राजनीति की माया ही ऐसी है कि वह अच्छे-अच्छों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यही कारण है कि हर विधा के लोगों की मंशा रहती है कि वह राजनीति में आएं। अभी तक रणनीतिकार के रूप में ख्यात पीके भी राजनीति में उतर गए हैं।
प्रशांत किशोर का नाम आज देश के सभी दिग्गज नेताओं की जुबान पर है। प्रॉफेशनल प्रमोटर से राजनीतिक सितारे बने पीके असल में किसके साथ हैं, किसी को नहीं पता चलता। वो हर चुनाव में किसी नए चेहरे के साथ होते हैं। पीके चुनाव जीतने की रणनीति को टॉप गीयर में डालते हैं, चुनाव जिताते हैं और वहां से विदा होकर किसी ओर चुनाव में किसी और चेहरे के साथ नजर आते हैं। एक मायने में पीके विशुद्ध रूप से व्यावसायिक यानि प्रॉफेशनल हैं। वो किसी भी विचार, विचारधारा या राजनीतिक दल के साथ नहीं हैं। इसलिए प्रशांत हर बार नए अंदाज में किसी नई जगह पर किसी नए साथी के साथ कुछ नया बुन रहे होते हैं।
पिछले कई चुनावों में कई राजनीतिक दलों के साथ खड़े होकर माहिर राजनीतिज्ञों को चाणक्य अंदाज में सत्ता तक पहुंचने के गुर सिखाने वाले प्रशांत किशोर को किसी राजनीतिक जमीन की जरूरत महसूस नहीं होती। शायद इसलिए ही जब जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर को पार्टी से निकाला गया तो जवाब में उन्होंने नीतीश कुमार को धन्यवाद कहकर जता दिया कि वो अपने सफर में किसी की जरूरत महसूस नहीं करते हैं। वो ऐसे कथानक हैं, जो खुद की और दूसरों की स्क्रिप्ट खुद लिखते हैं। यानि एक रणनीतिकार के रूप में वो उस मुकाम पर खड़े हैं, जहां उन्हें किसी की नहीं बल्कि दूसरों को उनकी खासी जरूरत है।
प्रशांत किशोर कभी भाजपा, कभी कांग्रेस, कभी जदयू, कभी दक्षिण की पार्टियों के साथ नजर आते रहे हैं तो अब वो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ खड़े हैं। किशोर ने उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, आंध्र प्रदेश और पंजाब सहित कई राज्यों के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय राजनीति में प्रवेश करने से पहले प्रशांत ने 8 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया। 2011 में प्रशांत किशोर नौकरी छोड़ वतन लौट आए।
एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर ने 2011 में गुजरात में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार सरकार बनवाने में मुख्य भूमिका निभाई। प्रशांत स्वतंत्र रूप से काम करते हुए भाजपा या गुजरात सरकार में किसी भी कार्यालय को पकड़े बिना भाजपा के चुनाव-पूर्व अभियान में प्रमुख रणनीतिकारों में से एक बन गए। 2014 के आम चुनाव से पहले उन्होंने चुनाव की तैयारी के लिए एक मीडिया और प्रचार कंपनी का निर्माण किया। इस दौरान प्रशांत किशोर ने अभिनव विज्ञापन अभियान बनाए। उन्होंने नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए चाय पे चर्चा, 3डी रैली, रन फॉर यूनिटी, मंथन और सोशल मीडिया कार्यक्रम रखकर भाजपा के विचार को तेजी से जनता तक पहुंचाया।
2014 के लोकसभा चुनाव ने प्रशांत किशोर को देश के सामने असली पहचान दी। देश का हर दल उनके भाजपा के लिए चुनाव में किए गए काम से प्रभावित हुआ। लोगों से जुड़ाव के लिए शुरू किया गया चुनावी कैंपेन 'चाय पर चर्चाÓ प्रशांत किशोर का ऐसा आइडिया था जिसने मोदी की छवि को जनता के मध्य एक आम तबके के इंसान की बनाई। 2014 के चुनाव में सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी प्रशांत की ही देन थी।
हालांकि चुनाव के बाद अमित शाह से विवाद के बाद प्रशांत किशोर भाजपा के चुनावी अभियान से अलग हो गए। इसके बाद पीके 2015 में नीतीश कुमार के साथ जुड़े और बिहार चुनाव में जेडीयू-कांग्रेस-राजद के चुनावी अभियान का कार्य संभाला। ऐसा माना जाता है कि एक-दूसरे के धुर विरोधी जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस का महागठबंधन बनवाने में भी पीके की अहम भूमिका रही।
नीतीश कुमार का जनसंपर्क अभियान 'हर-घर दस्तकÓ कार्यक्रम प्रशांत किशोर की तरफ से लॉन्च किया गया था ताकि चुनाव प्रचार में नीतीश आखिरी व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचा सकें। इसी चुनाव में उनका दिया गया नारा 'बिहार में बहार है, नीतीश कुमार हैÓ पूरे बिहार में हिट हुआ। इस नारे के पीछे भी प्रशांत किशोर का ही दिमाग था। नतीजा यह हुआ कि यहां भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही प्रशांत किशोर का सक्रिय राजनीति में भी पदार्पण हो गया और नीतीश ने पीके को जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। यहीं से पीके को राजनीति का ऐसा चस्का लगा कि वे रणनीतिकार से अब राजनेता बन गए हैं। अब देखना यह है कि वे कितना सफल होते हैं।
पीके के पास अभी भी कई ऑफर
इस बार प्रशांत किशोर दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के साथ खड़े थे, और पूरी-पूरी संभावना भी जताई जा रही थी कि यहां भी केजरीवाल के विकास कार्ड के साथ पीके का जादू चलेगा। सो दिल्ली में आपकी दोबारा सरकार बन गई। अब भले ही पीके ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू कर दी है, लेकिन अभी भी उनके पास कई पार्टियों से चुनावी रणनीति बनाने के लिए ऑफर आ रहे हैं। ताजा खबर के अनुसार बिहार की प्रमुख और लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने उन्हें पार्टी में आने न्यौता दिया है। राजद नेता और लालू यादव के बड़े सुपुत्र तेजप्रताप ने उन्हें पार्टी में आने का खुला निमंत्रण दिया है। पीके राजद में शामिल होंगे या नहीं, वो दूर की बात है लेकिन तेजप्रताप के बयान के बाद ही पार्टी में पीके को लेकर दो धड़े बन गए हैं। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने प्रशांत किशोर की तुलना नाली में रहने वाले कीड़े से कर दी, हालांकि तेजस्वी यादव ने जगदानंद को फटकार लगा दी है।
- ऋतेन्द्र माथुर