मप्र में नगरीय निकाय चुनाव का अखाड़ा सज गया है। राजनीतिक पार्टियों के पहलवान दंड पेलने लगे हैं। हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग ने अभी चुनाव की घोषणा नहीं की है। राज्य निर्वाचन आयोग इसी माह नगरीय निकाय चुनावों की घोषणा करना चाहता है, ताकि मौजूदा मतदाता सूचियों के आधार पर चुनाव करवाए जा सकें। लेकिन फिलहाल इसके आसार कम नजर आ रहे हैं।
भोपाल सहित प्रदेश के 16 बड़े शहरों और 300 से ज्यादा नगरीय निकायों के चुनाव होना हैं, क्योंकि पहले कोरोना संक्रमण, कर्फ्यू-लॉकडाउन, उसके बाद उपचुनावों के चलते तारीखें आगे बढ़ती रहीं। सभी नगरीय निकायों में चुनी हुई परिषदों का कार्यकाल 8-10 महीने पहले ही समाप्त हो चुका है, जिनमें इंदौर नगर निगम भी शामिल है। इसमें महापौर सहित सभी 85 पार्षदों का कार्यकाल 18 फरवरी 2020 तक ही था और उसके बाद से प्रशासक काल चल रहा है और फरवरी 2021 में पूरा एक साल हो जाएगा। उपचुनावों में भाजपा को जो शानदार सफलता मिली, उसके चलते वह नगरीय निकायों के चुनाव तुरंत ही करवाने को उत्साहित थी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यही चाहते रहे कि नगरीय निकायों के चुनाव दिसंबर अंत में घोषित कर दिए जाएं और जनवरी में चुनाव की प्रक्रिया संपन्न हो सके। लिहाजा भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस ने भी निगम चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं।
प्रदेश में वार्ड आरक्षण की प्रक्रिया पहले ही हो चुकी है और मतदाता सूची तैयार है। वहीं पिछले दिनों भोपाल में महापौर का आरक्षण भी संपन्न हो गया। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि 25 दिसंबर के बाद राज्य निर्वाचन आयोग नगरीय निकायों के चुनावों की घोषणा और उसका कार्यक्रम जारी कर देगा, जिसके चलते मौजूदा मतदाता सूची के आधार पर ही सीधे महापौर और वार्ड पार्षदों के चुनाव करवाए जा सकेंगे, लेकिन अगर अभी इस माह घोषणा नहीं होती है तो फिर 3 से 4 महीने निगम चुनाव आगे बढ़ जाएंगे, क्योंकि तब 1 जनवरी 2021 के आधार पर मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण करवाना पड़ेगा और इसमें कम से कम डेढ़ से दो माह का समय तो लग ही जाएगा, क्योंकि पुनरीक्षण के कार्यक्रम को घोषित करने, दावे-आपत्तियों को स्वीकार करने, घर-घर सर्वे करवाने और फिर मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन करवाना है। लिहाजा जानकारों का कहना है कि दिसंबर माह के अंत तक अगर चुनाव की घोषणा नहीं होती है तो फिर मार्च-अप्रैल तक चुनाव टल सकते हैं।
इधर मतदाता सूची में गड़बड़ी से लेकर उसे नए सिरे से बनाने की मांग भी कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने की है और इस संबंध में राज्य निर्वाचन आयोग को भी पत्र लिखा है। दूसरी तरफ महापौर से लेकर पार्षदों के लिए दोनों ही दलों के नेता-कार्यकर्ता तैयार हैं। सभी बढ़-चढ़कर अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं। कई नेता तो सोशल मीडिया के माध्यम से भी वार्डों में खुद को पार्षद पद का योग्य उम्मीदवार बताकर प्रचार-प्रसार भी शुरू कर दिया। वहीं अपने नेताओं-आकाओं के चक्कर भी काट रहे हैं। अब देखना यह है कि चुनाव की घोषणा सरकार कब करवाती है।
राजधानी में नगर निगम की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित होने के साथ ही सियासी हलचल बढ़ने लगी है। भाजपा में इस चर्चा ने जोर पकड़ा है कि महापौर और पार्षदों के टिकट देते समय दिल्ली का फॉर्मूला अपनाया जाए। वहां सभी को बदल दिया गया था। भाजपा नेतृत्व के सामने मुश्किल होगी कि वह युवा और नए चेहरों को कैसे सामने लाए, क्योंकि निकाय चुनाव में अभी तक विधायकों के हिसाब से ही टिकट बंटे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस में परिस्थितियां दूसरी हैं। यहां कुछ पुराने चेहरों के साथ कांग्रेस नए चेहरों को लाएगी, क्योंकि दिग्विजय सिंह खेमा राजधानी में सियासी जमीन मजबूत कर सकता है। फिलहाल भाजपा से पूर्व महापौर व विधायक कृष्णा गौर तो कांग्रेस से पूर्व महापौर विभा पटेल का नाम आगे है। कृष्णा गौर भोपाल की गोविंदपुरा सीट से विधायक हैं। यह सीट बरसों से स्व. बाबूलाल गौर के पास रही। बाद में बहू कृष्णा विधायक चुनी गईं।
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान 2018 में इस सीट से कई दावेदार सामने आ गए थे, जिसमें स्थानीय से लेकर प्रदेश के दिग्गज नेता भी थे। टिकट अंतत: कृष्णा को मिला। यही सियासी खेल महापौर के चुनाव में खेला जा सकता है। कृष्णा गौर को महापौर का टिकट दिया जाता है तो 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा गोविंदपुरा सीट में नया चेहरा लाएगी। हालांकि इस संभावना से अलग भी विचार होगा, क्योंकि केंद्रीय भाजपा ने साफ कर दिया है कि नए व युवा कार्यकर्ता को तवज्जो मिले। ऐसे में दिल्ली निकाय चुनाव के उस फॉर्मूले पर भाजपा जा सकती है, जहां सभी चेहरे बदल दिए गए थे।
नेताओं की पत्नियां भी दावेदार
भोपाल में 2009 में सामान्य महिला सीट होने के बाद भी भाजपा ने ओबीसी चेहरा कृष्णा गौर को मैदान में उतारा। वो जीत गईं। इस बार ओबीसी महिला सीट है। लिहाजा खुद कृष्णा गौर ने दावेदारी रखने की तैयारी की है। जबकि भाजपा में नए चेहरे को आगे लाने की आवाज तेज होने के भी संकेत हैं। ऐसा होता है तो मालती राय, श्यामा पाटीदार, सीमा यादव, चंद्रमुखी यादव, कमलेश यादव, वंदना जाचक, तुलसा वर्मा, उमपा राय के साथ कभी महापौर पद के दावेदार रहे कुछ नेताओं की पत्नियां भी सामने आकर दावेदारी कर सकती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खेमे की चलती है तो पूर्व महापौर विभा पटेल बड़ा चेहरा होंगी। प्रत्यक्ष प्रणाली लागू होने के बाद पहली महापौर वही चुनी गई थीं। यदि विभा के अलावा नामों की तलाश हुई तो संतोष कंसाना या शबिस्ता जकी दो नाम चर्चा में हो सकते हैं। हालांकि कहा जा रहा है कि भोपाल में कांग्रेस के तीन विधायकों आरिफ अकील, पीसी शर्मा और आरिफ मसूद की राय भी अहम होगी, क्योंकि चुनाव में इनकी सक्रियता मायने रखेगी। दिग्विजय सिंह के करीबियों की मानें तो सुरेश पचौरी की सहमति के बिना चुनाव मुश्किल होगा।
- विकास दुबे