19-May-2020 12:00 AM
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छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की हालत नाजुक बताई जा रही है और फिलहाल वह कोमा में हैं। गत दिनों उन्हें हार्टअटैक आया था, जिसके बाद वो कोमा में चले गए। अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री तो रहे ही हैं, आज की तारीख में भी प्रदेश के सबसे कद्दावर नेताओं में उनकी गिनती होती है। वह हमेशा से राजनीति में नहीं थे। उनका कैरियर इंजीनियरिंग से शुरू हुआ और फिर वो बड़े नौकरशाह बन गए। फिर अचानक एक दिन राजनीति में उनका सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया। उनके सियासी और नौकरशाही कैरियर से कई विवाद भी जुड़े हुए हैं और ऐसे कई मौके आए हैं, जब वह मौत के मुंह से भी वापस आ चुके हैं।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी राजनीति के धुरंधरों में गिने जाते रहे हैं। अजीत जोगी को सपनों का सौदागर भी कहा जाता रहा है। अजीत जोगी ने खुद अपने आपको सपनों का सौदागार बताया था। साल 2000 में जब अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने कहा था- 'हां, मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं।’ लेकिन 2003 में हुए विधानसभा चुनावों में अजीत जोगी को हार का सामना करना पड़ा। फिर 2008 में और 2013 में भी वो सपने नहीं बेच पाए। अजीत जोगी के राजनीतिक सफर की बात करें तो उन्होंने शुरुआती दिनों में काफी चुनौतियों का सामना किया।
अजीत जोगी 1986 से 1998 के बीच दो बार राज्यसभा के सांसद चुने गए। 1998 में वे रायगढ़ से सांसद चुने गए। 1998 से 2000 के बीच वे कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे 2000 से 2003 के बीच राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे। 2004 से 2008 के बीच वे 14वीं लोकसभा के सांसद रहे। 2008 में वे मरवाही विधानसभा सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे और 2009 के लोकसभा चुनावों में चुने जाने के बाद जोगी ने लोकसभा सदस्य छत्तीसगढ़ के महासमुंद निर्वाचन क्षेत्र के रूप में काम किया। हालांकि जोगी 2014 के लोकसभा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखने में असफल रहे और भाजपा के चंदू लाल साहू से 133 मतों से हार गए।
2014 में छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ में उपचुनाव होना था। कांग्रेस की ओर से मंतूराम पंवार प्रत्याशी थे। उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया। वापस लेने के आखिरी दिन मंतूराम ने पार्टी को बिना बताए नाम वापस ले लिया। 2015 के आखिर में एक ऑडियो टेप सामने आया जिसमें खरीद-फरोख्त की बातें थीं। आरोप लगे कि टेप में अजीत जोगी, उनके बेटे अमित जोगी और तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता की आवाज थी। ये बातचीत मंतूराम पंवार के नाम वापस लेने के बारे में थी। इस टेपकांड के सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। इसके साथ ही अजीत जोगी को भी पार्टी से निकालने की सिफारिश कर दी गई।
फिर अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और साल 2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दो मुख्य खिलाड़ी ही रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी। किसी मजबूत और जमीनी पकड़ रखने वाले क्षेत्रीय दल की कमी की वजह से प्रदेश के लोगों के पास बस ये दो ही विकल्प थे। अजीत जोगी ने जनता को वो विकल्प देने के लिए पार्टी का गठन किया। वो भी विधानसभा चुनावों से ठीक पहले।
फिर उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करते हुए खुद के बारे में कहा कि इन चुनावों में वो किंगमेकर की भूमिका निभाएंगे, यानी जिसे वो चाहेंगे उसके हाथों में छत्तीसगढ़ की सत्ता की बागडोर होगी। लेकिन उनका ये गठबंधन फ्लॉप साबित हुआ और कांग्रेस की आंधी में भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी का भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा। अजीत जोगी की पार्टी को 5 सीटे ही उनकी पार्टी की झोली में आ पाई। फिलहाल अजीत जोगी मरवाही विधानसभा से विधायक हैं।
विवादों से हमेशा जुड़ा रहा नाम
अजीत जोगी के नाम सबसे बड़ा विवाद उनके आदिवासी होने को लेकर रहा। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2018 में उनके आदिवासी होने के पक्ष में फैसला दिया। अजीत जोगी से एक विवाद उनकी बेटी की कथित खुदकुशी से भी जुड़ा है। घटना 12 मई, 2000 की है। अजीत जोगी इंदौर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के स्वागत में लगे हुए थे, उसी दौरान उनकी बेटे ने इंदौर स्थित उनके घर पर ही जान दे दी। जानकारी के मुताबिक वह जहां शादी करना चाहती थी, जोगी उसके लिए राजी नहीं थे। उसका शव उस समय इंदौर के ही कब्रिस्तान में दफनाया गया। लेकिन, अजीत जोगी ने बाद में कोशिश की थी कि शव को निकालकर अपने पैतृक गांव ले जाएं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। लेकिन, जब वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने तो एक दिन रातों-रात उन्होंने उस शव को निकालकर सरकारी विमान से बिलासपुर मंगवा लिया और फिर उसे वहां क्रिश्चियन रीति-रिवाज से दफना दिया। 2003 में अजीत जोगी पर भाजपा विधायकों को खरीदने की कोशिश के भी आरोप लगे थे, इसका एक स्टिंग ऑपरेशन भी आया था। 2004 में अजीत जोगी के साथ एक भीषण कार ऐक्सिडेंट हुआ था, जिसमें उनकी जान तो बच गई, लेकिन वे हमेशा के लिए लकवाग्रस्त होकर रह गए। हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया था कि विरोधियों के जादू-टोने की वजह से वह हादसा हुआ था।
- रायपुर से टीपी सिंह