प्रदेश में 15 अप्रैल से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी शुरू हो गई है। करीब 5 हजार से अधिक उपार्जन केंद्रों पर गेहूं की खरीदी की जा रही है। लेकिन इन केंद्रों पर यह भी देखने में आ रहा है कि बड़ी संख्या में किसान सहकारी समितियों को गेहूं बेचने की बजाय व्यापारियों को बेच रहे हैं, वह भी उधारी पर। किसानों का कहना है कि किसानों को गेहूं बेचने से उन्हें तत्काल जरूरत की राशि मिल जाती है। भले ही बाकी राशि के लिए उन्हें 15 से 20 दिन का इंतजार करना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ स्थिति यह है कि व्यापारियों को जो किसान अपना गेहूं बेच रहे हैं व्यापारी उनकी फसल का रेट स्वयं तय कर रहे हैं। जबकि समर्थन मूल्य पर गेहूं की दर 1925 रुपए प्रति क्विंटल है।
किसानों से मिली जानकारी के अनुसार व्यापारी अनाज खरीदने के बाद किसान को कुछ राशि देकर एक पर्ची पर बकाया राशि लिखकर दे रहे हैं। व्यापारियों द्वारा बकाया राशि का भुगतान 10 से 20 दिन बाद करने को कहा जा रहा है, लेकिन सैकड़ों किसानों की शिकायत यह है कि नियत तिथि गुजर जाने के बाद भी उनकी बकाया राशि का भुगतान नहीं हो पाया है। किसानों को यह डर सता रहा है कि लॉकडाउन के कारण आई आर्थिक मंदी के चलते उनका पैसा व्यापारियों के पास ही अटककर न रह जाए। अधिकारियों के अनुसार नियमानुसार खरीदी के बाद तत्काल किसान को भुगतान किया जाना चाहिए। इससे बचने के लिए अनाज व्यापारी किसानों के हस्ताक्षर वाले भुगतान दर्शाने वाले प्रपत्र रोजाना समर्थन मूल्य खरीदी कार्यालय में प्रतिदिन जमा करा देते हैं। इससे किसान को भुगतान किया जाना साबित हो जाता है। नियमों को ताक पर रखकर उधारी में खरीदी जा रही उपज को लेकर किसानों को अधिक परेशानी होती है। इससे उन्हें जरूरी काम होने पर ब्याज से राशि लेकर अपना काम चलाना होता है। इस प्रक्रिया में उधारी और देरी से भुगतान के साथ यह भी समस्या है कि किसान को कई दिनों तक व्यापारी द्वारा दी गई पर्ची तो संभालकर रखनी पड़ती है। वहीं वैधानिक तौर पर इस पर्ची की कोई मान्यता भी नहीं है। उसके बाद भी व्यापारियों पर भरोसा कर किसान उन्हें लाखों रुपए कीमत का अनाज उधारी में ही बेचकर चले जाते हैं। इससे पैसों की जरूरत होने के बाद भी किसान को समय पर अपनी उपज का पैसा नहीं मिल पाता।
कृषि उपज मंडी में अनाज खरीदने वाले व्यापारियों को आवश्यक है कि वे अनाज खरीदने वाले दिन ही मंडी प्रांगण में किसानों को उनकी उपज के मूल्य का भुगतान करें। यदि ऐसा नहीं करते तो प्रतिदिन एक फीसदी ब्याज के साथ पांच दिन के अंदर भुगतान कर देना चाहिए। यदि अनाज व्यापारी पांच दिन में भी किसान को भुगतान नहीं कर रहा तो कृषि उपज मंडी एक्ट के अधिनियम की धारा 37(2) के तहत सचिव छठवें दिन ही उनका लायसेंस निलंबित कर सकता है। कृषि उपज मंडी रायसेन में व्यापारियों ने अपने हितों के मुताबिक नियम बना लिए हैं। वे कागजों की औपचारिकता पूरी कर देते हैं। इसके लिए भुगतान की रसीद पर किसानों के दस्तखत तक करा लिए जाते हैं। भुगतान के प्रपत्र मंडी समिति में प्रतिदिन जमा करा दिए जाते हैं। किसान को रुपए बाद में मिलते हैं।
