अपनी चौथी पारी में शासन और प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमर कस ली है। उन्होंने अफसरों पर नकेल तो कसी ही है, साथ ही मंत्रियों को भी अपनी रेटिंग बनाने की जिम्मेदारी देकर उन्हें सक्रिय कर दिया है। बेहतर रेटिंग के लिए अब मंत्री मुख्यमंत्री की तरह रात-दिन काम में लगे हुए हैं। यह मप्र के लिए सुखद संकेत है।
दू ध का जला जिस तरह छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, उसी तर्ज पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी में सजग और सतर्क नजर आ रहे हैं। इसलिए उन्होंने अभी से 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए उन्होंने अपने मंत्रियों को जनता की कसौटी पर कसने की तैयारी कर दी है। उन्होंने मंत्रियों से साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि अब बैठने से काम नहीं चलेगा। सरकार अब हर माह मंत्रियों के कार्यों का आंकलन करेगी। मंत्रियों में काम के प्रति प्रतिस्पर्धा लाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज ने रेटिंग प्रणाली की व्यवस्था की है। हर महीने विभाग के कामकाज को लेकर रेटिंग जारी की जाएगी। खराब परफॉर्मेंस वाले मंत्रियों पर गाज भी गिर सकती है।
दरअसल, शिवराज सिंह चौहान की कोशिश यह है कि 2023 में 2018 वाली स्थिति न बने। इसलिए उन्होंने शासन और प्रशासन को पब्लिक फे्रंडली बनाने के लिए कमर कस ली है। इसी के तहत उन्होंने मंत्रियों और उनके विभागों की रेटिंग करवाने की व्यवस्था शुरू की है। मुख्यमंत्री की रेटिंग प्रणाली ने मंत्रियों को टेंशन में डाल दिया है। उन्हें रेटिंग की चिंता सताने लगी है। इसकी वजह यह है कि मंत्रियों को अपने बेस्ट रेटिंग के लिए मुख्यमंत्री की तरह कोल्हू का बैल (रात दिन काम करने वाला) बनना पड़ेगा। जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया है।
मुख्यमंत्री मप्र में सुशासन के सहारे 2023 का विधानसभा चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए प्रशासन के साथ ही शासन को भी चुस्त और दुरुस्त होना पड़ेगा। इसके लिए उन्होंने मंत्रियों को अधिक से अधिक समय जनता के बीच रहने और अपने विभागों के माध्यम से विकास कार्य कराने का निर्देश दिया है। मंत्री उनके निर्देश का पूरी तन्मयता से पालन करें इसके लिए उन्होंने रेटिंग प्रणाली की व्यवस्था की है। लेकिन इस प्रणाली ने मंत्रियों को चिंता में डाल दिया है। वजह यह है कि मंत्रियों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे ऐसा क्या करें कि उनकी रेटिंग अन्य मंत्रियों से बेहतर हो। गौरतलब है कि हर सोमवार को मंत्री अपने विभाग के अफसरों के साथ कामकाज की समीक्षा करेंगे। मंत्री मासिक रिपोर्ट कार्ड में अफसरों से उपलब्धियों के बारे में पूछेंगे। विभागीय योजनाओं के साथ-साथ केंद्र की योजनाएं कहां तक पहुंची है, इस पर भी संबंधित विभाग के मंत्री नजर रखेंगे। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के पास हर विभाग की प्रगति रिपोर्ट प्रतिदिन पहुंचती है। इसी के जरिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विभाग के कामकाज पर नजर रखेंगे।
मंत्रियों के रेटिंग तय करने लिए मंत्री हर महीने मुख्यमंत्री के पास रिपोर्ट कार्ड सौंपेंगे। इस रिपोर्ट कार्ड में सभी कामों का जिक्र होगा। मुख्य सचिव के साथ मुख्यमंत्री सभी विभागों के रिपोर्ट कार्ड की समीक्षा करेंगे। उसी के आधार पर रेटिंग तय की जाएगी कि किस विभाग ने अच्छा काम किया है। अच्छा करने वाले लोगों को वाहवाही भी मिलेगी। इस रेटिंग प्रणाली में मंत्रियों के सामने असली चुनौती यह होगी, अपने विभाग से संबंधित सभी परियोजनाओं को निर्धारित समय के अंदर पूरा करवाएं। साथ ही जन सरोकार से जुड़ी जो योजनाएं हैं वह सही तरीके से लागू हो। इसके साथ ही केंद्रीय योजनाओं का लाभ लाभुकों तक असानी से पहुंचे, मंत्रियों को यह भी सुनिश्चित करना है। इसके लिए उन्हें ग्राउंड लेवल पर भी मॉनीटरिंग करनी होगी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी