प्रदेश में एक तरफ वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वन विभाग खुद जंगल के कानून पर डाका डाल रहा है। वन विभाग जंगली हाथियों को पकड़कर उन्हें पालतू बना रहा है। जानकारों का कहना है कि वन विभाग का यह कदम जंगल के कानून के खिलाफ है।
वन विभाग की कार्यप्रणाली भी गजब की है। वह वन्य प्रााणियों को सुरक्षा मुहैया कराने में तो पूरी तरह से नाकाम है। उधर, रिहाइशी क्षेत्रों में पकड़े जाने वाले वन्य प्राणियों के साथ अधिकारियों का व्यवहार नियम-निर्देशों के खिलाफ है। विभागीय अधिकारियों हरकतें, वाइल्ड लाइफ संरक्षण अधिनियम की लक्ष्मण रेखा पार करने वाली कही जाएंगी। विभाग की तरफ से अधिनियम की धज्जियां उड़ाने वाला वाकया जबलपुर इलाके में भटककर आए हाथी के साथ पेश आया। विभाग उसे पकड़कर वापस वन क्षेत्र में छोड़ने के बजाय कब्जे में लेकर पर्यटकों को भ्रमण कराने के लिए प्रशिक्षित करवा रहा है। इससे पहले भी हाथियों को उत्पाती बताकर इसी तरह नेशनल पार्कों में काम पर लगा दिया गया है।
विभाग के इस गैरजिम्मेदाराना रवैये के खिलाफ वन्य प्राणी प्रेमियों में भारी आक्रोश है। उन्होंने विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नोटिस भेजकर जवाब-तलब किया है। उन्होंने अखिल भारतीय सर्विस के अधिकारियों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई के लिए पर्सनल ट्रेनिंग डिपार्टमेंट से अनुमति भी मांगी है।
मंडला वन परिक्षेत्र से भटककर दो जंगली हाथी एक साल पहले जबलपुर वन परिक्षेत्र में पहुंच गए थे। इन हाथियों को स्थानीय लोगों ने राम-बलराम नाम दिया। हाथियों को सुरक्षा देने में वन विभाग पूरी तरह नाकाम रहा। उनमें से एक बलराम की बरगी मौहास के जंगल में शिकारियों के फैलाए करंट की चपेट में आने से मौत हो गई। शिकारियों के चंगुल से बचे हाथी को जैसे-तैसे हकाल कर मंडला के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचाया गया। वन विभाग के अफसरों ने उसे जंगल में छोड़ने के बजाय कैद कर पालतू बनाने की ट्रेनिंग दी गई और महावतों के हवाले कर दिया। अब उसे अन्य पालतू हाथियों की तरह गश्ती दल, पयर्टकों के जंगल में भ्रमण आदि में तैनाती की व्यवस्था की जा रही है। हाथियों को पालतू बनाने की अनुमति विभागीय आला अधिकारियों ने लिखित में दी थी। पिछले महीने उमरिया के खितौली से एक जंगली हाथी को रेस्क्यू के बाद कान्हा ले जाया गया। उसे भी प्रशिक्षण देकर पर्यटन और टाइगर ट्रैकिंग के गुर सिखाए जाएंगे।
एक अन्य मामले में कुछ समय पहले सिवनी जिले के मुख्य वन संरक्षक ने नरसिंहपुर के वन मंडलाधिकारी के पत्र का हवाला देते हुए उत्पाती हाथियों को पकड़ने का आदेश दिया। भटककर सीधी क्षेत्र में आने वाले जंगली हाथियों को पकड़कर जंगल में छोड़ने के बजाय बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। उनका बाद में पर्यटकों को बाघों के दीदार कराने में इस्तेमाल होने लगा। जानकारों के अनुसार एक्ट उल्लंघन के ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन, विभागीय आला अधिकारी तर्क देते हैं कि जंगली हाथियों के उत्पात से लोगों को बचाने के लिए पकड़कर प्रशिक्षण के बाद बाघों के अनुश्रवण कार्य में लगाया जाता है। इसे सामाजिक कार्यकर्ता सरासर अधिनियम का उल्लंघन बता रहे हैं। अधिकारियों की ओर से इस मसले पर संतोषजनक जवाब नहीं मिलने की स्थिति में वे कानूनी चुनौती देने की तैयारी में भी हैं।
जानकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार वन विभाग के अधिकारियों का कारनामा वाइल्ड लाइफ प्रोटक्शन एक्ट की धारा-55 का सीधा उल्लंघन है। इसलिए जबलपुर प्रकरण सहित अन्य मामलों में नोटिस देकर जवाब मांगा गया है। जवाब संतोषजनक नहीं होने की स्थिति में पर्सनल ट्रेनिंग डिपार्टमेंट (डीओपीटी) से अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए अनुमति मांगी जाएगी। वन्य प्राणियों के हित में कार्य करने वालों ने कहा है कि वे इन मामलों की विभागीय सुनवाई नहीं होने पर हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएंगे। शहडोल सीसीएफ पीके वर्मा का कहना है कि हाथियों का रेस्क्यू गाइडलाइन के अंतर्गत ही किया जाता है। वाइल्ड लाइफ और संबंधित नेशनल पार्क की टीम मिलकर इसे करते हैं।
जबलपुर-शहडोल संभाग में हाथियों का मूवमेंट
विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों में लगातार मानवीय दखल बढ़ रहा है। अवैध कटाई और खनन से हाथी और वन्यजीवों का मूवमेंट एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बढ़ रहा है। वन भूमि में सरकार काबिज ग्रामीणों को पट्टे भी दे रही है। संभाग के उमरिया बांधवगढ़ क्षेत्र व अनूपपुर के छत्तीसगढ़ से सटे गांवों में हाथियों का मूवमेंट बढ़ गया है। इधर, कटनी के बरही तहसील के मचमचा, निपनिया, बिचपुरा, करौंदीकला, बगदरा, करेला व कुआं सहित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सीमा से लगे दूसरे गांव में भी हाथियों का मूवमेंट बना हुआ है। उमरिया और अनूपपुर के पिछले तीन साल के आंकड़ों के अनुसार, 3066 ग्रामीणों को वनाधिकार पट्टा दिया गया है। उमरिया में 2039 और अनूपपुर में 1027 ग्रामीणों को वनाधिकार दिया है। शहडोल संभाग में 100 से अधिक जंगली हाथियों का मूवमेंट है। सेफ जोन की तलाश में मप्र में हाथी-मानव के बीच द्वंद्व की स्थिति बढ़ी है। बांधवगढ़ में 45 से ज्यादा हाथियों के स्थायी ठिकाने के बाद पिछले दिनों अनूपपुर में 40 से ज्यादा हाथियों का दूसरा झुंड छत्तीसगढ़ से पहुंचा है।
- बृजेश साहू