किसानों का कहना है कि उनके ऊपर कई तरह के कर्ज हैं। उन्हें चुकाने के लिए व्यापारियों को उपज बेचनी पड़ रही है। किसान कहते हैं कि अपनी फसल बेचकर हम व्यापारी से जरूरत की राशि तत्काल ले लेते हैं और बाकी बाद में। खरीफ फसलों के लिए लगभग 17 लाख किसानों ने साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए कर्ज लिया था। इन किसानों में से अधिकांश ने अपनी उपज को व्यापारियों को बेचा है। ताकि व्यापारियों से मिली रकम से वे बैंक का कर्जा चुकता कर सकें। सहकारी बैंकों के अधिकारियों का कहना है कि यदि कर्ज चुकाने की अंतिम तारीख नहीं बढ़ाई जाती है तो किसान डिफाल्टर हो जाएंगे और उन्हें आगामी सीजन के लिए कर्ज नहीं मिलेगा। ऐसा पहले भी हो चुका है और इसके कारण 12 लाख से ज्यादा किसान डिफाल्टर की श्रेणी में आ गए थे।
उधर, आरोप यह भी लग रहे हैं कि समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी में भेदभाव किया जा रहा है। किसानों का कहना है कि जिन जिलों के जनप्रतिनिधियों का दबदबा है वहां के किसानों का हल्की क्वालिटी (चमक विहीन) का गेहूं भी खरीदा जा रहा है। विदिशा, बैतूल, सागर और छतरपुर जिले के किसानों का हर प्रकार का गेहूं खरीदा जा रहा है और श्योपुर जिले में गेहूं के सैंपल फेल होने का विरोध करने पर किसान को डंडे खाने पड़ रहे हैं। जिन जिलों में सरकार चमक विहीन गेहूं खरीद रही है वहां किसानों को मामूली से अंतर का कम भाव मिल रहा है। समर्थन मूल्य पर एक क्विंटल गेहूं 1925 रुपए में खरीदा जा रहा है। चमक विहीन गेहूं वाले किसानों को 1920 रुपए 10 पैसे क्विंटल के हिसाब से भुगतान दिया जा रहा है। यानी अच्छी गुणवत्ता वाले गेहूं की तुलना में मात्र 4 रुपए 90 पैसे प्रति क्विंटल कम मिलेगा पर, सरकार चाहे तो किसानों का गेहूं खरीद सकती है।
कम भाव में गेहूं बेचने को मजबूर किसान
लॉकडाउन की वजह से किसान अपने जिले से बाहर की मंडियों में गेहूं, चना और धनिया बेचने नहीं जा पा रहा है। मजबूरी में किसानों को गेहूं समर्थन मूल्य से 250-300 रुपए प्रति क्विंटल रुपए कम और चना 700 रुपए प्रति क्विंटल कम भाव पर मंडी में बेचना पड़ रहा है। जिस गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपए प्रति क्विंटल है वह 1625 से 1750 रुपए प्रति क्विंटल तक यानी 250 से 300 रुपए प्रति क्विंटल तक और जिस चने का समर्थन मूल्य 4400 रुपए प्रति क्विंटल है वह महज 3700 से 3800 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से ही खरीदा जा रहा है। उधर, अधिकारियों का कहना है कि व्यापारी सौदा पत्रक के आधार पर खरीदी करा रहे हैं। सौदा पत्रक में किसान की सहमति के बाद ही समर्थन मूल्य से कम दर पर खरीदी हो रही है, ताकि बाद में किसी तरह से विवाद की आशंका न रहे।
- श्यामसिंह सिकरवार