अवैध खनन से घडिय़ालों पर खतरा
20-Dec-2014 03:42 PM 1234915

एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

सोन नदी के दुर्लभ घडिय़ालों पर खनन माफियाओं के चलते खतरा उत्पन्न होने के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 14 जनवरी को चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन और चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट को तलब किया है। यह पहला मौका नहीं है। सोन नदी में पाए जाने वाले घडिय़ाल चंबल नदी के घडिय़ालों से अलग हैं और इनकी संख्या 400 के करीब बची है, हालांकि कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि ये 20 की संख्या में ही बचे हैं।

सोन नदी जिसका ज्यादातर हिस्सा वर्ष के 6 माह सूखा ही रहता है, अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। रेत खनन करने वाले माफिया ने तो इस नदी और इसके जलीय जीवन को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया ही है, आसपास की कई औद्योगिक इकाईयां भी सोन नदी में बने 418.42 वर्ग किलोमीटर के घडिय़ाल अभ्यारण्य को नष्ट करने पर तुली हुई हैं।
17 दिसंबर 2011 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस बावत रिलायंस पावर चितरंगी, हिंडालको, डीबी पावर फस्र्ट और सेकंड फेज, जेपी निगरी पावर प्लांट और सूर्य चक्र पर जवाबदेही तय की थी। यह जवाबदेही दो आरटीआई कार्यकर्ताओं की याचिका पर तय की गई। लेकिन उसके बाद भी खनन माफिया का आतंक जारी रहा। एनजीटी जानना चाह रही थी कि इन कंपनियों को पर्यावरणीय स्वीकृति देने से पूर्व अभ्यारण्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन किया गया था या नहीं।
एनजीटी ने इस अभ्यारण्य में जोगदहा में बनाए जा रहे 30 खंभों के पुल पर भी सरकार से जवाब तलब किए थे, क्योंकि ये पुल जिस क्षेत्र में बनाए जा रहे थे वह सोन घडिय़ाल के प्रजनन के लिए उपयुक्त नैसर्गिक जगह मानी जाती है। उस वक्त राज्य सरकार ने एनजीटी को खनन के खिलाफ सख्त कदम उठाने का आश्वासन दिया था, लेकिन यह आश्वासन धरा का धरा रह गया। इसलिए अब फिर से 14 जनवरी को वन विभाग के दो आला अफसर एनजीटी के समक्ष अपना पक्ष रखेंगे। इसमें केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कोई वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहेगा। एनजीटी ने बिहार को भेजे जाने वाले बाणसागर के पानी की अनियमित आपूर्ति पर भी राज्य सरकार को आड़े हाथ लिया था। एनजीटी ने कहा था कि क्या शासन ने कभी यह जानने की कोशिश की है कि बाणसागर बांध से पानी की अनियमित आपूर्ति के कारण अभ्यारण्य में पल रहे घडिय़ालों के अंडे बह जाते हैं। हरित अदालत ने इस मामले का मूल्यांकन कराते हुए उपायों के साथ राज्य शासन से रिपोर्ट तलब की है।
दरअसल सोन नदी के घडिय़ालों की सुध एनजीटी ही नहीं न्यायालय भी ले चुका है। इससे पहले फरवरी 2012 में संजय गांधी टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान में सोन नदी पर स्थापित घडिय़ाल रिजर्व सेन्चुरी में रेत के अवैध उत्खन्न से घडिय़ालों पर मंडरा रहे खतरे के खिलाफ उच्च न्यायालय में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश एस हरकोली व आलोक अराधे की युगलपीठ ने केन्द्र सरकार के पर्यावरण व वन  विभाग, प्रदेश सरकार के वन विभाग टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान के संंचालक, जिला कलेक्टर सहित पांच को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
युगलपीठ ने जिला कलेक्टर व पुलिस अधिक्षक को निर्देशित किया था कि अवैध उत्खनन के खिलाफ उन्होने क्या कार्यवाही की इसका ब्यौरा हलफनामा में न्यायालय में प्रस्तुत करें। उक्त याचिका सीधी निवासी बसंत कुमार की तरफ से दायर की गयी थी। जिसमें कहा गया था कि घडिय़ालों के संरक्षण के लिए संजय गांधी टाइगर रिजर्व सेन्टर में में सोन नदी पर स्थापित घडिय़ाल रिजर्व सेन्चुरी बनायी गयी है।

