इस माह के समाप्त होते ही मध्यप्रदेश में रेत का संकट बढऩा तय है। इसकी बड़ी वजह है 31 मार्च को प्रदेश की करीब एक सैकड़ा रेत खदानों का बंद हो जाना। इन खदानों का अनुबंध 31 मार्च को समाप्त हो रहा है। अनुबंध समाप्त होने वाली खदानों में से पंचायतों की 70 और खनिज निगम की 30 खदानें शामिल हैं। इधर, सरकार इन बंद होने वाली रेत खदानों के मामले में उहापोह की स्थिति में है, जिसके चलते वह कोई फैसला नहीं ले पा रही है। गौरतलब है कि अभी पंचायतों की 275 खदानों में से मात्र 70 खदानें ही चालू हैं, इसकी वजह शेष खदानों के माइनिंग प्लान और पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिल पाना है। दरअसल, पंचायतों की खदान से रेत उत्खनन के लिए माइनिंग प्लान और पर्यावरण स्वीकृति का भी समय समाप्त हो रहा है। ऐसे में खनिज विभाग पंचायतों की चालू रेत खदानों के दस्तावेजों की भी जांच कर यह पता कर रहा है कि किन खदानों की माइनिंग प्लान और पर्यावरण स्वीकृति 31 मार्च के बाद तक हैं, जिससे उन्हें आगे तक चालू रखा जा सके। खनिज विभाग के अफसरों का दावा है कि पंचायत की अन्य 205 खदानों के लंबित माइनिंग प्लान और पर्यावरणीय स्वीकृति 31 मार्च से पहले करवाने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे बंद होने वाली पंचायतों की खदान के साथ दूसरी पंचायत की खदानें शुरू की जा सकें।
नई खनिज नीति में 43 में से 41 जिलों में रेत के नए ठेके हुए हैं। उज्जैन और आगर-मालवा जिले की रेत खदानों के लिए ठेकेदार आगे नहीं आ रहे हैं। इसी तरह से होशंगाबाद, मंडला और अशोकनगर जिले के ठेके शासन स्तर पर विचाराधीन हैं। इधर विभाग ने कटनी, देवास, हरदा, बैतूल, भिंड, बालाघाट, पन्ना और जबलपुर जिले की करीब 100 खदानों के माइनिंग प्लान स्वीकृत कर दिए हैं। इसके साथ ही विभाग ने कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि जिन जिलों की खदानें ठेकेदारों को आवंटित की जा रही हैं, उन जिलों की खदानों को पंचायतों से वापस लेकर ठेकेदारों के नाम ट्रांसफर कर दिया जाए।
दो माह में महज चार जिलों की रेत खदानों का ही खनिज निगम ठेकेदारों से अनुबंध कर सका है। इनमें शिवपुरी, सीहोर, भिंड और कटनी शामिल है। यह खदानें पंचायतों से लेकर ठेकेदारों को दे दी गई हैं। इन खदानों का माइनिंग प्लान और पर्यावरण की स्वीकृति पहले से है। इनकी ठेकेदारों के जरिए ईटीपी जनरेट कर रेत की बिक्री भी शुरू कर दी गई है। खनिज निगम ने विभाग से पंचायतों के जरिए संचालित खदानों के रेत उत्खनन की जानकारी मांगी है। क्योंकि इन खदानों से उतनी ही रेत निकालने के लिए ठेकेदारों को अनुमति दी जाएगी, जितनी खदान के वार्षिक माइनिंग प्लान में स्वीकृत मात्रा है। जिन रेत खदानों के माइनिंग प्लान में इस वर्ष रेत निकालने की मात्रा समाप्त हो गई है उन ठेकेदारों को रेत निकालने की अनुमति नहीं दी जाएगी। खनिज निगम एक ठेकेदार के मात्र दस कर्मचारियों को ही ओटीपी जनरेट करने की अनुमति देगा। इसी तरह से ठेकेदार एक ओटीपी जनरेट कर मात्र दस खदानों की ही रेत बेच सकेगा। इसके अलावा रेत चोरी रोकने के लिए ठेेकेदार नाके लगा सकेंगे। ठेकेदार अवैध रेत परिवहन करने वाले वाहनों की सूचना पुलिस और खनिज