कपास के किसानों से खुली लूट
07-Jan-2021 12:00 AM 701

 

एक तरफ केंद्र सरकार कह रही है कि किसानों को हर फसल (अनाज) का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा, तो वहीं मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई बार कह चुके हैं कि प्रदेश सरकार किसानों की फसलों को खुद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी। लेकिन प्रदेश में ही कपास के किसानों से सरकारी बिक्री केंद्रों पर ही खुली लूट की जा रही है। मप्र में निमाड़ की मंडियों में कपास (रुई) को औने-पौने दामों में खरीदने की साजिश की जा रही है। किसानों का आरोप है कि मंडियों में कपास को औने-पौने दामों में (जो कि एमएसपी से काफी कम हैं) खरीदने के पीछे भारतीय कपास निगम के अधिकारियों और मंडी प्रबंधन की ही मिलीभगत है। उनका कहना है कि भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) किसानों की कपास को खराब बताकर या दूसरी कमी निकालकर उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दे रहा है।

बता दें कि कपास की मप्र में इतनी पैदावार है कि उसे सफेद सोना कहा जाता है; क्योंकि यह एक नकदी फसल है। हालांकि कपास की खेती से किसानों को उतना लाभ कभी नहीं मिल पाता, जितना कि बिचौलिए और अधिकारी मिलकर लूट ले जाते हैं। लेकिन इन दिनों जैसे ही मंडी में कपास की आवक चरम पर होती है, मंडियों के अंदर किसानों से धोखाधड़ी करके लूट का यह खेल शुरू हो जाता है। जहां तक मप्र में कपास की पैदावार की बात करें, तो गुजरात के बाद मप्र को कपास उत्पादन में गिना जा सकता है। प्रदेश में कपास सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार के क्षेत्रों में पैदा होती है। यहां कपास की खेती करीब साढ़े सात लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा जमीन पर होती है, जिसकी 75 फीसदी पैदावार अकेले निमाड़ क्षेत्र से होती है। इसके अलावा छिंदवाड़ा और देवास भी कपास के प्रमुख जिले हैं।

प्रदेश में कपास के किसानों के साथ अब कई संगठन आ गए हैं। राज्य सरकार से किसानों की मांग है कि कपास में कमी निकालकर किसानों से की जा रही लूट बंद करके उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य, जो कि सरकार ने ही तय किया है, दिया जाए। किसानों के साथ आरएसएस से जुड़े संगठन भी उतर आए हैं। सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है, वहीं अधिकारी अपनी सफाई पेश करने में लगे हुए हैं। वहीं अगर मंडी की स्थिति देखें, तो वहां रुई खरीदने में जिस कदर आना-कानी की जा रही है, उसका अंदाजा मंडी में लगे रुई से भरे किसानों के अनगिनत वाहनों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इन संगठनों ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि अगर वह किसानों से लूट का खेल खेलेगी, तो वो विधानसभा का घेराव करेंगे।

किसानों का कहना है कि मंडियों में कपास की खरीद आराम तरीके से अधिकारियों की मनमानी से होती है। इससे किसानों को काफी तकलीफ होती है। जिन किसानों के भाड़े के वाहन होते हैं, उन पर भाड़ा बढ़ता जाता है। सीसीआई के नियमों के अनुसार कपास में 12 फीसदी से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए, लेकिन कई-कई हफ्ते खुले में वाहन खड़े रहते हैं, जिससे रुई पर ओस पड़ने से वह गीली और खराब होने लगती है, जिसे बाद में खराब बता दिया जाता है। इतना ही नहीं उनकी अच्छे रेशे की रुई को मशीनों में जांच के नाम पर ले जाकर खराब रेशे की रुई से बदलने का खेल भी खूब चलता है। इसके अलावा रेशे की लंबाई को मशीन से न मापकर हाथ से मापकर मनमर्जी के दाम किसानों को बता दिए जाते हैं, जिससे किसानों को हजारों-लाखों का नुकसान हो जाता है।

बता दें कि सरकार की तरफ से देशभर में कपास की खरीदी के लिए अधिकृत सीसीआई ही तय करती है कि कपास के भाव क्या होंगे? लेकिन इस भाव को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भी नहीं होना चाहिए। इस बार कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,825 रुपए तय था; लेकिन किसानों का आरोप है कि उन्हें कपास की यह कीमत भी नहीं मिल रही, जो कि पहले ही काफी कम है। लेकिन इतने पर भी मंडी में किसानों को 23.5 से 24.5 मिमी के कपास का भाव 5,365 रुपए प्रति क्विंटल और 24.5 से 25.5 मिमी रेशे वाली कपास का भाव 5515 रुपए प्रति क्विंटल दिया जा रहा है। यहां खरीदी के बाद कपास को प्राइवेट जिनिंग प्रेसिंग के लिए भेजा जाता है, जहां भ्रष्टाचार का खुला खेल चल रहा है।

समय पर नहीं होता भुगतान

कपास को नकदी फसल कहा जाता है। सरकार इसे नकद में खरीदने का दावा करती है। लेकिन मंडियों की सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। कपास बेचने वाले किसानों का कहना है कि उनकी कपास उधार में ली जाती है और उसका भुगतान 15-20 दिन से लेकर एक-सवा महीने तक में किया जाता है। किसानों का कहना है कि पहले से ही लूट मचा रही सीसीआई के अधिकारी किसानों को काफी टहलाकर, परेशान करके और काफी टालमटोल के बाद कई-कई दिनों में कपास खरीदते हैं और उसके बाद किसानों को भुगतान के लिए चक्कर लगवाते रहते हैं। किसानों ने मांग की है कि अगर सरकार उनका नकद भुगतान करने को सुनिश्चित नहीं करती है, जो कि पहले से ही तय है, तो किसान इसके खिलाफ आंदोलन करने को मजबूर होंगे। वहीं देरी से भुगतान को लेकर मंडी अधिकारियों का कहना है कि मंडी में आवक बहुत ज्यादा है। एक-एक दिन में भारी मात्रा में कपास खरीदी जाती है, जिसके चलते भुगतान में थोड़ी-बहुत देरी हो गई होगी; लेकिन इसके पीछे किसानों को परेशान करने का कोई मकसद नहीं है। इधर किसानों के समर्थन में उतरे संगठनों का कहना है कि मंडियों में किसानों को हर तरह से लूटा जा रहा है। सरकार का यह खेल बहुत लंबे समय तक चलने वाला नहीं है।

-  धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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