17-Dec-2014 05:45 AM
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दिल्ली मेें यूबर कैब मेें एक ड्राइवर द्वारा युवती से बलात्कार की घटना ने मीडिया में तूल पकड़ लिया और दिसंबर 2012 के बाद दिल्ली फिर उबल पड़ी। हालांकि यह उबाल उस तरह का नहीं था, किंतु दिल्ली वालों का आक्रोश गलत भी तो नहीं कहा जा सकता। दिल्ली ही नहीं देश के हर शहर की टैक्सी रात में या दिन में अकेली महिला के लिए खतरनाक है। इस खतरे के प्रति न तो सरकारें चैतन्य हैं और न ही उन सुरक्षा अधिकारियों को इसकी फिक्र है जो महिलाओं को देर रात ना घूमने और शालीन कपड़े पहनने की हिदायत देते रहते हैं।
दिल्ली में उस महिला के साथ जिस ड्राइवर शिव यादव ने बलात्कार किया, वह 2011 में भी एक ऐसे ही मामले में 7 माह की जेल काट चुका है। दिल्ली पुलिस ने उसे चरित्र का प्रमाण-पत्र भी दिया है। लेकिन सबसे चौकाने वाला और गैर-जिम्मेदाराना आचरण यूबर कंपनी का है, जिसने बिना पड़ताल के एक ऐसे व्यक्ति को ड्राइवर नियुक्त कर दिया जिसका चरित्र संदिग्ध था।
यूबर कंपनी की सैकड़ों कैब, जिन्हें अब सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है, ऐसे ही ड्राइवरों से भरी पड़ी हैं। भले ही वे सीधे महिलाओं पर हमले न बोलते हों, लेकिन महिलाओं को तंग करने के कई मामले यूबर कैब में सामने आ चुके हैं। जिनमें जोर से गाना बजाना या सही जगह ड्रॉप न करना, बदतमीजी से बोलना, शराब पीकर गाड़ी चलाना जैसी शिकायतें हैं, जिनमें से कुछ को तो महिलाएं ही नजरअंदाज कर देती हैं क्योंकि वे झंझट में नहीं पडऩा चाहतीं। बहुत सी शिकायतें यूबर के प्रबंधन के पास भी पहुंचती रहीं हैं, पर उन पर लीपा-पोती हो जाती है। शिव कुमार यादव के खिलाफ 26 नवंबर को निधि शाह नामक एक महिला ने भी शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें कहा गया था कि यादव ने टैक्सी में सवार निधि को लगातार घूरा और बदतमीजी की। यदि उसी समय यूबर कैब का प्रबंधन कठोर कार्रवाई करता तो बलात्कार की घटना न घटती। पर सारी दुनिया में बदनाम यूबर प्रबंधन मुनाफा कमाने से ही सरोकार रखता है, आम जनता की परेशानी से उसका कोई लेना-देना नहीं। इसी कारण कई देशों में इस कंपनी को प्रतिबंधित कर दिया गया है। भारत में भी गृह मंत्री के कहने पर दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहरों में यूबर टैक्सी रोक दी गई है, हालांकि नितिन गडकरी का कहना है कि यदि रेल या हवाई जहाज में बलात्कार होता है तो क्या उन्हें भी रोका जाएगा। लेकिन सवाल अकेला दिल्ली का नहीं है। बड़े महानगरों में और तेजी से उभरते छोटे शहरों में भी महिलाओं की रात्रिकालीन यात्रा अब सामान्य सी बात है।
रात की पाली में काम करने वाली महिलाओं को घर लौटना होता है। अकेली सफर कर रही महिलाएं जो एक शहर से दूसरे शहर जाती हैं, वे भी रात में अकेले टैक्सी में अपने गंतव्य की तरफ जा सकती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए सुरक्षित टैक्सी व्यवस्था होना जरूरी है। दिल्ली में यूबर कंपनी की तर्ज पर कई शहरों में इस तरह की टैक्सियां चलाई भी जा रही हैं और कई शहरों में इनकी जरूरत भी है। लेकिन कंपनियां थोड़ा सा खर्च बचाने के चक्कर में महिलाओं की जान और इज्जत दोनों दांव पर लगा देती हैं। यूबर कंपनी की दिल्ली में जितनी भी कैब हैं, उन सब में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य है, लेकिन इसका मैकेनिजम इतना घटिया है कि ड्राइवर आसानी से इसे बंद कर देते हैं। सच तो यह है कि 80 प्रतिशत कैब ड्राइवर इस प्रणाली को बंद करके ही चलते हैं और इसमें कंपनी के कुछ कर्मचारियों की मिली भगत भी है। लेकिन कंपनी ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया और वह घटना घट गई।