अधिकारियों को देंगे, वे अपने स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगे। गौरतलब है कि अवैध उत्खनन के मामले में मध्यप्रदेश देश के दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर उत्तरप्रदेश है। जबकि अवैध उत्खनन पर कार्रवाई करने और वसूली करने में मामले में मप्र देश में पहले नंबर पर है। गौड़ खनिज में सबसे ज्यादा रेत के अवैध उत्खनन के मामले दर्ज किए गए हैं। रेत उत्खनन को रोकने के लिए खनिज विभाग के पास न तो अमला है और न ही कोई अलग से सुरक्षा व्यवस्था है। खनिज विभाग में मैदानी अमले की भारी कमी है। प्रदेश में बढ़ रहे खनन कारोबार और अवैध उत्खनन को लेकर विभाग ने अफसर से लेकर सुरक्षाकर्मियों तक के करीब 500 पद सरकार से मांगे हैं। हालांकि खनन के मामले बढऩे के पीछे विभाग के आला अधिकारी वर्ष 2018 की रेत नीति को मान रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि पंचायतों को रेत खदान देने से अवैध उत्खनन के मामले प्रदेश में बढ़े हैं। अब नई रेत नीति 2019 पूरी तरह से मूर्तरूप ले लेगी वैसे ही उत्खनन के मामले रुकेंगे। यह खुलासा भारतीय खान ब्यूरो (आईबीएम) की ताजा रिपोर्ट से हुआ है।
भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार मध्यप्रदेश में तीन साल में लगातार अवैध उत्खनन के मामले बढ़े हैं। इसमें सबसे ज्यादा उत्खनन के मामले रेत और गिट्टी के हैं। प्रदेश में प्रतिवर्ष करीब 1300 मामले बढ़ रहे हैं। कई जिले ऐेसे हैं जहां विभाग सिर्फ खनिज इंस्पेक्टरों के भरोसे ही अवैध उत्खनन रोक रहा है। खनन माफिया से मुकाबला करने के लिए विभाग ने इन अधिकारियों को खटारा गाड़ी दे रखी है। इन वाहनों पर जब तक वे दो होमगार्ड के जवानों को लेकर जाते हैं तब तक तो खनन माफिया मौके से भाग जाते हैं। इसके चलते अक्सर यह देखने में आता है अधिकारी बड़ी कार्रवाई से पीछे हटने लगते हैं। क्योंकि कई बार खनिज अधिकारियों पर भी खनन माफिया के लोग हमला कर चुके हैं।
अवैध उत्खनन की सबसे ज्यादा वसूली प्रदेश में
अवैध उत्खनन के मामले में सबसे ज्यादा 1600 करोड़ रुपए की वसूली मप्र में की गई है। जबकि सबसे ज्यादा अवैध उत्खनन के मामले उप्र में दर्ज किए गए हैं। वसूली के मामले में महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर था, जहां 700 करोड़ की वसूली की गई है। वहीं अवैध उत्खनन और वसूली के मामले में तीसरे नंबर पर उप्र है। प्रदेश में अवैध उत्खनन से न्यायालयीन मामले भी बढ़ रहे हैं। पिछले साल जहां न्यायालयीन मामलों की संख्या 25 हजार के करीब थी, वहीं अब यह बढक़र 26 हजार से पास पहुंच गई है। विभाग के अधिकारियों और पुलिस विभाग की संयुक्त कार्रवाई में तीन साल के अंदर लगभग ढ़ाई हजार वाहनों को जब्त किया गया है। आईबीएम की रिपोर्ट के अनुसार पूरे प्रदेश में अवैध उत्खनन पिछले साल की तुलना में कम हुआ है। गत वर्ष जहां रेत सहित अन्य गौड़ खनिजों के अवैध उत्खनन के मामले पूरे देश में 1,16,198 दर्ज किए गए थे, वहीं अब ये घटकर 1,15,492 हो गए हैं, इसमें करीब 700 मामलों की कमी आई है। जबकि प्रदेश में अवैध उत्खनन के मामले वर्ष 2018 में 15,205 थे, जो बढक़र 2019 में 16,405 हो गए हैं।
- राजेश बोरकर