बरगी के मोहास में बलराम हाथी (20) की शिकारियों द्वारा बिछाए गए करंट से मौत के बाद साथी हाथी राम बेकाबू हो गया है। वह काफी गुस्से में दिख रहा है। मंडला के बीजाडांडी वन परिक्षेत्र में उसने दो ग्रामीणों पर हमला किया। एक ग्रामीण के घर की बाड़ी में घुसकर नुकीले दांतों से पीठ पर हमला कर घायल कर दिया। वहीं खेत की रखवाली कर रहे दूसरे ग्रामीण को सूंड से धक्का दे दिया। गुस्साए हाथी ने उसे रौंदने का भी प्रयास किया, लेकिन उसने भाग कर जान बचाई। सीसीएफ जबलपुर एचडी मेहिले के मुताबिक खतरनाक हो चुके राम का रेस्क्यू करने के लिए कान्हा व पेंच के डायरेक्टर मंडला वन विभाग की टीम के साथ उसे ट्रेंक्युलाइज करने की कोशिश कर रहे हैं। मंडला डीएफओ कमल अरोड़ा के मुताबिक राम हाथी की लोकेशन टिकरिया रेंज में मिली है। कान्हा नेशनल पार्क के डायरेक्टर एसके सिंह और पेंच के विक्रम सिंह परिहार की अगुवाई में वन विभाग की टीम टिकरिया रेंज में पहुंच चुकी है। ट्रेंक्युलाइज कर हाथी का रेस्क्यू किया जाएगा। उसे पकड़कर कान्हा नेशनल पार्क में ले जाया जाएगा। कर्नाटक के विशेषज्ञों से भी बातचीत चल रही है। यदि जरूरत पड़ी तो उन्हें भी बुलाया जाएगा।
ग्रामीणों से मिले राम-बलराम के उपनाम वाले दोनों जंगली हाथियों ने अप्रैल 2020 में सिवनी में महुआ फूल एकत्र कर रहे घंसोर तहसील में एक ग्रामीण को मार डाला था। इसके बाद दोनों के द्वारा किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया गया था। ओडिशा से भटककर कान्हा आए 20 हाथियों के झुंड से राम-बलराम भटक कर सिवनी, मंडला, नरसिंहपुर, बालाघाट, डिंडोरी के वन क्षेत्रों में विचरण कर रहे थे। 24 नवंबर को दोनों नर्मदा के किनारे से होते हुए बरेला में प्रवेश किए थे। वहां से दोनों 25 को बरगी में, 26 को मंगेली में दिखे थे। 27 नवंबर को बलराम हाथी का शव मोहास गांव के पास कैनाल किनारे मिला था। जंगली सुअर के लिए बिछाए गए करंट की चपेट में आने से उसकी मौत की पुष्टि पीएम रिपोर्ट में हुई है। इसके बाद से राम हाथी की तलाश चल रही थी।
छत्तीसगढ़ के रास्ते आने वाले जंगली हाथी मप्र के लिए समस्या बनते जा रहे हैं। उमरिया व सीधी जिलों में 54 हाथियों ने ढाई साल से डेरा डाल रखा है। ये हाथी अपने रास्ते में आने वाले खेतों को बर्बाद कर रहे हैं, घरों को उजाड़ रहे हैं और अब तक अलग-अलग घटनाओं में आधा दर्जन लोगों को मार चुके हैं, पर राज्य सरकार के पास हाथियों को काबू में करने का कोई प्लान नहीं है। इस समस्या को लेकर राज्य सरकार को अब तक केंद्र सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली है। राज्य सरकार ने केंद्र से प्रदेश को हाथी परियोजना में शामिल करने की मांग की है।