कहने को यूबर एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी है, लेकिन उसका प्रबंधन और सुरक्षा इतनी घटिया है कि महिलाओं का रात में सफर करना बहुत कठिन है। उस रात बसंत बिहार में अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने के बाद उस लड़की ने मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए यूबर कैब बुक कराई थी। कैब आने पर वह निश्चिंत होकर सो गई क्योंकि उसे कंपनी पर विश्वास था कि गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचा दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लड़की को सोता देख ड्राइवर शिव कुमार कार को सुनसान इलाके में ले गया और लड़की से छेड़-छाड़ शुरू कर दी, आंख खुलने पर लड़की ने विरोध किया तो ड्राइवर ने रॉड घुसेडऩे की धमकी देकर बलात्कार किया और उसने लड़की के फोन से अपने मोबाइल पर एक कॉल भी किया तथा घर से कुछ दूरी पर लड़की को छोड़कर भाग गया। लड़की ने अपने मित्र को वारदात की सूचना देते हुए एसएमएस किया जो गलती से ड्राइवर के पास ही चला गया क्योंकि डायल में उसी का नंबर था, इसके बाद उसने फोन करके लड़की को जान से मारने की धमकी दी।
कंपनी के पास केवल उसकी फोटो थी। न तो उसका वेरिफिकेशन था और न ही पता था। आरोपी का सिम भी फर्जी था। कोई कंपनी जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हो, इतनी लापरवाही कैसे कर सकती है कि वह एक ऐसे व्यक्ति को ड्राइवर बना दे जिसका सिम फर्जी है। लेकिन लगता है विदेशी कंपनियां भी भारत आकर भारत के ही रंग में रंग जाती हैं। बगैर पर्याप्त जानकारी के केवल कार मालिक होने के कारण शिव कुमार को कंपनी ने नौकरी पर रख लिया। न जाने ऐसे कितने फर्जी ड्राइवर उस कंपनी के पास होंगे। दिल्ली पुलिस भी निर्भया कांड के बाद उतनी जागरूक नहीं हो पाई जितनी उसे होना चाहिए था।
बलात्कार की घटना के बाद पुलिस को ड्राइवर तक पहुंचने में पसीना आ गया। यदि इसी तरह रेपुटेड कंपनियों की गाड़ी मेंं महिलाएं असुरक्षित रहेंगी तो फिर महिलाओं के लिए भला कौन सा शहर सुरक्षित है। टैक्सी, ऑटो, बस जैसे सार्वजनिक परिवहनों में महिलाओं को सुरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। कम से कम कोई जगह तो वे सुरक्षित हों। हर जगह पर उन्हें खतरा है। यदि शिकायत करती हैं तो हिदायतें सुनने को मिलती हैं कि रात को न घूमा करें, सुनसान में न जाया करें, कपड़े वगैरह ठीक से पहनें आदि-इत्यादि। इन हिदायतों का एक अर्थ यह भी निकलता है कि यदि ऐसा किया तो बलात्कार हो जाएगा। यह समझ से परे है। भारत के विकास को आगे बढ़ाने वाले राजनीतिज्ञ महिलाओं की इस असुरक्षा को लेकर क्या सोचते हैं। क्या उस देश में विकास संभव है जो महिलाओं के लिए असुरक्षित हो या जिस में रात-बिरादरी घूमने वाली महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं घट जाती हों। दिल्ली पर मीडिया का ध्यान ज्यादा रहता है लेकिन दिल्ली के अलावा भी बाकी शहर महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं।
कानून केवल कागजों पर
16 दिसंबर, 2012 को राजधानी में हुए निर्भया कांड के बाद केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी। इन योजनाओं में सभी चार्टर बसों और कारों के शीशों से काली फिल्म हटाने, महिलाओं की मदद के लिए हेल्प लाइन नंबर 181 की शुरुआत, सभी बस स्टॉप और सुनसान इलाकों में सीसीटीवी कैमरा लगाने और बसों में रात के दौरान होम गार्ड की मौजूदगी शामिल थी।
इसके अलावा, सुनसान इलाकों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ पुलिस की बैरिकेडिंग और गश्त बढ़ाने की घोषणा भी की गई थी। समय के साथ कुछ योजनाओं पर तो काम हुआ, लेकिन कुछ योजनाएं फाइलों में सिमट कर रह गईं। परिवहन विभाग और यातायात पुलिस की सक्रियता के चलते बसों और ज्यादातर कारों से काली फिल्में तो उतर गईं, लेकिेन रात में बसों में गार्डों की तैनाती की योजना को प्रभावी रूप से अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है। इसी तरह राजधानी के बहुत से सुनसान इलाके अभी भी अंधेरे में डूबे हुए हैं। राजधानी के चुनिंदा इलाकों को छोड़कर ज्यादातर बाहरी इलाकों में पुलिस की सक्रियता नहीं के बराबर है। ऐसा न होता तो शायद कैब चालक पीडि़ता के साथ सुनसान इलाके में दुष्कर्म की वारदात को अंजाम देने में सफल न हो पाता। इतना ही नहीं, वसंत विहार से इंद्रलोक के बीच एक भी ऐसी पुलिस की बैरिकेडिंग नहीं आई, जहां पर युवती पुलिस की मदद ले पाती या पुलिसकर्मी युवती की हालत देखकर परिस्थितियों का आकलन कर पाते।
