विकास की नई परिभाषा में प्रगति का एक रास्ता सड़क से होकर गुजरता है लेकिन मप्र में सड़क की राह फिलहाल आसान नहीं दिख रही है। इसकी वजह है बजट का अभाव। प्रदेश में लोक निर्माण विकास द्वारा सड़कों के संधारण, सड़कों के नवीनीकरण, सेतु निर्माण कराए जाने हैं, लेकिन विभाग के पास बजट का अभाव है। इसलिए विभाग ने वित्त विभाग को 1540 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा है। अगर वित्त विभाग समय पर उक्त राशि उपलब्ध करा देता है तो सड़कों की मरम्मत और निर्माण का कार्य शुरू हो सकता है।
प्रदेश में सड़कों का जाल बिछा हुआ है। प्रदेश सरकार की मंशा है कि जिन क्षेत्रों में सड़कें नहीं हैं, वहां सड़कों का निर्माण किया जाए। लेकिन सड़कों का निर्माण करने वाली सरकार एजेंसी लोक निर्माण विभाग को पर्याप्त बजट नहीं मिल पा रहा है। इसका असर यह हुआ है कि विभाग पर करीब 900 करोड़ की देनदारी है। ऐसे में सड़कों की मरम्मत और निर्माण का कार्य कैसे हो पाएगा, यह चिंता का विषय है।
लोक निर्माण विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 में सड़कों के संधारण के लिए 89 करोड़ मिले थे, जिसमें से विभाग ने 53 करोड़ खर्च किए। इसी तरह सड़कों के नवीनीकरण के लिए 150 करोड़, आवासीय भवनों के संधारण कार्य के लिए 59 करोड़, नई सड़कों के निर्माण के लिए 1015 करोड़, सेतु निर्माण के लिए 160 करोड़ सड़कों के मजबूतीकरण के लिए 210 करोड़ मिले थे। विभाग ने समय सीमा में उक्त राशि से विकास कार्य करवाया है। अब नया कार्य करवाने और मरम्मतीकरण के लिए करीब 1540 करोड़ रुपए की जरूरत है। अब देखना यह है कि वित्त विभाग उक्त राशि कब तक मुहैया कराता है।
गौरतलब है कि अमेरिका की सड़कों से टक्कर लेने का दावा करने वाली टोल की सड़कों पर गड्ढों के रूप में बड़े-बड़े काले धब्बे उभर आए हैं। हालत यह है कि इन सड़कों की ऊपरी परत ही गायब बताई जा रही है। इन पर सरपट दौड़ने वाले वाहन भी हिचकोले खाने लगे हैं। सड़कों के निर्माण और मरम्मत के नाम पर हर साल 8 हजार करोड़ रुपए खर्च होने के बावजूद स्थिति निराशाजनक है। प्रदेश सरकार स्वयं मान रही है कि इस साल प्रदेश में अतिवृष्टि से कुल 5954 किमी सड़कों को भारी नुकसान पहुंचा है। 1015 पुल-पुलियाएं भी जर्जर हुई हैं। इनकी मरम्मत के लिए लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने सरकार से 1540 करोड़ रुपए का बजट मांगा है। जाहिर है आर्थिक संकट का सामना कर रहे प्रदेश में सड़कों की मरम्मत और निर्माण की राह आसान नहीं है।
पीडब्ल्यूडी के ही एक आला अधिकारी ने हाल ही में मालवा-निमाड़ और महाकौशल अंचल का दौरा किया। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि यह पहला मौका है कि टोल वाली सड़कों की हालत भी बहुत खराब है। ग्रामीण सड़कों की तुलना में बड़े शहरों की सड़कें ज्यादा परेशान कर रही हैं। स्टेट हाईवे जैसी स्थिति ज्यादातर राष्ट्रीय राजमार्गों की है, मेंटेनेंस न होने से ज्यादातर एनएच की सड़कें जर्जर हो चुकी हैं।
मप्र सरकार के सामने बदहाल सड़कें चुनौती बनी हुई हैं। प्रदेश के करीब पांच दर्जन मार्गों पर टोल टैक्स चुकाने के बावजूद वाहन गड्ढेदार सड़कों पर हिचकोले खाने को विवश हैं। दोहरा टैक्स चुकाने के बावजूद प्रदेश के नागरिकों को सरपट सड़कें नसीब नहीं हो रही हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं विभागीय अधिकारियों को सड़कों की तकनीक सुधारने की नसीहत दे चुके हैं। उधर सड़क निर्माण से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो मप्र में अन्य राज्यों की तुलना में सड़क बनाने की तकनीक और इच्छा शक्ति दोनों की कमी है। केरल और मुंबई की सड़कें ज्यादा बारिश झेलने के बावजूद हमसे बेहतर क्यों बनी रहती हैं, इस सवाल का जवाब न तो प्रदेश के सड़क विकास निगम के पास है और न ही लोक निर्माण विभाग के पास।
मप्र में सड़क निर्माण के बारे में बात करें तो तकनीक, स्पेसिफिकेशन, मॉनिटरिंग और पूरे सिस्टम में बहुत सुधार की जरूरत है। हमारे यहां सड़क पर यदि गड्ढा हुआ तो उसके बड़े होने का इंतजार होता है, तुरंत ही उसका इलाज नहीं किया जाता जबकि दिल्ली-मुंबई में मेंटेनेंस तुरंत होता है। यही कारण है कि वहां सड़कें ज्यादा खराब नहीं हो पातीं।
कोलार की सड़कों का 414 करोड़ में होगा उन्नयन
राजधानी को आसपास के शहरों से जोड़ने वाले व्यस्ततम मार्गों पर ट्रैफिक की आवाजाही आसान बनाने की तैयारी है। कोलार मुख्य मार्ग और लिंक रोड नंबर 3 को 414 करोड़ रुपए खर्च कर दुरुस्त किया जाएगा। सर्विस रोड भी अपग्रेड होगी। साथ ही अयोध्या बायपास पर बिना रुके वाहनों के मूवमेंट के लिए 337 करोड़ रुपए खर्च किया जाएगा। खास बात यह है कि सड़क निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण की जरूरत नहीं होगी। पीडब्ल्यूडी के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरी झंडी दे दी है। सेंट्रल रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (सीआरआईएफ) योजना में राशि मुहैया कराने के लिए प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। केंद्र इस योजना में राज्यों को सड़क व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए राशि देता है। पीडब्ल्यूडी की ओर से भेजे प्रस्ताव में कहा गया है कि भोपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास देश के अन्य राज्यों की राजधानी की तरह नहीं हो पा रहा है। इस संबंध में जनप्रतिनिधि भी कई बार कह चुके हैं कि शहर की घनी आबादी वाले क्षेत्र में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन इसके अनुरुप अधोसंरचनाओं का विकास नहीं हो पा रहा है। सुविधाएं व विकास न होने से अपेक्षित निवेश नहीं आ रहा है। केंद्र की योजनाओं का उचित फायदा नहीं मिल पा रहा है। इसके मद्देनजर जनप्रतिनिधियों ने शहर के दो मुख्य मार्गों को अपग्रेड करने का प्रस्ताव सीआरआईएफ योजना में भेजने के निर्देश दिए हैैं।
- राकेश ग्रोवर