अवैध खनन बुंदेलखंड में रोजगार के लिए तरस रहे गरीब-गुरबों के लिए यह दो वक्त की रोटी का 'जुगाड़’ बन गया है। रेत खनन से मिल रहे रोजगार की वजह से वे अब कमाने परदेस नहीं जाते। बुंदेलखंड में नदियों और खेतों में पड़ी बालू का अवैध खनन चरम सीमा पर है। जहां नदियों में भारी-भरकम मशीनों से खनन किया जा रहा है, वहीं नदियों की तलहटी वाले खेतों की बालू किसान या तो समझौते में माफियाओं को बेच रहे हैं या फिर खुद ई-रिक्शा और मोटरसाइकिल से फेरी लगाने वालों को बेची जा रही है। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मप्र के छह जिलों में हजारों परिवारों को बालू के अवैध खनन से रोजगार मिला हुआ है और ये परिवार अपनी दो वक्त की रोटी का 'जुगाड़’ इसी से कर रहे हैं। इतना ही नहीं, कई जगह तो साग-सब्जी की तरह अब नदी के किनारे 'बालू मंडी’ भी लगनी शुरू हो गई है। वहां से ई-रिक्शा और मोटरसाइकिल वाले बालू खरीदकर बाजार में बेच रहे हैं। इन्हीं बालू मंडियों के अगल-बगल चाय, समोसा और परचून की अस्थायी दुकानें भी हैं। नरैनी तहसील क्षेत्र के गौर-शिवपुर गांव के नन्ना निषाद बताते हैं कि उनके गांव में करीब पचास युवक ऐसे हैं, जो मोटरसाइकिल से यह धंधा करते हैं। ये लोग किसानों के खेतों से 10 रुपए प्रति बोरी कीमत में बालू खरीदकर नरैनी कस्बे में उसे 35 रुपए प्रति बोरी की दर से बेचकर प्रतिदिन करीब 800 रुपए कमा रहे हैं। इससे उनके परिवार का दैनिक खर्च और खाने-पीने का जुगाड़ आराम से हो जाता है।
बदहाली से जूझ रहे बुंदेलखंड में एक तरफ जहां ज्यादातर आबादी को दो जून की रोटी मयस्सर नहीं है, तो वहीं रेत और पत्थर का अवैध खनन करने वाले माफिया खनिज से मालामाल हो रहे हैं। इनसे जुड़े अन्य सरकारी और गैर सरकारी लोग अवैध खनन की इस गाढ़ी मलाई का जमकर मजा ले रहे है। खनन में सत्ता पक्ष के लोगों के शामिल होने से प्रशासन भी खनन माफिया के सामने बौना साबित हो रहा है। महोबा में पहाड़ों को जमींदोज करके ये खनिज माफिया रातोंरात अमीर तो बन जाते हैं लेकिन प्रकृति से छेड़छाड़ का खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है। दैवीय आपदाओं से ग्रस्त बुंदेलखंड में खनिज संपदा की लूट मची हुई है जिसे रोकने में न तो प्रशासन कामयाब हो रहा है और न शासन। योगी सरकार को तीन साल पूरे हो गए हैं, लाख कोशिशों के बाद आज भी अवैध खनन बदस्तूर जारी हैं। जिले से आज भी प्रतिदिन अवैध बालू और गिट्टी से लदे सैकड़ों ट्रकों की आवाजाही होती है और पूरी रात अवैध खनन का खेल चलता है। अवैध खनन के पूरे खेल में कहीं न कहीं प्रशासनिक दखल अंदाजी भी रहती है। बुंदेलखंड का महोबा जनपद ग्रेनाईट पत्थरों की अपार खनिज संपदा से भरपूर है। खनिज के इस भंडार पर माफियाओं और सफेद पोशों की गिद्ध रूपी नजर हमेशा रहती है और सरकारी मुलाजिमों से साठ-गाठ करके ये माफिया अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। आपको बता दें कि महोबा चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहां का कबरई क्षेत्र प्रदेश में पत्थर मंडी के नाम से जाना जाता है। कबरई में इन पहाड़ों का पट्टा कराकर अवैध रूप से पहाड़ों में हैवी ब्लास्टिंग की जाती है जिसे लाखों रुपए की कीमत के पत्थरों को क्रेशर के