रिजर्व सेन्चुरी में रेत के अवैध उत्खनन के कारण घडिय़ालों के अंडे फूट जाते है, तथा घडिय़ालों की मौत भी हो रही है। संकट यह है कि कोर्ट के सख्त रवैये के बावजूद भी सरकार और जिम्मेदार अधिकारियों की चेतना सुप्त ही बनी रही और कोई निराकरण नहीं हो पाया। याचिका के साथ सेन्चुरी में हो रहे अवैध उत्खनन व घडिय़ालों के फूटे हुए अंडों की तस्वीर भी न्यायालय के समक्ष पेश की गयी थी। सोन घडिय़ाल अभ्यारण्य मध्य प्रदेश में सोन नदी की विविधता और प्राकृतिक सौन्दर्य को देखते हुए मध्य प्रदेश शासन के आदेश से 23 सितम्बर 1981 को स्थापित किया गया था। उस समय के एक सर्वेक्षण के अनुसार इस क्षेत्र में मगरमच्छ और घडिय़ालों की कुल संख्या 13 बताई गई थी, जबकि वास्तविकता कुछ और थी। क्षेत्र में कार्यरत पर्यावरणविदों के अनुसार इस क्षेत्र में घडिय़ालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है और उसका प्रमुख कारण सोन नदी के तट पर अनधिकृत रूप से कार्यरत रेत माफिया हैं।
रेत माफिया के अवैध संग्रहण के कारण मगरमच्छ और घडिय़ाल सोन नदी से करीब बसाहट वाले गांव में घुसकर जानवरों और ग्रामीणों को शिकार बना रहे हैं। रेत माफिया सोन नदी से अवैध रूप से उत्खनन करने के लिए नदी को लगातार खोदने का काम करता है, परिणामत: पानी में होने वाली लगातार हलचल के परिणाम स्वरूप घडिय़ालों के लिए निर्मित किए गये इस प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन आता है। अभ्यारण्य का कुल क्षेत्रफल 209.21 किमी का है। इसमें सीधी, सिंगरौली, सतना, शहडोल जिले में प्रवाहित होने वाली सोन नदी के साथ गोपद एवं बनास नदी का कुछ क्षेत्र भी शामिल है। सोन घडिय़ाल अभ्यारण्य नदियों के दोनों ओर 200 मीटर की परिधि समेत 418.42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र संरक्षित घोषित है। इस अभ्यारण्य के लिए राज्य सरकार प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का बजट आवंटित करती है। 200 किलोमीटर संरक्षित क्षेत्र के लिए केवल 13 सुरक्षाकर्मी उपलब्ध है। मगरमच्छ एवं घडिय़ालों की सुरक्षा के लिए प्रतिवर्ष 30 लाख रुपए का बजट आवंटित किया जाता है। अब तक तकरीबन 250 मगरमच्छ एवं घडिय़ालों के बच्चे संरक्षित क्षेत्र में छोड़े गए हैं, जिनकी संख्या अब लगभग 150 के करीब है।

खनन की अनुमति न हो

खनन की वजह से घडिय़ालों की ब्रीडिंग पर विपरीत असर पड़ रहा है। मेरे विचार से संरक्षित क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध होना चाहिए। यदि बहुत आवश्यक हो तो स्पॉट फिक्स कर देने चाहिए। इसके लिए अभ्यारण्य के भीतर डब्ल्यूआईआई की टैक्निकल कमेटी उसका परीक्षण कर सकती है।

  • अनिल ओबरॉय, प्रधान मुख्य वन संरक्षक

 

मैंने अभी उस प्रकरण का अध्ययन नहीं किया है। केवल समाचार पत्र में समाचार पढ़ा है। जब तक कोर्ट के आर्डर का अध्ययन न कर लूं, कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।

  • नरेंद्र कुमार, चीफ कंसरवेटर, फॉरेस्ट (वाइल्ड लाइफ)

 

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