मप्र में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के शासनकाल में आदिवासियों के विकास के बड़े-बड़े दावे किए गए, लेकिन सारे दावे कागजी निकले हैं। क्योंकि प्रदेश और केंद्र सरकार की अधिकांश योजनाओं का फायदा आदिवासियों को नहीं मिल पाता है। इसका अंदाजा डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) की परफॉर्मेंस से लगाया जा सकता है। मप्र में आदिवासियों के उत्थान के लिए पिछले 4 साल में डीएमएफ ने 2795.39 करोड़ रुपए को संचय किया है, लेकिन उसमें से केवल 1812.71 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाए हैं। बाकी राशि पर अफसर कुंडली मारकर बैठे हैं।
गौरतलब है कि खनिज समृद्ध जिलों में निवासरत आदिवासियों के उत्थान के लिए केंद्र सरकार ने जिला खनिज फाउंडेशन यानी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) की स्थापना की है। नियमानुसार, डीएमएफ फंड पेयजल, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण, आजीविका के साधन इत्यादि में कम से कम 60 प्रतिशत खर्च किया जाना चाहिए। लेकिन प्रदेश की पूर्ववर्ती शिवराज सिंह चौहान सरकार और स्थानीय प्रशासन की वजह से इस फाउंडेशन का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल पाया। उल्लेखनीय है कि मप्र के 22 जिलों में कोयला, आयरन, बाक्साइड की मुख्य खदानें हैं। इससे प्रदेश को हर साल करीब 600 करोड़ रुपए तक मिलता है। इसमें कुछ राशि राज्य निधि में जमा होती है और कुछ राशि डीएमएफ में जमा की जाती है। वर्ष 2015 से लेकर 2019 तक 22 जिलों को खनिज रॉयल्टी से करीब 2795.39 करोड़ रुपए मिले हैं। इसमें से केवल 1812.71 करोड़ का उपयोग जिलों के विकास कार्यों के लिए कर पाए हैं। वहीं 982.68 करोड़ रुपए बेकार पड़े हैं।
गौरतलब है कि मार्च 2015 में भारत के केंद्रीय खनन कानून, द माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) या एमएमडीआर एक्ट (1957) में संशोधन कर डीएमएफ की स्थापना की गई। देश के सभी खनन जिलों में डीएमएफ एक गैर लाभकारी ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है। इसका स्पष्ट उद्देश्य है-खनन संबंधित कार्यों से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के हित और लाभ के लिए काम करना। डीएमएफ ट्रस्ट के लिए खननकर्ता (माइनर्स) पैसा देते हैं। यह राशि 2015 संशोधन से पहले दिए गए पट्टे के लिए रॉयल्टी राशि के 30 प्रतिशत के बराबर है और इसके बाद की लीज के लिए 10 प्रतिशत है।
सूत्रों के अनुसार, डीएमएफ की राशि को खर्च करने के लिए कलेक्टरों को प्लान तैयार कर खनिज विभाग से इस प्लान को स्वीकृत कराना होता है। 22 जिलों में से 16 जिलों में कुछ न कुछ राशि खर्च की गई है, लेकिन छतरपुर, झाबुआ, ग्वालियर, नरसिंहपुर, सागर, अलीराजपुर तो ऐसे जिले हैं, जहां एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है। सूत्र बताते हैं कि पूर्ववर्ती सरकार ने शासन स्तर पर कभी भी डीएमएफ की राशि का संज्ञान नहीं लिया। कलेक्टरों ने अपने विवेक के अनुसार उक्त राशि खनिज विभाग से लेकर खर्च की। बताया जाता है कि वर्तमान सरकार ने जिलों से डीएमएफ की रिपोर्ट तलब की है।