माध्यम से गिट्टी बनाकर माफिया करोड़ों रुपए कमा रहे हैं। जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पहाड़ों में हैवी ब्लास्टिंग गैर कानूनी है। बावजूद इसके सफेदपोश लोगों की शह पर ये धंधा बखूबी चल रहा है। इन पहाड़ों में काम करने वाले मजदूर उड़ती डस्ट से जहां एक ओर टीबी का शिकार हो रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर पहाड़ों से गिरकर मजदूरों की मौत होना एक आम बात है। लेकिन प्रशासन और खनिज विभाग सिर्फ खानापूर्ति ही कर रहा है। ऐसे में महोबा में हो रहे अवैध खनन के चलते यहां से पहाड़ों का वजूद मिटता जा रहा है। यूं तो बुंदेलखंड के सभी जनपदों में खनन कार्य होता रहता है। जालौन, हमीरपुर, बांदा और चित्रकूट में नदियों का सीना चीरकर खनन किया जाता है। पहाड़ों पर हो रहे खनन में सत्ता पक्ष के लोगों के शामिल होने की बात भी लोग दबी जुबान में बता रहे हैं। लेकिन कोई भी खुलकर बोलने से डरता है। एक आंकड़े की बात करें तो एक वर्ष में तकरीबन आधा सैकड़ा मजदूरों की मौतें हो जाती हैं। ये वो मौतें है जिनका न तो कोई मुकदमा होता है और न ही इनके परिवार को पहाड़ धारकों द्वारा उचित मुआवजा दिया जाता है। बस दबाव से मामले शांत हो जाते है। यही हाल रहा तो पहाड़ों का नामों-निशान भी मिट जाएगा। महोबा की पत्थर मंडी में पहाड़ पट्टेधारक खादी और खाकी से गठजोड़ कर पहाड़ों को निस्तनाबूद कर रहे हैं।
पहाड़ों पर जारी है अवैध खनन
महोबा में तकरीबन दो सैकड़ा पहाड़ हैं जिनमें खनन कार्य मनको के विपरीत जारी है। समाजसेवी संगठन और जानकार पहाड़ों पर हो रहे खनन को घटक बताते हैं और इसके दुष्परिणाम होने की बात कहते हैं लेकिन इन चेतावनियों से परे शासन और प्रशासन इस अवैध कारोबार पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। पहाड़ों पर खनन और क्रेशर से उठती डस्ट खेतों को बंजर कर रही है। वहीं दूसरी तरफ बालू में शासन-प्रशासन की सख्ती से बालू की दरों में बढ़ोत्तरी हुई है। घाटों के पट्टे ई-टेंडरिंग होने से इस पर लगाम तो लगी है मगर कई स्थानों से चोरी छिपे बालू डंप की जा रही है। नतीजन बालू के दाम आसमान छू रहे हैं। एक वर्ष पूर्व ट्राली भरी बालू 1700 रुपए तक की मिल जाती थी आज वह 3500 की भी बमुश्किल मिल पा रही है। आम आदमी सहित सरकारी काम और ठेकेदार भी इस समस्या से परेशान हैं। महोबा की गिट्टी उद्योग नगरी कबरई से प्रतिदिन हजारों की तादात में ट्रकों से गिट्टी प्रदेश के अन्य जिलों में पहुंचाई जाती है। वर्तमान में महोबा जिले में गिट्टी के 85 व मोरंग का एक वैध पट्टा संचालित है। लेकिन जिले में कबरई और उसके आसपास के क्षेत्रों में गिट्टी के लिए सैकड़ों की तादाद में पहाड़ों पर अवैध ब्लास्टिंग कर माइनिंग की जाती है। तो वहीं बालू माफियाओं द्वारा पूरी रात अवैध बालू का खनन किया जाता है। खास बात तो यह है कि चंद्रावल बांध के लिए पूर्व सरकार में 19 खदानों को बंद करने के आदेशों के बावजूद भी इन खदानों में चोरी छिपे खनन हो रहा है। सत्ता की हनक और शासन में ऊंची पकड़ रखने वाले अवैध खनन व्यावसायियों पर कहीं न कहीं प्रशासन को भी नतमस्तक होना पड़ता है। कहीं न कहीं इस तरह के लोग सरकार की छवि धूमिल करने में लगे हुए हैं।
- सिद्धार्थ पांडे