चौथी पारी में रेटिंग प्रणाली लाने के पीछे वजह यह है कि वह चाहते हैं कि उन्हीं की तरह मंत्री भी मंत्रालय से लेकर जनता के बीच सक्रिय रहें। भाजपा के एक पदाधिकारी कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान मप्र में रेटिंग प्रणाली विकास की गति को रफ्तार देने के लिए लेकर आए हैं। साथ ही इससे धन की बचत भी होगी। वे उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि किसी पुल का निर्माण होना है। उसके लिए 1 करोड़ रुपए का बजट पास हुआ। समय निर्धारित किया गया है कि इसे छह महीने में पूरा कर लेना है। विभागीय शिथिलता की वजह से यह काम छह महीने में पूरा नहीं हुआ। उसके बाद बजट बढ़ जाता है। इससे आर्थिक नुकसान के साथ ही लोगों की असुविधा भी बढ़ती है।
संघ के एक स्वयंसेवक कहते हैं कि शिवराज की रेटिंग प्रणाली से विकास को तो गति मिलेगी ही, साथ ही 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा मजबूत स्थिति में रहेगी। वह कहते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह रही है 13 मंत्रियों की हार। वह कहते हैं कि शिवराज की तीसरी पारी में मंत्रियों की कार्यप्रणाली संतोषजनक नहीं रही थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में उन्हें मिलाकर कुल 32 मंत्री थे। जिनमें से 27 ने चुनाव लड़ा था। 14 अपनी सीट बचाने में सफल रहे। भाजपा के लिए सदमे की बात यह हुई थी कि उसके 13 मंत्री तक अपनी सीट नहीं बचा सके हैं। अगर ये मंत्री अपनी सीट जीत जाते तो विधानसभा का नजारा अलग ही होता। भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बना सकती थी। यहां जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि भाजपा ने टिकट आवंटन के समय फूंक-फूंक कर कदम रखे थे और अपने 5 मंत्रियों के टिकट भी काटने का साहस दिखाया था। जिससे लग रहा था कि टिकट उन्हें ही दिया गया है जिनमें जीतने की क्षमता है। लेकिन, 13 मंत्री तो हारे ही, साथ ही जो जीते भी हैं उनमें कई संघर्ष करके जीत पाए हैं। इसलिए शिवराज चाहते हैं कि 2023 में ऐसी स्थिति न बने इसलिए वे अभी से अपने मंत्रियों को सक्रिय रखना चाहते हैं।
मप्र की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी में काफी सख्त रुख अपनाए हुए हैं। अपने मंत्रियों और आला अफसरों को लेकर 13 साल की अपनी तीन पारियों में सामान्यत: नरम रवैया अख्तियार करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नई पारी में नए अंदाज में हैं। वह अब कामकाज में कोताही को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं, खासकर जनता से सीधे तौर पर जुड़े मामलों में। कई मौकों पर तो ऐसा भी हुआ है कि उन्होंने संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव या अतिरिक्त मुख्य सचिव के बजाय मंत्री को ही तलब कर अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया। नतीजा यह मिल रहा है कि अब विभाग प्रमुखों के साथ ही मंत्री भी अलर्ट रहने लगे हैं और मुख्यमंत्री का बुलावा उनके दिल की धड़कन बढ़ा देता है। चुटकियों में कड़े फैसले, व्यवस्था की पड़ताल करने सीधे सड़क से सरकारी दफ्तरों का दौरा, वहीं अशांति की कोशिशों पर सीधे कार्रवाई। ये पहचान पिछले कुछ दिनों में बनी है मप्र की, जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अलग ही अंदाज में देखे जा रहे हैं, खासकर उपचुनाव के परिणाम के बाद से। शिवराज ने लव जिहाद पर लगाम के लिए कानून से लेकर गौ-कैबिनेट तक के निर्णय लेकर अपनी कार्यशैली के नए अंदाज का अहसास करा दिया है। दरअसल, ये संकेत हैं कि प्रदेश की सियासत में उसी शिवराज दौर की वापसी हो रही है, जिसे उनके लगातार तीन कार्यकाल में प्रदेश पहले भी देखा जा चुका है। पिछले तीन कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री अफसरों को मंत्रालय की बैठकों से लेकर सार्वजनिक मंचों तक पर हड़काते रहते थे। लेकिन अफसरों की चाल कभी नहीं बदली।
दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक खासियत यह है कि वे जनता की मानसिकता के अनुसार काम करते हैं। ऐसे में जब भी उनके सामने जनता से संबंधित शिकायतें पहुंचती हैं तो वे तत्काल नए निर्देश जारी कर देते हैं। उन निर्देशों का क्रियान्वयन हुआ या नहीं, इसकी कभी जांच पड़ताल नहीं की गई। लेकिन इस बार वे कुछ अलग अंदाज में नजर आ रहे हैं। न केवल वे निर्देश दे रहे हैं, बल्कि उसके क्रियान्वयन की रिपोर्ट भी ले रहे हैं। इससे अफसरों में पहले की अपेक्षा अधिक भय नजर आ रहा है।
उपचुनाव के बाद प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रशासनिक कसावट में जुट गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कलेक्टर-कमिश्नर और आईजी-पुलिस अधीक्षकों के साथ वीडियो कांफ्रेंस करने के बाद तय किया है कि वे विभागों में कसावट लाने के लिए स्वयं समीक्षा करेंगे। एक दिसंबर से यह सिलसिला शुरू होकर करीब ढाई माह चलेगा। इसमें विभागीय मंत्रियों और अधिकारियों को एक, दो और तीन साल की कार्ययोजना बतानी होगी। साथ ही सीएम हेल्पलाइन, लोक सेवा गारंटी योजना के लंबित मामलों के साथ मुख्यमंत्री की घोषणा के क्रियान्वयन की स्थिति को लेकर प्रस्तुतिकरण भी देना होगा। मंत्रियों के लिए अब अपनी रेटिंग बनाना बड़ी चुनौती बन गया है।
मंत्रीजी का काम अच्छा नहीं तो जाएगी कुर्सी
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बार मंत्रिमंडल विस्तार के लिए अनूठा तरीका ढूंढ़ा है। विस्तार में मंत्रियों की संख्या न बढ़ाकर मंत्री ही बदले जाएंगे। जिन मंत्रियों का कामकाज अच्छा नहीं होगा, उनकी कुर्सी जा सकती है। काम के आंकलन के लिए फील्ड टेस्ट और विभागीय परीक्षा मानक हैं। कामकाज की रेटिंग का फॉर्मूला खुद मुख्यमंत्री ने ही तय किया है। दरअसल, मंत्रियों की निष्क्रियता की शिकायतें लगातार मुख्यमंत्री के पास पहुंच रही हैं। शिकायतें रहीं मंत्री मंत्रालय में कम समय देते हैं और फील्ड में भी केवल आयोजनों तक ही सीमित हैं। अत: अब मंत्रियों से कहा गया है कि फील्ड में वे यह भी देखें कि सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है। दरअसल, योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही सामने आ रही है। इसलिए मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मंत्री अपने विभाग के मैदानी कार्यों की भी मॉनीटरिंग करें। इसलिए उन्होंने मंत्रियों की रेटिंग का निर्णय लिया है। मंत्रियों की रेटिंग और विभागीय समीक्षाएं सरकारी ढर्रा सुधारने की एक कड़ी है। अफसरशाही पर मंत्रियों की पकड़ कम मजबूत। अफसर अपने ही तरीके से काम न करें, इसलिए भी यह पहल की गई है। रेटिंग से यह पता चलेगा कि मंत्रियों की विभागों में कितनी पकड़ है और वे अपने विभाग में कितना समय दे रहे हैं।
मंत्रियों को सलाह इनोवेटिव आइडियाज पर करें काम
मंत्रियों में काम के प्रति प्रतिस्पर्धा लाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज ने रेटिंग प्रणाली की व्यवस्था के साथ ही उनसे दो टूक कहा है कि उन्हें नए-नए आइडिया पर काम करना होगा। मुख्यमंत्री ने मंत्रियों से कहा कि वे इनोवेटिव आइडियाज पर काम करें। मंत्री की लीडरशिप में सभी विभाग कुछ इनोवेटिव आइडियाज निकालें और उनपर अमल करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि हर सोमवार को मंत्री विभागीय बैठक में विभागीय प्रगति की समीक्षा करें। मंत्री तीन बातों का ध्यान रखें। मप्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोडमैप तैयार है, उस पर काम शुरू हो गया है। सभी मंत्री इस पर तेजी से अमल सुनिश्चित करें तथा इसकी निरंतर मॉनिटरिंग हो। कोरोना के कारण प्रदेश में वित्तीय संकट है, ऐसे में विभागीय निर्माणकार्यों के लिए आउट ऑफ बजट राशि की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दें। मंत्री केंद्र की विभिन्न योजनाओं में मप्र को अधिक से अधिक राशि प्राप्त हो, इसके लिए प्रयास करें। केंद्र सरकार के संपर्क में रहें, जरूरत हो तो दिल्ली भी जाएं।
- कुमार राजेन्द्र