मप्र विधानसभा में पेश की गई कैग की रिपोर्ट में कई विभागों की भर्राशाही और भ्रष्टाचार सामने आया है। रिपोर्ट में सार्वजनिक उपक्रमों को सफेद हाथी बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में बिजली सेक्टर के 11 सार्वजनिक उपक्रमों में से 3 कंपनियां घाटे में चल रही हैं।
प्रदेश में अफसरशाही के मायाजाल को कैग रिपोर्ट ने नकार दिया है। कैग रिपोर्ट्स के मुताबिक मप्र सरकार के 71 सार्वजनिक उपक्रम यानी सरकारी हिस्सेदारी वाली कंपनियों में 54 हजार करोड़ से ज्यादा का घाटा 2019 की स्थिति में है। इसमें भी मुख्यत: 2016-17 से दिसंबर 2019 तक का आंकलन किया गया है। दिलचस्प ये कि इन 71 सार्वजनिक उपक्रमों में 11 बिजली सेक्टर के हैं। इनमें तीन बिजली कंपनियों का घाटा ही करीब 7158 करोड़ का है। इन तीन बिजली कंपनियों का घाटा इसी बिजली सेक्टर की उन कंपनियों को भी डूबा रहा है, जो फायदे में है। इसके पीछे अफसरशाही का कुप्रंधन, गलत नीतियां और लापरवाही है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश कैग रिपोर्ट्स से घाटे की इस रोशनी और सार्वजनिक उपक्रमों की स्थिति उजागर हुई है।
सबसे पहले बिजली सेक्टर के 11 सार्वजनिक उपक्रमों की बात करें तो तीन कंपनियां घाटे में हैं। इनमें तीनों बिजली वितरण कंपनियां शामिल हैं। यानी कैग रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व क्षेत्र, पश्चिम क्षेत्र और मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियां 2016 से दिसंबर 2019 की स्थिति में 7158.48 करोड़ रुपए के घाटे में है। वहीं पॉवर जनरेटिंग कंपनी, पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी और बाणसागर थर्मल पॉवर कंपनी उलटे 216 करोड़ रुपए के लाभ में हैं। वहीं दादा धूनीवाले खंडवा पॉवर लिमिटेड कंपनी महज 3 करोड़ के मामूली नुकसान में हैं। जबकि, चार कंपनियां ऊर्जा विकास निगम, पॉवर मैनेजमेंट कंपनी, शाहपुरा थर्मल पॉवर और सिंगाजी पॉवर लिमिटेड कंपनी न घाटे में है और न फायदे में हैं। वहीं यदि इन सभी बिजली के 11 सार्वजनिक उपक्रमों की बात करें, तो इन्होंने कुल 77 हजार करोड़ का कारोबार किया था।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018-19 में ऊर्जा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों का कारोबार 77 हजार 617.28 करोड़ रुपए था, जो मध्य क्षेत्र के सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 9.59 प्रतिशत था। इन उपक्रमों में कुल निवेश का वर्तमान मूल्य 87 हजार 154.15 करोड़ रुपए था। वर्ष 2016-17 में एक हजार 405.93 करोड़ के मुकाबले वर्ष 2018-19 में छह हजार 944.74 करोड़ का नुकसान उठाया गया। इस साल 11 में से तीन उपक्रम लाभ में रहे, जबकि विद्युत वितरण कंपनियां सात हजार 158.48 करोड़ के घाटे में चली गईं। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी ने 452.32 करोड़ रुपए के 155 ट्रांसफार्मर खरीदने के लिए 19 ठेके किए। इसमें कंपनी किफायती खरीद नहीं कर सकी। पिछली खरीद की तुलना में समान क्षमता के ट्रांसफार्मर उच्च मूल्य पर खरीदे गए। कंपनी दूसरे बोलीदार से पहली बोली पर की गई खरीद की दर को प्रतिबंधित करने में भी विफल रही।
दूसरी ओर बिजली सेक्टर के 11 उपक्रमों के अलावा बाकी 60 सरकारी क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों की बात करें, तो वे भी घाटों की घटा में घिरे हैं। इनमें से अधिकर सरकारी हिस्सेदारी वाली कंपनियां बेहद खराब हालत में हैं। इनमें निष्क्रिय कंपनियां भी शामिल हैं। इसी कारण इनका घाटा 54 हजार करोड़ पार कर गया है। इन 60 उपक्रमों में 16 उपक्रप पूरी तरह निष्क्रिय हैं। यानी सरकार इनको बंद करने का फैसला कर चुकी है अथवा यह कागजों पर ठप पड़े हैं। वहीं 44 कार्यशील उपक्रम है। इनमें से नौ को हानि हुई हैं। वहीं लाभ में रहने वाले उपक्रमों में स्टेट माइनिंग कारपोरेशन, वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिकस कारपोरेशन और स्टेट फॉरेस्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन शामिल हैं। औद्योगिक विकास निगम में भूमि आवंटन में हानि दर्शाई गई हैं। वहीं अन्य 31 सार्वजनिक उपक्रमों को जीडीपी में अकाउंटेबल माना गया है। इनमें से भी कुछ सार्वजनिक उपक्रम घाटे में चल रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016-17 से वर्ष 2018-19 के दौरान मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी वसूली में पिछड़ गईं। असर यह हुआ कि नवंबर 2019 तक दोनों कंपनियों का उपभोक्ताओं पर बकाया दो हजार 619 करोड़ 96 लाख रुपए हो गया। ऐसा सरकारी विभागों से सामंजस्य बनाने में विफलता और बिल जमा न करने वाले उपभोक्ताओं से संपर्क नहीं करने का परिणाम है। हालांकि, इस अवधि में मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की स्थिति में सुधार आया। उसकी संग्रहण दक्षता 86.25 से बढ़कर 87.43 प्रतिशत हुई। मुकुंदपुर वाइट टाइगर सफारी के निर्माण में ठेकेदारों को जुर्माना लगाए बगैर कार्य की समयसीमा बढ़ाने की अनुमति दे दी।
बिजली दर बढ़ाने की तैयारी
मप्र में बिजली की दरें बढ़ाने की तैयारी है। बिजली कंपनियों की ओर से वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 8.71 प्रतिशत दर बढ़ाने को लेकर दायर याचिका को मप्र राज्य नियामक आयोग ने स्वीकार कर लिया है। अब इस पर आम बिजली उपभोक्ताओं के दावे-आपत्तियों को सुना जाएगा। इसके बाद नियामक आयोग अंतिम निर्णय करेगा। कंपनियों की डिमांड के मुताबिक दरें बढ़ाई गईं तो बिजली उपभोक्ताओं को तगड़ा झटका लगेगा। प्रति यूनिट 58 पैसे तक बढ़ सकते हैं। बढ़े हुए बिजली बिल पर 12 प्रतिशत सर्विस टैक्स भी लगेगा। यह तीसरा मौका होगा जब प्रदेश में बिजली की दरें बढ़ाई जाएंगी। प्रदेश की तीनों बिजली वितरण कंपनियों (पूर्व, मध्य और पश्चिम) की ओर से वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 48 हजार 874 करोड़ रुपए की जरूरत बताई गई है। इसमें सबसे अधिक 19 हजार 428 करोड़ रुपए पश्चिम क्षेत्र कंपनी खर्च करेगी। वहीं, सबसे कम खर्च पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी करेगी। जबकि इस कंपनी के कार्यक्षेत्र में 20 जिले शामिल हैं।
- अरविंद नारद