हाथी एक दशक से मप्र आ रहे हैं, पर कुछ दिनों में लौट भी जाते थे। इस बार ऐसा नहीं हुआ। ढाई साल पहले आए 40 हाथियों के एक झुंड ने उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ क्षेत्र को अपना स्थाई ठिकाना बना लिया है। वे टाइगर रिजर्व और उसके बाहरी क्षेत्र में घूम रहे हैं। ऐसे ही आठ हाथियों का एक झुंड सीधी जिले में स्थित संजय दुबरी टाइगर रिजर्व और उसके आसपास सक्रिय हैं। दो नर हाथी तो प्रदेश के लगभग मध्य में स्थित नरसिंहपुर जिले में पहुंच गए थे। जिनमें से एक की पिछले दिनों करंट से मौत हो गई और दूसरे की बरगी क्षेत्र और उसके आसपास ड्रोन और पदचिन्ह की मदद से तलाश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि ये हाथी ओडिशा और झारखंड के हैं तथा छत्तीसगढ़ के रास्ते यहां आते हैं।
वन विभाग को जब हाथियों से बचने का उपाय नहीं सूझा तो वनकर्मियों और हाथियों के रास्ते में बसी बस्तियों के लोगों को हाथियों से बचने के लिए तैयार करने की कोशिशें शुरू हुई हैं। जिन क्षेत्रों में हाथी सक्रिय हैं, उन क्षेत्रों के वनकर्मियों और ग्रामीणों को हाथियों के साथ रहने का सबक सिखाया जा रहा है। इसके लिए पिछले साल पश्चिम बंगाल से हाथी विशेषज्ञ बुलाए गए थे। उन्होंने तीन दिन रुककर वनकर्मियों को प्रशिक्षित किया। ये वनकर्मी आसपास के ग्रामीणों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। हाथियों से संबंधित कुछ और बारीकियां जानने के लिए विशेषज्ञों को फिर बुलाने की योजना है।
जंगल और जंगल के नजदीक रहने वाले ग्रामीणों को बताया गया है कि खड़ी लालमिर्च भरकर गोबर के गोले बनाएं और पटाखे घर में रखें। हाथियों का दल जब नजदीक आ जाए तो पटाखे चलाएं और गोबर के गोलों में आग लगाकर उनकी ओर फेकें। इससे वे दूर हटेंगे। प्रदेश के वन अधिकारी हाथियों के बारे में ज्यादा नहीं जानते, पर उनके ओडिशा, झारखंड छोड़कर मप्र आने का कारण यहां की प्राकृतिक संपदा को बताते हैं। अधिकारी कहते हैं कि हाथी वैसे तो झाड़ियों में रहते हैं, पर उन्हें भी खुले घास के मैदान पसंद हैं। शायद इसीलिए प्रदेश पसंद आ गया। यहां खाने के लिए वनस्पति भी भरपूर है।
खनन के चलते कम हो रहे वन क्षेत्र से पलायन
कुछ समय पहले तक ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ के जंगल में ही हाथी दिखते थे। वहां से वे निकलकर आबादी क्षेत्र में पहुंच जाते थे। पहली बार ये हो रहा है कि उनका पलायन मप्र की ओर हुआ है। माना जा रहा है कि इन राज्यों में बढ़ते खनन से जंगलों का दायरा सिमट रहा है। इस कारण हाथी नए रहवास की खोज में पलायन करने पर विवश हुए हैं। ओडिशा से अप्रैल में 20 हाथियों का झुंड भटककर कान्हा पहुंचा था। सितंबर में इनका पलायन सिवनी से मंडला के जंगलों की ओर हुआ। दो महीने तक वे मंडला के जंगल में ही रहे। इसके बाद दो हाथी भटककर नर्मदा तीरे-तीरे जबलपुर की ओर बढ़ गए। वहीं झुंड के अन्य हाथी वापस कान्हा की ओर लौट गए। चार दिन पहले दोनों हाथियों ने बरेला क्षेत्र में प्रवेश किया था। तब से वन विभाग के 25 सदस्यों की टीम उनकी निगरानी में लगाई गई थी। गत दिनों दोनों हाथी बरगी में पहुंचे थे। वहां से दोनों ग्वारीघाट के दूसरी ओर मंगेली में देखे गए थे।
- अरविंद नारद