानों को लगभग 85 करोड़ रुपए ब्याज माफ करने की घोषणा की जा चुकी है। 5 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं को एक किलोग्राम की दर से गेहूं और चावल देने के लिए 400 करोड़ रुपए सालाना व्यय किए जा रहे हैं। लाडली लक्ष्मी, तीर्थदर्शन, कन्यादान, सहरिया, भारिया और बैगा जनजातीय परिवारों को विशेष पोषण भत्ता सहित अन्य योजनाएं संचालित हैं। सरकार सोशल इंजीनियरिंग के तहत सभी वर्गों को साधने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही हैं। प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री राघवजी का कहना है कि लोकलुभावन योजनाएं वोट जरूर खींचती हैं पर एक संतुलन होना चाहिए। वित्तीय अनुशासन बहुत जरूरी है। आय और व्यय में अंतर बढ़ता जाएगा तो आगे चलकर इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। सभी राज्य सरकारें इस मामले में जरूरत से ज्यादा आगे जा रही हैं। इससे बचना चाहिए।
गौरतलब है कि प्रदेश में 22 हजार करोड़ रुपए तो केवल बिजली अनुदान पर खर्च किए जा रहे हैं। सरकार ने हाल ही में 6 हजार करोड़ रुपए के बिजली बिल माफ किए हैं। डिफाल्टर किसानों को लगभग 85 करोड़ रुपए ब्याज माफ करने की घोषणा की जा चुकी है। 5 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ताओं को एक किलोग्राम की दर से गेहूं और चावल देने के लिए 400 करोड़ रुपए सालाना व्यय किए जा रहे हैं। लाडली लक्ष्मी, तीर्थदर्शन, कन्यादान, सहरिया, भारिया और बैगा जनजातीय परिवारों को विशेष पोषण भत्ता सहित अन्य योजनाएं संचालित हैं।
सरकार सोशल इंजीनियरिंग के तहत सभी वर्गों को साधने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही हैं। सबसे बड़ा खर्च बिजली पर दिए जाने वाले अनुदान है। 150 यूनिट तक बिजली का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं से मात्र एक रुपए यूनिट की दर से बिल लिया जा रहा है, जबकि इसकी लागत कहीं अधिक होती है। 22 हजार करोड़ रुपए सालाना सरकार बिजली कंपनियों को अनुदान की राशि देती है। कोरोनाकाल में उपभोक्ता बिल जमा नहीं कर पाए तो समाधान योजना लागू करके सरचार्ज पूरा माफ कर दिया। इसके बाद भी वसूली नहीं हुई तो सरकार ने 6 हजार करोड़ रुपए का बकाया बिल ही माफ कर दिया। किसानों को साधने के लिए ब्याज रहित ऋण दिया जा रहा है। इसकी प्रतिपूर्ति सहकारी बैंकों को ब्याज अनुदान के रूप में करनी होती है। इस पर प्रतिवर्ष 800 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। हालांकि, इस वर्ष आधार दर में कमी करने से यह राशि 600 करोड़ रुपए के आसपास रहने की संभावना है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल) योजना लागू की गई है। इसके लिए 600 करोड़ रुपए का प्रविधान रखा है। इसी तरह शिवराज सरकार की महत्वाकांक्षी लाडली लक्ष्मी योजना में 922 करोड़ रुपए व्यय किए जाएंगे। अब सरकार योजना का दूसरा चरण लागू करने जा रही है।
प्रदेश में कन्यादान निकाह योजना के तहत प्रत्येक विवाह के लिए राशि 51 से बढ़ाकर 55 हजार रुपए की गई। सरकार 540 करोड़ रुपए खर्च करेगी। लाडली लक्ष्मी योजना पर इस वर्ष 1400 करोड़ रुपए का प्रावधान है। वृद्धावस्था और नि:शक्तजन पेंशन योजना में सामाजिक सुरक्षा के लिए इन पर कुल 12,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा रहे हैं। लघु उद्योगों को सब्सिडी में इस साल 3390 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जानी है। इसमें 2,890 करोड़ रुपए और निर्यात प्रोत्साहन योजना में 500 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। निर्यात प्रोत्साहन योजना में बड़े उद्योगों को निर्यात प्रोत्साहन के लिए 610 करोड़ रुपए की रियायत दी जानी है। मुख्यमंत्री कर्ज समाधान योजना में 750 करोड़ रुपए और ब्याज अनुदान 600 करोड़ रुपए यानी कुल 1,350 करोड़ कर्ज का समाधान करना है। मुख्यमंत्री सोलरपंप अनुदान योजना में 370 करोड़ रुपए रखे गए हैं। इस तरह इन योजनाओं पर कुल खर्च 40,660 करोड़ रुपए खर्च होंगे। सहरिया, भारिया और बैगा जनजाति की महिलाओं को एक हजार रुपए प्रतिमाह विशेष पोषण भत्ता, मुख्यमंत्री कन्या विवाह में प्रति हितग्राही 55 हजार रुपए देने का प्रविधान रखा है। इसी तरह कई अन्य योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं। इन सभी योजनाओं के खर्च को देखें तो यह कुल बजट का 2 लाख 79 हजार 237 करोड़ रुपए का लगभग 25 प्रतिशत होता है।
मुफ्त की योजनाएं ला सकती हैं आर्थिक तबाही
भारतीय स्टेट बैंक की एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि मुफ्त की योजनाएं राज्यों में आर्थिक तबाही ला सकती हैं। इस रिपोर्ट में मप्र के आर्थिक आंकड़ों का मूल्यांकन नहीं किया गया है, क्योंकि बैंक के पास यहां के आंकड़े नहीं थे। हालांकि जिन मापदंडों के आधार पर राज्यों को वित्तीय तबाही आने की चेतावनी दी गई है, उन्हीं मापदंडों पर मप्र के आर्थिक हालात भी चिंताजनक हैं। राज्य सरकार को मिलने वाले कर राजस्व का बड़ा हिस्सा लोकलुभावनी योजनाओं पर खर्च हो रहा है। इसके चलते राज्य का वित्तीय घाटा 4.56 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। लोकलुभावनी योजनाओं पर सरकार 40,660 करोड़ रुपए खर्च कर रही है, जो कमाई का 16.31 प्रतिशत हिस्सा है। इन योजनाओं में धन जुटाने के लिए सरकार के पास बाजार से उधारी उठाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होगा। जानकार कहते हैं कि सरकार को बाजार से ज्यादा कर्ज उठाने के बजाय कर्ज का बोझ कम करना चाहिए। एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सोम्यकांति घोष के अनुसार लोकलुभावनी योजनाएं राज्यों की वित्तीय सेहत बिगाड़ रहीं हैं। ये आर्थिक तबाही ला सकती हैं। अगर सरकार ऐसी योजनाओं में सीमा से अधिक धन खर्च कर रही है और उसका वित्तीय घाटा 4.56 प्रतिशत है तो यह खतरे की घंटी है। हालांकि वित्त विभाग के एसीएस मनोज गोविल कहते हैं कि मप्र की वित्तीय सेहत बेहतर है। मौद्रिक घाटा केंद्र सरकार की गाइडलाइन पर ही है। पिछले सालों में हमने पूंजीगत व्यय और निवेश बढ़ाया था। इसलिए हमें बाजार से 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज उठाने की अनुमति मिली थी। केंद्र से स्पेशल इंसेंटिव भी मिले थे।
- जय सिंह