मध्यप्रदेश का वन क्षेत्र देश में सबसे बड़ा है। इस प्रदेश को हरा-भरा बनाने के लिए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने रिकार्डतोड़ पौधरोपण कराया था। लेकिन हकीकत यह है कि ये पौधरोपण केवल कागजों तक ही सीमित रहे...
गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड के लिए ढाई साल पहले रोपे गए 6 करोड़ पौधों की स्थिति बेहद खराब है। 50 फीसदी पौधे पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। यह हाल प्रदेशभर में लगाए पौधों का सामने आया है। अब वन विभाग ने 200 वनकर्मियों से स्पष्टीकरण मांगा है। विभाग की सख्ती के चलते वनकर्मियों ने वसूली का विरोध शुरू कर दिया है। दरअसल 2 जुलाई 2017 को तत्कालीन भाजपा सरकार ने पूरे प्रदेशभर में 6 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा था। गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने के लिए महज एक दिन में ये पौधे लगाए गए। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, धार, आलीराजपुर, रतलाम, मंदसौर, नीमच, झाबुआ, खंडवा, खरगोन समेत अन्य वनमंडल में वनक्षेत्र के हिसाब से लक्ष्य रखा था।
गौरतलब है कि प्रदेश में सरकार बदलते ही नई सरकार ने इनकी गिनती कराने का निर्णय लिया। वन मंत्री उमंग सिंघार ने मई 2019 में जहां पौधे रोपे वहां का निरीक्षण करने का आदेश दिया। प्रत्येक वनमंडल में अलग-अलग टीम के अधिकारियों ने दौरा कर वन विभाग मुख्यालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। छह महीने में काम पूरा हुआ। सूत्रों के मुताबिक, अधिकांश जगह टीम ने पौधे नष्ट होना, बराबर विकसित नहीं होना और पौधारोपण में गड़बड़ी का जिक्र रिपोर्ट में किया है। वन मुख्यालय से वसूली का आदेश दिया है। अब वनकर्मियों से स्पष्टीकरण मांगा है। इसके बाद पौधरोपण को लेकर हुए नुकसान का आंकलन किया जाएगा। इसके आधार पर वसूली निकाली जाएगी।
मध्यप्रदेश में सरकार से हटने के बाद शिवराज सरकार के दौरान हुए कारनामे एक-एक कर सामने आ रहे हैं। अब ताजा मामला शिवराज सरकार द्वारा करोड़ों पौधे लगाने का दावा कर पौधरोपण में गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने का है। शिवराज सरकार में हुए इस कारनामे की पोल मध्यप्रदेश के वन मंत्री उमंग सिंघार ने खोल दी है। इस मामले में वन विभाग के कई अधिकारी और कर्मचारी जद में आ गए हैं, जिन पर कार्रवाई हुई है। बता दें कि शिवराज सरकार ने जुलाई 2017 में मध्यप्रदेश स्थित बैतूल वन क्षेत्र के शाहपुर रेंज की पाठई बीट में कक्ष संख्या 227 में रिकॉर्ड पौधरोपण का दावा कर वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराकर खूब वाहवाही लूटी थी। कांग्रेस द्वारा इतने बड़े पैमाने पर पौधरोपण के दावे को शुरुआत से ही फर्जी करार दिया जा रहा था। इसके बाद जब राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ तो कांग्रेस सरकार के वन मंत्री उमंग सिंघार ने इसकी जांच-पड़ताल शुरू करते हुए अधिकारियों से रिपोर्ट तलब कर दी। अधिकारियों ने रिपोर्ट में कई पेड़ों के गिरने का दावा किया। जिसके बाद वन मंत्री सिंघार अचानक 26 जून को बैतूल पहुंच गए। अधिकारियों के साथ यहां उन्होंने भौतिक सत्यापन किया, जिसमें अधिकारियों और शिवराज सरकार की पोल खुल गई। इसके बाद दो डीएफओ समेत आठ वनकर्मियों पर गाज गिर गई है।
वन मंत्री उमंग सिंघार ने बताया कि यह शिवराज सरकार का एक बड़ा घोटाला है। जो रिपोर्ट मुख्यालय भेजी गई थी उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। यहां आकर भौतिक सत्यापन में पांच टीमों का गठन कर पौधों के गणना कक्ष में पौधों की गणना की गई। रिपोर्ट में पाया गया कि पूर्व सरकार की रिपोर्ट में 15,625 पौधे लगाने की बात है, लेकिन गड्ढे केवल 9,375 ही खोदे गए। और उसमें से भी गणना में मात्र 2,343 यानी 15 फीसदी पौधे ही जीवित मिले।
वन मंत्री ने बताया कि पूरे मामले में जिन अधिकारियों-कर्मचारियों की लापरवाही सामने आई है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2019 की रिपोर्ट जारी कर दी गई है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदेश के 50 जिलों में से 25 में वनक्षेत्र दो साल में कम हुआ और 25 में बढ़ा है। सबसे ज्यादा जंगल सीहोर जिले में कटे हैं। जंगल कटने की सूची में वनमंत्री उमंग सिंघार का गृहजिला धार भी शामिल है। वहीं पन्ना में सबसे ज्यादा वनक्षेत्र बढ़ा है। उज्जैन ऐसा जिला है जहां कुल क्षेत्रफल का एक प्रतिशत भी जंगल नहीं है। यहां जंगल सिर्फ 0.59 प्रतिशत जमीन पर है। 10 जिलों में वनक्षेत्र 10 प्रतिशत से कम है और 17 में 20 प्रतिशत से कम। सिर्फ 2 जिलों में 50 प्रतिशत से ज्यादा। ये दो जिले बालाघाट और श्योपुर हैं। 10 प्रतिशत से कम वन वाले जिलों में झाबुआ भी शामिल है। 35 प्रतिशत से ज्यादा जंगल वाले जिले मात्र 10 हैं। इसरो के सैटेलाइट से मिले आंकड़ों से ये रिपोर्ट जारी की गई है। इसके पहले साल 2017 में रिपोर्ट आई थी। दो सालों में प्रदेश में 68.49 वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़े हैं। प्रदेश में 25.14 प्रतिशत जंगल है। 2017 में ये 25.11 प्रतिशत थे। 17 जिलों में वेरी डेंस फॉरेस्ट (अधिक घनत्व वाले जंगल) नहीं है। आलीराजपुर और झाबुआ भी इस श्रेणी में रखे गए हैं।
वसूली पर वनकर्मियों ने किया विरोध
प्रदेश में 200 वनकर्मियों पर वसूली निकाली है। इसमें डिप्टी रेंजर, फॉरेस्ट गार्ड और नाकेदार शामिल हैं। वसूली का नोटिस मिलते ही वनकर्मियों ने सामूहिक स्पष्टीकरण देकर अपना विरोध जताया है। वनकर्मियों के मुताबिक, 2 जुलाई 2017 को लगाए पौधों में कुछ की गुणवत्ता ठीक नहीं थी। उस दौरान विभाग के पास महज 4 करोड़ पौधे अप्रैल तक तैयार थे। बाद में आनन-फानन में 3 करोड़ पौधे तैयार किए जो पौधरोपण के हिसाब से उचित नहीं थे। यहां तक मानक स्तर के गड्ढे भी नहीं खोदे गए। पौधे लगाने के ढाई महीने तक बरसात नहीं हुई, जिससे पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिला। इसके चलते वे नष्ट हो गए, जिसमें वनकर्मियों को दोषी बताना गलत है।
- सुनील सिंह