05-Dec-2014 08:24 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने देश के घटते लिंगानुपात पर चिंता जताई है और कहा है कि राज्य सरकारों को उन परिवारों को इन्सेंटिव देना चाहिए जहां लड़की का जन्म हुआ हो। कोर्ट का मानना है कि ऐसा करने से लोगों में यह संदेश जाएगा कि सरकार बच्चियों का ख्याल रख रही है

। इससे कन्या भू्रण हत्या में कमी आएगी और लिंगानुपात भी सुधरेगा।
वेश्यावृत्ति बढ़ी
सरकार के तमाम दावों के बावजूद महिला ट्रैफिकिंग के मामले बदस्तूर बढ़ रहे है। महराष्ट्र में वेश्याओं की संख्या सर्वाधिक है। देश के गरीब राज्यों से लड़कियों को लालच देकर या फंसाकर वेश्यावृत्ति के जाल में जकड़ लिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आंकलन भारतीय समाज की एक भयावह सच्चाई बयान कर रहा है। भारत में आज भी ग्रामांचलों में लड़की के जन्म का स्वागत नहीं किया जाता। संभवत: इसका कारण यह है कि लड़की जीवन भर जिस पीड़ा, अपमान और घुटन को भोगती है, वह उसके जन्मदाताओं को बर्दाश्त नहीं हो पाती। इसीलिए वे भरसक प्रयास करते हैं कि बिटिया न जन्मे और जन्मे तो तुरंत ही परलोक का रास्ता पकड़ ले। पिछले दिनों में नवजात बच्चियों को जिंदा दफनाने या उनकी हत्या करने की घटनाएं इस तथ्य की पुष्टि करती हैं। हम बेटियों को जन्म ही नहीं देना चाहते और जो इस दुनिया में आ चुकी हैं, उनके प्रति हमारा नजरिया निहायत घटिया तथा गैर जिम्मेदाराना है। समाज में बढ़ते बलात्कार और स्त्री प्रताडऩा के मामले इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
कोर्ट का सुझाव मानते हुए यदि राज्य सरकारों ने बेटियों के जन्म पर इंसेंटिव की घोषणा कर भी दी तो भी क्या बेटियों की हत्याएं और उन पर अत्याचार रुक जाएंगे? मध्यप्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी सहित तमाम योजनाएं बेटियों के लिए चल रही हैं, लेकिन हालात क्या हैं? पूरे देश में भ्रूण हत्या के 213 मामले वर्ष 2013 में सामने आए थे, जिनमें से मध्यप्रदेश के सर्वाधिक 79 मामले थे। इंसेंटिव से समाज की मनोवृत्ति बदलेगी यह तय नहीं है। स्वैच्छिक संस्था वालेंटरी हेल्थ एसोसिएशन ने अपनी जनहित याचिका में कहा है कि तकरीबन सभी राज्यों में लिंगानुपात गिरा है, जिन राज्यों ने हलफनामा दाखिल किया है उन्होंने यह स्वीकारा भी है। कोर्ट का कहना है कि कन्याभू्रण हत्या करने वालों के खिलाफ प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (पीएनडीटी) एक्ट के तहत ही मुकदमा दर्ज करना ही इसका हल नहीं है। जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत है।
हरियाणा, दिल्ली, यूपी के आंकड़ों पर संदेह
सुप्रीम कोर्ट ने लिंगानुपात पर हरियाणा, दिल्ली और उप्र के हलफनामों में दिए आंकड़ों पर संदेह जताया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को इन तीनों राज्यों के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ 3 दिसंबर को बैठक करने के निर्देश दिए हैं ताकि संबंधित रजिस्टरों और रिकॉर्ड्स की जांच की जा सके, जिस आधार पर आंकड़े पेश किए गए हैं। समिति को 10 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से 2011 के जनगणना के आंकड़े पेश करने पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे फटकार लगाई, कहा कि यह आंकड़े 2011 के हैं, हम 2014 में हैं। क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अगले जनगणना के आंकड़े आने तक हमें 10 साल इंतजार करना होगा।Ó
जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक बाल लिंगानुपात गिर रहा है। 2001 में जहां प्रति 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां थीं। वह 2011 में 914 रह गईं। सबसे बुरे हालात दमन और दीव के हैं, जहां 1000 लड़कों पर 710 लड़कियां ही हैं। चंडीगढ़ (777), दादरा और नगर हवेली (812), दिल्ली (821), हरियाणा (861), पंजाब (861) भी काफी पीछे हैं। वहीं केरल में 1000 लड़कों पर 1058 लड़कियां हैं। फिर पुडुचेरी (1001), तमिलनाडु (987), आंध्र (978), हिमाचल (968), उत्तराखंड (962), लक्षद्वीप (948) का बाल लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।
मप्र, हरियाणा, बिहार, दिल्ली, राजस्थान के साथ-साथ केंद्र सरकार भी इस संबंध में योजना चला रही है। लेकिन नतीजे उत्साहवर्धक नहीं हैं। एनसीआरबी के मुताबिक, 2013 में पूरे देश में 213 कन्या भू्रण हत्या के मामले सामने आए। इनमें सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश (79) में सामने आए, जहां पहले से ही इन्सेंटिव स्कीम चल रही है। एक अध्ययन में पाया गया कि ज्यादातर मां-बाप इन्सेंटिव का इस्तेमाल बच्चियों की पढ़ाई के लिए नहीं बल्कि शादी में करना चाहते हैं।