05-Dec-2014 07:30 AM
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समाजवाद का दानवी चेहरा
गरीबों और मजलूमों के मसीहा मुलायम सिंह यादव ने 75 फुट लंबा केक काटा, आयातित बग्घी की सवारी की, करोड़ों रुपए फूंक डाले- क्योंकि उनका जन्मदिन था। मुस्लिमों के नेता बनने का दम्भ पालने वाले आजम खान से जब यह पूछा गया कि इस खर्चीले जन्मदिन का पैसा कहां से आया? तो उन्होंने व्यंग्यात्मक शैली में जवाब दिया कि
पैसा अंडरवल्र्ड लगा रहा है।
व्यंग्य में ही सही आजम के मुंह से सच सामने आ ही गया। जिस प्रदेश में रात को कड़कती ठंड में अलाव के सहारे भूखे सोने वाले लाखों लोगों में से कुछ की जान ठंड के कारण रात में ही चली जाती है, वहां मुलायम के जन्मदिन के लिए पैसा काली कमाई वाले ही खर्च कर सकते हैं। जो खून-पसीने से कमाएगा कम से कम उसके दिल में यह संवेदना जरूर होगी कि वह फिजूल खर्ची करने के बजाए अपने धन का उपयोग गरीबों, मजलूमों और लाचारों के दर्द को मिटाने में करे। जिस समुदाय के लिए मुलायम और उनके साथियों ने समाजवाद की आड़ में एक जन-आंदोलन खड़ा किया था तथा जन-आंदोलन के फलस्वरूप ही वे सत्ता पाने में सफल रहे, आज उसी समुदाय के दर्द को भुलाकर मुलायम और उनके तमाम संगी-साथी महंगे जन्मदिन मनाते हैं, शादियों में विलासितापूर्ण खर्च करते हैं और आलीशान जीवन जी रहे हैं।
जयप्रकाश नारायण तथा राममनोहर लोहिया जैसों के आदर्शों पर चलने का दम्भ भरने वाले ये कथित समाजवादी जनता की तकलीफों को भुलाकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर रहे हैंं। इनका एकमात्र लक्ष्य किसी तरह सत्ता पाना है। अन्य कोई भी लक्ष्य राजनीति को देखकर ही तय किया जाता है। समाजवादी विचारधारा की बात करते ही वर्तमान राजनैतिक परिवेश में पहला नाम सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का ही उभर कर सामने आता है।
उनके समर्थक उन्हें समाजवादी विचारधारा का एक मात्र नेता मानते रहे हैं, साथ ही मुलायम सिंह यादव भी स्वयं को कट्टर समाजवादी ही कहते रहे हैं। पर मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक जीवन पर नजर डालें तो उनके समाजवादी होने पर भी कई प्रश्न चिन्ह लगे नजर आते हैं। इसीलिए वर्तमान दौर के सर्वश्रेष्ठ समाजवादी नेता होने के बावजूद उनके समर्थकों के अलावा कोई और उन्हें समाजवादी विचारधारा का नेता मानने को तैयार नहीं दिख रहा है। राजनैतिक जीवन में मुलायम सिंह यादव के नाम कई ऐसी उपलब्धियां दर्ज हैं, जिन्हें राजनीति के इतिहास में न चाहते हुए भी दर्ज करना ही पड़ेगा। पर कई ऐसे दाग भी हैं, जो उनके समाजवादी होने पर हमेशा सवाल उठाते रहेंगे। मुलायम सिंह यादव को उनके चाहने वाले नेताजीÓ नाम से संबोधित करते हैं एवं जमीनी नेता होने के कारण उन्हें धरतीपुत्रÓ भी कहा जाता है। वास्तव में वह स्वयं में बेहद अच्छे इंसान भी हैं। पत्रकारों से तो वह और भी अच्छी तरह से पेश आते हैं। किसी भी सवाल पर वह निरुत्तर नहीं होते। जवाब न भी दें, तो भी वह पत्रकार को अपनी बातों से संतुष्ट कर ही देते हैं। उनकी कोई पत्रकार वार्ता ऐसी नहीं होती, जिसमें वह एक-दो पत्रकार को सवाल करने पर झिड़कते न हों, पर उनके झिड़कने का भी अंदाज इतना सरल व मजाकिया रहता है कि वह पत्रकार उनका प्रशंसक हो जाता है।
सत्ता में होने पर वह समाज के हर वर्ग के लिए सराहनीय कार्य करते रहे हैं, फिर भी वह समाज के सभी वर्गों के चहेते नहीं बन पा रहे हैं। मतलब, व्यक्तिगत तौर पर वह सभी के चहेते हो सकते हैं, लेकिन समाजवादी नेता के रूप में उनकी व्यापक तौर पर आलोचना की जाती रही है। वह समाजवादी विचारधारा को समाजवादी पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं की सोच में पूरी तरह नहीं ढाल पा रहे हैं, क्योंकि वह स्वयं भी समाजवादी विचारधारा से भटकते रहे हैं, इसीलिए उनसे जुड़ी पुरानी घटनाएं हमेशा ताजा बनी रहती हैं। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद उन्होंने कहा कि घटना भाजपा की सोची-समझी साजिश का नतीजा है और कांग्रेस ने इस साजिश में भाजपा का पूरा साथ दिया है। भाजपा और कांग्रेस के विरुद्ध आवाज बुलंद करने के कारण ही वह बड़ी राजनैतिक हस्ती बन पाये। बाबरी विध्वंस के समय मुलायम सिंह यादव की भूमिका से मुसलमान उनके मुरीद हो गये, लेकिन भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले मुलायम सिंह यादव भाजपा का भी सहारा ले चुके हैं, इसी तरह कांग्रेस को कोसने वाले मुलायम सिंह यादव कांग्रेस की गोद में भी बैठ चुके हैं। हालांकि वे कांग्रेस व भाजपा के विरुद्ध मोर्चा बनाने के पक्ष में हमेशा रहे हैं।