मप्र के जिन जिलों में कोयला, आयरन, बाक्साइड की मुख्य खदानें हैं उनमें से सिंगरौली को सबसे अधिक 1712 करोड़़ रुपए की डीएमएफ राशि मिली है। इसके अलावा अनूपपुर को 289 करोड़़, सतना को 221 करोड़़, छिंदवाड़ा को 81 करोड़़, बालाघाट को 76 करोड़़, शहडोल को 72 करोड़़, कटनी को 70 करोड़़, बैतूल को 62 करोड़़, उमरिया को 51 करोड़़ और दमोह को 39 करोड़़ रुपए मिल हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक खनिज निधि की जिस राशि का उपयोग आदिवासियों पर हुआ है उसमें से 33 फीसदी राशि उनके उत्थान और उनके क्षेत्रों में किए गए कार्यों पर हुई। इसके बाद 24 फीसदी राशि शिक्षा पर खर्च की गई है, जबकि 21 फीसदी रशि स्वास्थ्य पर खर्च की गई है।
प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल और पोषण की स्थिति सबसे खराब है। ऐसा तब है जब ये क्षेत्र उच्च खनन राजस्व पैदा करते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के अनुसार, प्रदेश के सिंगरौली में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर बहुत है। इस आयु वर्ग के बच्चों में स्टंटिंग (लंबाई न बढऩा) और कम वजन होना सामान्य है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस समस्या के निदान के लिए डीएमएफ के फंड का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सूत्रों के अनुसार, डीएमएफ का क्रियान्वयन आम सरकारी योजना की तरह किया जा रहा है, जहां शीर्ष स्तर पर बैठे उच्च अधिकारी निवेश को नियंत्रित कर रहे हैं। डीएमएफ प्रशासन को ऊपर से नीचे की तरफ नियंत्रित किया जा रहा है, जबकि नियंत्रण का स्तर नीचे से ऊपर की तरफ होना चाहिए था। मध्य प्रदेश ने राज्य खनिज निधि (स्टेट मिनरल फंड-एसएमएफ) की स्थापना की है। स्टेट मिनरल फंड में जिले अपने डीएमएफ संग्रह का एक निश्चित अनुपात में योगदान देंगे। फिर, राज्य सरकार का वित्त विभाग उन कार्यों को तय करेगा, जहां इस फंड का उपयोग किया जाना है। सिंगरौली जैसा कोयला खनन जिला, एसएमएफ में अपने डीएमएफ शेयर का 50 प्रतिशत का योगदान दे रहा है। लेकिन देश में इस जिले के आदिवासी सबसे अधिक बेहाल हैं।
क्या सबकुछ ठीक चल रहा है?
कानूनी उद्देश्य के अनुसार, डीएमएफ फंड का उचित उपयोग करने के लिए कुछ बुनियादी चीजों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। चूंकि यह फंड विशिष्ट लाभार्थियों (जो खनन प्रभावित लोग हैं) के लिए लक्षित है, इसलिए सबसे पहले उनकी पहचान की जानी चाहिए। साथ ही साथ खनन से सबसे अधिक प्रभावित इलाके जिन्हें कानून ने प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित माना है, उनकी पहचान होनी चाहिए। सही तरीके से काम करने के लिए डीएमएफ के लिए उचित प्रशासनिक सेट-अप की आवश्यकता है। इसका मतलब है कि हर जिले में डीएमएफ का एक कार्यालय होना जरूरी है जिसमें कर्मचारी और विशेषज्ञों द्वारा योजना बनाने, खातों और अभिलेखों का रखरखाव, रिपोर्ट तैयार करने, सूचना साझा करने आदि किया जा सके। कानून के अनुसार, प्रत्येक जिले में डीएमएफ को खनन प्रभावित लोगों (ग्राम सभा के माध्यम से) के साथ जुडऩा चाहिए, ताकि उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप निवेश हो सके। देश के टॉप 12 खनन राज्यों के डीएमएफ प्रबंधन का विश्लेषण करने और पांच राज्यों के टॉप 13 खनन जिलों में डीएमएफ के फंड के उपयोग का आंकलन करने के बाद यह पाया गया कि न केवल ग्रामसभा से परामर्श बल्कि खनन प्रभावित लोगों को डीएमएफ और उसकी भूमिका के बारे में जागरूक करने के लिए भी कुछ नहीं किया गया है। लोगों को डीएमएफ की जानकारी न के बराबर है। यहां तक कि पीआरआई (पंचायती राज संस्थाओं) के सदस्यों, जो जिलों में डीएमएफ निकाय का हिस्सा हैं, ने सीएसई को बताया कि उन्हें फंड और अपनी शक्तियों से अवगत नहीं कराया गया है।
- विकास दुबे