नदी जोडऩे का शिगूफा
05-Dec-2014 08:32 AM 1234882

हाल ही में दिल्ली के विज्ञान भवन में केंद्रीय जनसंसाधन मंत्री उमा भारती की पहल पर 3 दिन तक जल संरक्षण पर चिंतन किया गया। वर्ष 2015-16 को जल-संरक्षण वर्ष मनाने की योजना है, जिसके तहत हमारा जिला हमारा जलÓ अभियान को गांव-गांव तक पहुंचाया जाएगा।

एनडीए सरकार अपने पहले कार्यकाल में भी भारत को पानीदार बनाना चाहती थी, किंतु तब उनका मंसूबा परवान नहीं चढ़ा। इस बार मोदी शीघ्रता से इस मिशन पर काम कर रहे हैं और फाइलों में दबी पड़ी नदी जोड़ो योजना को झाड़-पौंछ कर अमल में लाने की तैयारी है। उमा भारती भी दिल्ली के विज्ञान भवन में जल मंथन के जरिये इस बात पर मंथन करती नजर आईं कि किस तरह नदियों को जोड़कर भारत को पानीदार बनाया जा सकता है। दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जब इस योजना को अमली जामा पहनाने की बात हुई थी, उस वक्त जो बजट अनुमान लगाया गया था उससे कहीं ज्यादा खर्च इस योजना पर होने वाला है, जिसके लिए विदेशी संस्थाओं से भी ऋण लिया जा सकता है। इस योजना के पक्षधर मानते हैं कि इससे बाढ़ जैसी आपदाओं को भी नियंत्रित किया जा सकेगा।
नदी जोड़ो, गंगा सफाई के साथ-साथ 40 अन्य नदियों की सफाई जिनमें जमुना भी शामिल है, सुनने में भली लगती है लेकिन इनकी हकीकत अलग है। यह योजनाएं सफल होंगी तो निश्चित रूप से भारत में स्वच्छ जल की समस्या का प्रभावी समाधान संभव हो सकेगा। किंतु विडम्बना यह है कि इन योजनाओं पर व्यवस्थित शोध सरकार द्वारा नहीं कराई जा रही है। व्यवस्थित शोध में काफी समय लगेगा क्योंकि नदियों को जोडऩे से जो विस्थापन होगा, उसके परिणामों और समाधान पर सरकार को सूक्ष्म विश्लेषण करना होगा।
मध्यप्रदेश में सरकार भले ही विस्थापन को लेेकर अपनी पीठ ठोकती हो, लेकिन सच तो यह है कि सारे प्रदेश में शहरों की तरफ गरीबों का पलायन विस्थापन का ही परिणाम है। नदी के आस-पास की जमीन सदैव उपजाऊ होती है और जंगल भी उतने ही समृद्ध होते हैं। बांधों ने इन उपजाऊ जमीनों और समृद्ध जंगलों को ही लीला है। इसी कारण इन जलमग्न हो चुकी जमीनों से धकियाए गए या खदेड़ दिए गए लोग विस्थापन के बाद ज्यादा मुआवजा और सहायता मिलने के बावजूद अभी गरीब ही हैं। इसीलिए उमा भारती की यह पहल दमदार प्रतीत नहीं हो रही। अमेरिका जैसे देशों में तो कई बांधों को डी कमीशंड किया जा रहा है। उमाश्री जिस अविरल गंगा की बात करती हैं, उस पर बंधे बांधों को हटाए बगैर गंगा अविरल कैसे रह सकती है। रुका पानी तो सड़ जाता है। गंगा में टिहरी के पहले के जल तथा टिहरी से छोडऩे के बाद हरिद्वार में आने वाले जल की गुणवत्ता में पर्याप्त अंतर है।
हरिद्वार में बांध के बाद जो पानी आता है, वह ज्यादा प्रदूषित और बदबूृदार है बल्कि यह जल वर्ष के अधिकांश समय मटमैला रहता है। किंतु यह बहस तो चलती रहेगी। कोई भी सरकार इतनी साहसी नहीं है कि वह उन तमाम बड़े बांधों को हटा दे, जिनके डूब क्षेत्र में उपजाऊ जमीनों के साथ-साथ लोगों का सुख और समृद्धि भी जलप्लावित हो चुकी है। यहां नदियों को जोडऩे की योजना ने पर्यावरण प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि ऐसा कोई भी प्रयास भारत के वन क्षेत्र को सीमित कर देगा। उपजाऊ जमीनें नष्ट हो जाएंगी और जनसंख्या को शहरों की तरफ भागना पड़ेगा। इस चिंता में कुछ अतिश्योक्ति हो सकती है लेकिन यह चिंता निर्मूल नहीं है। पानी के वितरण और प्रबंधन को छोटे स्तर पर परखे बगैर ऐसा कोई भी प्रयास अंतत: नुकसानदायी ही साबित होगा। जहां तक नदियों के सूखने और उनके नष्ट होने का प्रश्न है, इसका कारण जंगलों का कटाव तथा शहरीकरण और औद्योगीकरण है। जमीनें उद्योगों ने लील ली हैं। वे अपना भूमि बैंक बनाकर जमीनों के दाम बढ़ा रहे हैं। नदी जोडऩे का अभियान इस साजिश को तीव्रतर ही करेगा।
उचित जल प्रबंधन हो
तरुण महाराज संघ के राजेंद्र सिंह कहते है कि बड़़ी योजनाएं विस्थापन और गरीबी को जन्म दे सकती है। बेहतर यही होगा कि गांवों और कस्बों को तथा छोटे शहरों को जल वितरण से आत्मनिर्भर बनाया जाए इसका अर्थ यह है कि उन्हें जल के लिए बांध जैसे किसी बड़े स्त्रोत पर निर्भर नहीं होना पड़े। वे वर्षा जल को संचित कर पेयजल, कृषि इत्यादि पूरा कर सकते हैं और आवश्यकता पडऩे पर बिजली भी उपजा सकते हंै, लेकिन सरकार को इच्छाशक्ति दिखानी पड़ेगी।

  • कुमार सुबोध

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^