मप्र में जैविक खेती किसानों की पसंद बनती जा रही है। इसकी वजह यह है कि जैविक फसलों को उत्पादन कर किसान मालामाल हो रहे हैं। इससे प्रदेश में जैविक खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। इसका परिणाम है कि आज मप्र में 16 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है। यही कारण है कि जैविक खेती के मामले में मप्र नंबर वन राज्य बन गया है। प्रदेश में इस समय लाखों किसान ऐसे हैं जो जैविक खेती कर रहे हैं। धान, गन्ना, गेहूं, सरसों, मसूर किसानों की पहली पसंद बने हुए हैं। प्रदेश के हर जिले में सैकड़ों किसानों ने जैविक खेती करनी शुरू कर दी है। इसी तरह प्रदेश में जैविक खेती का विस्तार हो रहा है और आज देश में नंबर एक पर है। पंजाब, राजस्थान सहित अन्य जगह से व्यापारी आकर उत्पाद खरीदते हैं और निर्यात करते हैं। सर्वाधिक मांग बासमती चावल, शरबती गेहूं की है। सरकार ने भी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रकोष्ठ गठित किया। अब कृषि व प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) का क्षेत्रीय कार्यालय भी खुल गया है।
प्रदेश में आज 16 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र ऐसा है, जहां जैविक खेती होती है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में परंपरागत रूप से जैविक खेती होती है। इसे और बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने मप्र को 110 करोड़ रुपए भी दिए थे। इससे किसानों को प्रशिक्षित करने के साथ जैविक खाद बनाने और प्रसंस्करण की सुविधाएं विकसित की जानी थीं। वहीं, सामान्य क्षेत्रों में किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। पूर्व कृषि संचालक जीएस कौशल कहते हैं कि 1998 से जैविक खेती को बढ़ावा देने का काम शुरू हुआ। सभी सरकारी कृषि प्रक्षेत्रों में जैविक खेती प्रारंभ की गई। प्रत्येक विकासखंड में एक जैविक गांव बनाया गया और ये बढ़ते-बढ़ते एक हजार 565 हो गए। जैविक गांव बनाने का मकसद यही था कि किसान फार्म देखें और प्रेरित हों, पर यह काम आसान नहीं था क्योंकि जैविक खेती को लेकर भ्रांतियां बहुत हैं। धीरे-धीरे जैविक उत्पाद की मांग बढ़ने लगी तो किसानों को भी इसका महत्व समझ आने लगा और रकबा बढ़ने लगा।
प्रदेश में कई किसान ऐसे हैं जो जैविक खेती तो करते ही हैं, वहीं जैविक उत्पाद भी बनाते हैं जिनकी मांग विदेश में भी है। नरसिंहपुर के रविशंकर रजक 2013 से पूरी 13 एकड़ भूमि पर जैविक खेती कर रहे हैं। गन्ना बेचने की जगह गुड़ बनाते हैं, पर इसे बेचने के लिए मंडी नहीं जाते हैं। खरीदार आते हैं और गुड़ ले जाते हैं। शाजापुर के राधेश्याम परिहार कहते हैं कि खेती करने के साथ प्रसंस्करण का काम भी शुरू कर दिया है। हल्दी, मिर्च, धनिया पाउडर बनाकर बेचे जा रहे हैं। शाजापुर, नीमच से राजस्थान के कैलाश चौधरी जैविक उत्पाद खरीदकर दुबई सहित अन्य देशों में निर्यात करने का काम कर रहे हैं। उनका कहना कि हर देश में जैविक उत्पाद की मांग है और यह लगातार बढ़ रही है।
कृषि विभाग के अपर मुख्य सचिव अजीत केसरी कहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है। कई योजनाओं के माध्यम से किसानों को लाभ भी पहुंचाया जा रहा है। प्रदेश से अधिक से अधिक जैविक उत्पाद निर्यात हो, इसके लिए निर्यातकों को सुविधा दिलाने का काम किया जा रहा है। इसके लिए एग्री एक्सपोर्ट प्रकोष्ठ का गठन किया है। साथ ही अब प्रदेश में एपीडा का क्षेत्रीय कार्यालय भी खुल गया है। इससे भी निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। एपीडा के डायरेक्टर चेतन सिंह कहते हैं कि जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री लगातार काम कर रहे हैं। मप्र में क्षेत्र भी बढ़ा है और जैविक उत्पाद के निर्यात में वृद्धि हुई है। यहां के शरबती गेहूं और चावल की सर्वाधिक मांग है। रतलाम, मंदसौर का लहसून, प्याज और मैथी दाना बाहर भेजा जाता है।
मप्र में जैविक खेती के प्रति किसानों का लगाव तेजी से बढ़ रहा है। खासकर आदिवासी बहुल जिलों में जैविक खेती का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, कटनी, उमरिया, अनूपपुर, उमरिया, दमोह, सागर, आलीराजपुर, झाबुआ, खंडवा, सीहोर, श्योपुर और भोपाल में जैविक खेती अधिक होती है। यही नहीं प्रदेश में उत्पादित जैविक अनाजों की देशभर में मांग बढ़ रही है। इस कारण प्रदेश जैविक खेती और इससे जुड़े उत्पादों के निर्यात में देश में अव्वल है।
पांच लाख टन जैविक उत्पाद का निर्यात
प्रदेश में जैविक खेती का रकबा तो बढ़ रहा है पर उत्पाद की मार्केटिंग और ब्रांडिंग न होने से उत्पादकों को फायदा नहीं मिल पाता है। इसे देखते हुए कृषि विभाग अब किसान और व्यापारियों को एक मंच पर लाने की दिशा में काम कर रहा है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश से पांच लाख टन जैविक उत्पाद का निर्यात हुआ, जो ढाई हजार करोड़ रुपए से अधिक का था। जैविक खेती करने वाले पंजीकृत किसानों की संख्या एक लाख से अधिक है। सोयाबीन, चना, मसूर, तुअर और उड़द के उत्पादन में मप्र देश में नंबर एक पर है। वहीं, रामतिल और मूंग में दूसरा और गेहूं और बाजरा के उत्पादन में तीसरा स्थान है। अपर मुख्य सचिव कृषि एवं सहकारिता अजीत केसरी का कहना है कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार मप्र जैविक खेती के मामले में देश में अव्वल है। प्राकृतिक तौर पर मप्र में जैविक खेती का क्षेत्र सर्वाधिक है। वहीं, किसान भी लगातार प्रेरित हो रहे हैं। वर्ष 2020-21 में उत्पादन 13 लाख 92 हजार 95 टन रहा है, जो देश में सर्वाधिक है। इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और उप्र का नंबर आता है। जैविक उत्पाद के निर्यात की दृष्टि से देखें तो देश-दुनिया में इसकी मांग बढ़ रही है। मप्र से वर्ष 2020-21 में पांच लाख 636 टन जैविक उत्पाद निर्यात किए गए। इसका मूल्य दो हजार 836 करोड़ रुपए होता है।
- राकेश ग्रोवर